Friday, November 22"खबर जो असर करे"

लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री के संदेश के निहितार्थ

– ऋतुपर्ण दवे

लाल किले की प्राचीर से आजादी के गुमनाम मतवालों को याद करते हुए स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी संकल्पित अंदाज में दिखे। उन्होंने भ्रष्टाचारियों को ललकारा। भाई-भतीजावाद को नई पीढ़ी के खिलाफ बताया। प्रधानमंत्री ने आने वाले 25 साल के लिए पंच प्रण यानी 5 संकल्पों पर सभी को अपनी शक्ति, संकल्प तथा सामर्थ्य के साथ केंद्रित होने का आग्रह किया। पहला प्रण देश बड़े संकल्प के साथ चले जिसमें हमें विकसित भारत से कम कुछ भी नहीं चाहिए। दूसरा प्रण किसी भी कोने में हमारे मन में गुलामी का लेशमात्र अंश भी न रहे। हमें वैसा ही होना चाहिए जैसे हैं। अब बिल्कुल जरूरी नहीं कि सात समंदर पार के गुलामी के जरा से भी तत्व रह जाएं। दासता के सभी निशान मिटा दें। तीसरा प्रण हमें हमारी अपनी विरासत पर गर्व करना होगा। यही वो विरासत है जो कभी भारत का स्वर्णिम काल था और जिस पर हमें गर्व होना चाहिए। चौथा प्रण एकता और एकजुटता का है। 130 करोड़ देशवासियों में ऐसी एकता हो जिसमें न कोई अपना न कोई पराया हो सब एक हों। एकता की ताकत एक भारत, श्रेष्ठ भारत के सपनों के लिए अहम है। पांचवां प्रण नागरिकों के कर्तव्य हैं सब इसे समझें और पूरा करें चाहे प्रधानमंत्री हो या मुख्यमंत्री कोई भी बाहर नहीं है।

इस बार प्रधानमंत्री का उद्बोधन दार्शनिक लेकिन दो टूक रहा। इसमें नए भारत का खाका है। उन्होंने खुलेपन से कहा कि यह वही भारत है जिसने अन्न संकट पर आत्म निर्भरता प्राप्त की। युद्ध की विभीषिकाओं, आतंकवाद से निपट कर हमने अपना सामर्थ्य दुनिया को दिखा दिया। यह भारत की संस्कार सरिता ही है जिसने सफलता-विफलता, आशा-निराशा के अनेकों पड़ावों के बाद भी देश को दुनिया में एक अलग मुकाम पर ला खड़ा किया। आज दुनिया को भारत जो दे रहा है वह किसी के पास नहीं है। व्यक्तिगत तनाव से निपटने की खातिर भारतीय योग और सामूहिक तनाव से निपटने के लिए भारतीय परिवारों के उदाहरण दिए जाते हैं।

संयुक्त परिवार की सबसे बड़ी पूंजी सदियों से हमारी माताओं का त्याग और बलिदान है। इनके कारण ही परिवार नाम की जो व्यवस्था विकसित हुई वह हमारी बड़ी विरासत है, जिस पर गर्व है। प्रधानमंत्री ने नारी सम्मान पर बेहद भावुक अंदाज में सबका ध्यान खींचा। उन्होंने कहा किसी न किसी कारण से हमारे बोलचाल, व्यवहार में एक विकृति आई है। क्या हम स्वभाव, संस्कार, रोजमर्रा की जिंदगी में नारी को अपमानित करने वाली हर बात से मुक्ति का संकल्प ले सकते हैं? हम इस पर जितना ध्यान देंगे, जितना ज्यादा अवसर बेटियों को देंगे, देखेंगे कि वो देश को एक नई ऊंचाई पर ले जाएंगी। अदालतों का उदाहरण देते हुए कहा कि वकील के तौर पर नारी शक्ति का वर्णन और गांवों में पंचायत से लेकर आज ज्ञान-विज्ञान के हर क्षेत्र में नारी शक्ति सिरमौर नजर आती है। पुलिस में सुरक्षा की जिम्मेदारी उठाती है। खेल-कूद का मैदान देखें या युद्ध की भूमि देखें भारत की नारी शक्ति एक नए सामर्थ्य के साथ आगे आ रही है। आने-वाले 25 साल में ये योगदान और ज्यादा बढ़ेगा।

