– ह्रदय नारायण दीक्षित
स्वाधीनता उच्चतर आनंद है और पराधीनता असह्य दुख है- पराधीन सपनेहु सुख नाही। पराधीन व्यक्ति समाज और राष्ट्र अपनी संस्कृति का आनंद नहीं ले सकते। उनके जीवन में मुक्त रस प्रवाहमान नहीं होता। भारत के लोग लगभग 200 वर्ष तक ब्रिटिश सत्ता के अधीन रहे। विदेशी सत्ता ने भारत को लूटा। यहां से कच्चा माल इंग्लैंड ले गए। वहां से यहां पक्का माल लाते रहे। भारत के उद्योगतंत्र का यहां सर्वनाश हुआ। ईसाई भय लोभ और षड्यंत्र से भारतवासी गरीबों का धर्मांतरण कराते रहे। पराधीन भारत का मन ब्रिटिश सत्ता ने तोड़ा। 1857 में पहला स्वाधीनता संग्राम हुआ। ब्रिटिश सत्ता का सिंहासन हिल गया। लड़ाई जारी रही। स्वाधीनता संग्राम में सेनानी नहीं झुके। 1942 में भारत छोड़ो की घोषणा हुई। अंततः 15 अगस्त, 1947 के दिन भारत स्वाधीन हो गया।
हम भारत के लोगों ने अपना संविधान बनाया। संस्थाएं बनाईं। भारत में संविधान का शासन है। यह स्वाधीनता का अमृत महोत्सव है। भारत के अवनि अम्बर उल्लास मगन हैं। स्वाधीन भारत ने 75 वर्ष पूरे किए हैं। इस अवधि में भारत ने सभी क्षेत्रों में उन्नति की है। अमृत महोत्सव देश की सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक उपलब्धियों पर सार्थक चर्चा का विशेष अवसर है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार द्वारा अनेक आयोजनों की रूपरेखा बनाई गई है। कार्यक्रमों की शुरुआत 12 मार्च, 2021 को हो चुकी है। कार्यक्रम अगस्त 2023 तक चलेंगे। स्वाधीनता संग्राम सेनानियों का स्मरण विकास यात्रा में उपयोगी है। इन आयोजनों में भारत को दुनिया का श्रेष्ठतम राष्ट्र बनाने का अमृत है। देश को आत्मनिर्भर बनाने व सुराज के सपनों को पूरा करने का अमृत संकल्प है। आयोजनों में राष्ट्र के प्रतीक राष्ट्रीय ध्वज की विशेष महत्ता है।
सम्प्रति समूचा देश राष्ट्रध्वजों से आच्छादित है। सब तरफ तिरंगा है। प्रधानमंत्री ने अपेक्षा की है कि 13 से 15 अगस्त 2022 के मध्य सभी घरों में राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाएगा।। सभी सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं व सभी नागरिकों से तिरंगा फहराने कि अपील की गई है। प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया के माध्यमों पर भी तिरंगा लगाने का आग्रह किया है। सोशल मीडिया पर तिरंगे की बहार है। सब तरफ राष्ट्रीय ध्वज हैं। भारत प्राचीन राष्ट्र है। यह अजन्मा है। सदा से है। अमर है। राष्ट्र का अमरत्व पूर्वजों की सनातन प्यास है। भारत एक सम्पूर्ण जीवन दर्शन भी है। संस्कृति इस राष्ट्र का प्राण है। भूमि, जन और संस्कृति मिलकर राष्ट्र है। राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत राष्ट्र सत्ता की स्तुतिपरक गीत अभिव्यक्ति है। राष्ट्रीय पुष्प कमल राष्ट्र की सुगंधा अभिव्यक्ति है। अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त में ऋषि कहते हैं – ‘हे पृथ्वी माता आपकी गंध कमल में प्रकट हुई है।’ राष्ट्रध्वज राष्ट्र के स्वाभिमान का प्रतीक है।
राष्ट्रध्वज पर संविधान सभा में दिलचस्प चर्चा हुई थी। 22 जुलाई, 1947 के दिन संविधान सभा में पं. जवाहर लाल नेहरू ने राष्ट्रीय ध्वज का प्रस्ताव रखा। उन्होंने भावुक होते हुए कहा- ‘कभी कभी हम पराजित और निरुत्साहित हो जाते थे तब इस झंडे का दर्शन हमें आगे बढ़ने के लिए उत्साह देता था। राष्ट्रध्वज का दर्शन नई ऊर्जा देता ही है।’ पंडित नेहरू राष्ट्र विभाजन के परिणाम से आहत थे। उन्होंने कहा-‘ऐसी अनेक घटनाएं पिछले महीनों में हुई हैं जिन्होंने हमें आघात किया है। हमारी मातृभूमि से कुछ भाग काट दिए गए। हमने अनेकों को असह्य कष्ट भोगते देखा है। हमारे उद्देश्य की पूर्ति उसी प्रकार नहीं हुई जैसी हम चाहते थे।’ भारत के लोग अखंड भारत चाहते थे। यह सपना टूट गया था। पं. नेहरू भी विभाजन के लिए उत्तरदायी थे। उन्होंने कहा- ‘इस झंडे का अनेक प्रकार से वर्णन किया गया है। कुछ लोग इसके महत्व को न समझ कर साम्प्रदायिक रूप में सोचते हैं कि झंडे का अमुक भाग अमुक सम्प्रदाय का द्योतक है। मैं कह सकता हूं कि जब इस झंडे का रूप विचार में था। उस समय कोई साम्प्रदायिक चीज नहीं थी।’ सही बात यह है की उस समय साम्प्रदायिकता थी।