आजादी की जंग की बात करते हुए प्रधानमंत्री ने उसके रूपों की भी चर्चा की। ऐसे ही एक रूप में स्वामी नारायण गुरु, स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंदो, गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर जैसे अनेकों महापुरुषों ने देश के कोने-कोने में भारत की चेतना को जगाया। वहीं मंगल पांडे, तात्या टोपे, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, चंद्रशेखर आजाद, असफाक उल्ला खां, राम प्रसाद बिस्मिल जैसे क्रांति वीरों का वो रूप भी दिखा जिसने अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिला दीं। वहीं अलूरी सीताराम राजू तो महिलाओं में रानी लक्ष्मी बाई, झलकारी बाई, रानी गाइडिंगलू, रानी चेनम्मा का दौर भी बताया। प्रधानमंत्री ने बड़े संकल्पों का आह्वान करते हुए कहा कि जब संकल्प बड़े होते हैं तो पुरुषार्थ भी बड़ा होता है। प्रधानमंत्री ने युवाओं विशेषकर 20-22 वर्ष के नौजवानों से इस संबंध में अपेक्षाएं भी कीं और कहा कि पंच प्रण पर अपनी शक्ति को केंद्रित करना होगा। 2047 में जब आजादी के 100 साल होंगे तब आजादी के दीवानों के सारे सपनों को पूरा करने का जिम्मा उठाकर चलना होगा।

प्रधानमंत्री के उद्बोधन में उनका भारतीय दर्शन भी साफ झलका। उन्होंने कहा कि भारत ही दुनिया का वो देश है जिसकी जीवनशैली ने दुनिया को प्रभावित किया है। हमें अपनी विरासत पर गर्व होना चाहिए। हम ही वो लोग हैं, जो जीव में शिव देखते हैं, नर में नारायण देखते हैं, नारी को नारायणी कहते हैं, पौधे में परमात्मा देखते हैं, नदी को मां मानते हैं, कंकड़-कंकड़ में शंकर देखते हैं। सत्य एक है जिसे जानकार अलग-अलग कहते हैं। भारतीय ही जन कल्याण से जग कल्याण की राह पर चलने वाले लोग हैं। इसी एकता, एक जुटता का भाव इंडिया फर्स्ट का भाव जगाता है, दिखाता है।

उन्होंने प्राकृतिक खेती पर जोर दिया और हर ड्रॉप मोर क्रॉप का आह्वान किया। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री ने विशेषकर छोटे बच्चों का जिक्र भी किया जो 5-7 साल के होकर भी देशी खिलौनों से खेलने को लेकर समझ रखते हैं। यह भारत ही है जहां देश प्रेम की ऐसी सोच बचपन से बच्चों में भरी जाती है। इशारों ही इशारों में अनुशासित जीवन का जिक्र करते हुए पुलिस-पीपुल और शासक-प्रशासक को भी अपने नागरिक कर्तव्यों के प्रति चेताना बताता है कि इस पर अभी काफी कुछ दिखने वाला है।

उन्होंने कहा शास्त्री जी ने देश की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए जय जवान-जय किसान का नारा दिया। बाद में अटल जी ने इसमें जय विज्ञान को जोड़ा और अब देश की जरूरतों को देखते हुए इसमें एक नया जोड़ना आवश्यक है।

इसलिए अब जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, जय अनुसंधान की जरूरत है। आने वाला दौर डेकेड (10वर्ष) टेकेड (तकनीक) का होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किले की प्राचीर से एक बड़ी बात कही जो अब बेहद सुर्खियों में रहने वाली है। उन्होंने भ्रष्टाचार और राजनीतिक परिवारवाद पर प्रहार करते हुए बड़ा संकेत भी दिया कि देश के साथ खिलवाड़ करने और जनविरोधी गतिविधियों में शामिल लोगों के और भी बुरे दिन आने वाले हैं। हमें अपनी संस्थाओं की ताकत का अहसास करने के लिए योग्यता के आधार पर देश को आगे ले जाना होगा और इसके लिए परिवारवाद के खिलाफ जागरूकता बढ़ानी होगी। भ्रष्टाचार देश को दीमक की तरह खोखला कर रहा है। इससे लड़ना है। जिन्होंने देश को लूटा है उन्हें लौटाना होगा। हम भ्रष्टाचार के खिलाफ एक निर्णायक कालखंड में कदम रख रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कई बार भावुक अंदाज में भी दिखे। नौवीं बार दिया उनका भाषण 84 मिनट 4 सेकेंड का रहा। इससे पहले 2021 में लालकिले की प्राचीर से देश को 8वीं बार संबोधित करते हुए 88 मिनट का भाषण दिया था। उन्होंने 2020 में 86 मिनट, 2019 में 92 मिनट, 2018 में 82 मिनट, 2017 में 57 मिनट, 2016 में 94 मिनट, 2015 में 86 मिनट और 2014 में 65 मिनट का भाषण दिया था। यकीनन प्रधानमंत्री ने इस बार देश को बड़ा संदेश दिया है। िसके बहुत ही गहरे मायने हैं। भले ही कोई इसे 2024 का एजेंडा कहे या उनकी राजनीति का आक्रामक अंदाज लेकिन इतना तो साफ है उन्होंने देश के मन को छू लिया।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)