राष्ट्रीय ध्वज के तीनों रंगों की साम्प्रदायिक व्याख्या हो रही थी। पं. नेहरू ने कहा- ‘हमने झंडे का विचार किया जो अपने रूप में राष्ट्र की परंपरा और प्रवत्ति के मिश्रित रूप में हजारों वर्षो से भारत में प्रचलित है। आत्मा सम्बंधी बातें, व्यक्तिगत जीवन और राष्ट्रजीवन को प्रभावित करती हैं। कोई भी राष्ट्र केवल भौतिक वस्तुओं के आधार पर जीवित नहीं रहता। भारत का अतीत बहुत प्राचीन है। वह अन्य उपकरणों पर भी जीवित रहता है। वह उपकरण आध्यात्मिक है। हजारों वर्षों से भारत इन आदर्शों और आध्यात्मिक बातों से संपर्क न साधे होता तो भारत क्या होता?’ पं. नेहरू झंडे के रंगों पर भी बोले- ‘रंग वह ही हैं गहरा केसरिया, सफेद और गहरा हरा।
हमने पहले से प्रयोग हो रहे चरखे को हटाया कि वह दोनों तरफ से एक जैसा नहीं दिखाई पड़ता। अशोक की लाट के सिर पर का तथा अन्य स्थानों का चक्र रखा। चक्र भारत की प्राचीन सभ्यता का चिह्न है।’ एचवी कामथ ने अशोक चक्र के पास स्वास्तिका चिह्न अंकित करने का संशोधन रखा, और कहा- स्वास्तिका प्राचीन भारत का प्रतिष्ठित चिह्न है।’ बाद में उन्होंने अपना संशोधन वापस ले लिया। सेठ गोविन्द दास ने कहा- ‘एक समय ऐसा था कि इसके तीन रंग थे लाल, सफेद और हरा। इसमें साम्प्रदायिकता थी। अब रंगों को परिवर्तित कर केसरिया, हरे और श्वेत रंग को अपनाया गया है। इसमें साम्प्रदायिकता नहीं है।’ डॉ. राधा कृष्णन ने कहा- ‘लाल, नारंगी और भगवा रंग त्याग की भावना प्रकट करता है। हरा रंग भूमि से हमारा सम्बंध बताता है। हमको हरित भूमि पर स्वर्ग बनाना चाहिए। यह झंडा आदेश देता है कि सदैव कर्म करो आगे बढ़ो।’ संविधान सभा में अनेक वक्ता बोले। अंततः राष्ट्रध्वज का प्रस्ताव पारित हो गया।
राष्ट्रध्वज राष्ट्रीय सम्मान का प्रतीक है। यह प्रेरक है। केसरिया रंग भारत में त्याग का प्रतीक रहा है। यह उदय होते सूर्य का रंग है। भारतीय संस्कृति में भगवा रंग भगवा ध्वज सांस्कृतिक प्रतीक हैं। भगवा भारत की प्रीति रहा है। सफेद रंग शुभ्र ज्योति का प्रतीक है। श्वेत वस्तुतः रंग नहीं है। श्वेत रंगहीनता है। सूर्य प्रकाश में 7 रंग है, श्वेत नहीं है। भारतीय चिंतन में श्वेत रंग की प्रतिष्ठा है। हरा रंग समृद्धि का प्रतीक है। ऋग्वेद में वनस्पतियों को भी एक देवता कहा गया है। हरा रंग हरित समृद्धि का प्रतीक है। चक्र गतिशीलता का द्योतक है। बेशक इसे अशोक के शिलालेखों से प्रेरित होकर ध्वज में जोड़ा गया है। राष्ट्रीय ध्वज त्याग, सन्यास, कर्म, तप और शिव संकल्प से युक्त है। राष्ट्रीय ध्वज भारत के जन गण मन की श्रद्धा है। संविधान (अनु.51ए) के मूल कर्तव्यों में प्रत्येक नागरिक से अपेक्षा की गई है कि ‘संविधान का पालन करें, उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करें। स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले आदर्शों को ह्रदय में संजोए रखे। उनका पालन भी करें।’ स्वाधीनता के अमृत महोत्सव पर देश में उल्लास आपूरित राष्ट्रवादी वातावरण बन रहा है। हम भारत को विश्व प्रतिष्ठ बनाने का संकल्प ले।
(लेखक, उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं।)