– रमेश ठाकुर
अंतरराष्ट्रीय नेल्सन मंडेल दिवस यानी 18 जुलाई अफ्रीका के ‘महात्मा गांधी’ नेल्सन मंडेला के असाधारण सामाजिक योगदान को याद करने की ऐतिहासिक तारीख है। महापुरुषों के विचार हमारे लिए सहेजने वाले हैं। यह धरोहर जैसे हैं। अगर थोड़ा सा भी हम सब उनका अनुसरण कर लें तो जीवन के जीने का मकसद पूरा हो जाएगा। मगर अब वक्त बदल चुका है। उम्रदराज लोगों के सिवाए, युवा पीढ़ी के लिए इनके विचार ज्यादा मायने नहीं रखते। उनके लिए अब गूगल ही माई-बाप हैं। नेल्सन मंडेला को आज याद करने का दिन है। 18 जुलाई, 1918 को जन्मे नेल्सन-सिर्फ नाम नहीं, बल्कि शांति और संस्कृति की वह संस्था हैं जिसे मॉर्डन युग के उपभोगितावाद ने हमें बहुत दूर कर दिया है। उनके जीवन के 67 वर्षों का संघर्ष हमें मात्र 67 मिनट कुछ अच्छा करने को प्ररित करता है। दुर्भाग्य से उसे भी हम नकार चुके हैं। समूचे संसार में शांति-संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नेल्सन मंडेला का अभियान काबिलेतारीफ रहा है। लोगों ने उनके बताए रास्तों को अपनाया। प्रेरणा लेकर आगे बढ़े। उनके विचारों को अपने जीवन में उतारा।
लेकिन जैसे ही आधुनिक युग का आरंभ हुआ। उनकी बातें गुजरे दिनों की किस्से-कहानियां हो गईं। अफसोस इस बात का है कि उनके न रहने के साथ ही शांति प्रचार का वह अभियान भी थम गया, जिसे बाद में किसी ने आगे बढ़ाने की जहमत नहीं उठाई। बातें हुईं। योजनाएं बनीं। अंतरराष्ट्रीय नेल्सन मंडेला दिवस पर सरकारों ने लंबे-चौड़े भाषण भी दिए पर अपनाया किसी ने भी नहीं। सवाल आखिर क्यों? संयुक्त राष्ट्र के 18 जुलाई को इस दिवस को मनाने के फैसले के पीछे मकसद था कि मौजूदा पीढ़ी उनके विचारों को जान सके। कमोबेश वैसा हो नहीं पाया। शायद मुट्ठी भर लोग ही नेल्सन मंडेला और उनके विचारों की अहमीयत को समझते होंगे। मंडेला के विचारों को दोबारा से प्रचारित करने की जरूरत है। इसके लिए विभिन्न मुल्कों की सरकारों को आगे आना होगा।
नेल्सन मंडेला को दक्षिण अफ्रीका का गांधी कहा जाता है। जो मान सम्मान गांधी को हिंदुस्तान में दिया जाता है, वही सम्मान मंडेला को वहां मिलता है। मंडेला का सम्मान समूचे संसार के लिए अति सम्मानित हैं। कायदे से यह दिवस मंडेला की सामाजिक कुरीतियों को दूर करने, सामाजिक बुराइयों से लड़ने, संघर्षों से जटिल से जटिल मसलों को सुलझाने, मानवाधिकार अधिकारों को बढ़ावा देने, लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करने और नस्लीय मुद्दों को शांति के साथ सुलझाने को चिह्नित करता है। अफ्रीकी देशों में नस्लभेद को हमेशा दूसरे मुद्दों से बड़ा माना गया है। आज यह मुद्दा अन्य देशों में भी बहस के केंद्र में है। नस्लभेद धीरे-धीरे वैश्विक समस्या का रूप ले रहा है।
मंडेला ने रंगभेद शासन की शांतिपूर्ण समाप्ति के लिए नए लोकतांत्रिक दक्षिण अफ्रीका की नींव रखने में अहम योगदान दिया है। इस क्षेत्र में अतुलीय योगदान के लिए ही नेल्सन मंडेला और फ्रेडरिक विलेम डी क्लार्क को संयुक्त रूप से 1993 में नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था। शांतिदूत मंडेला और गांधी को दुनिया कभी भुला नहीं सकती। नेल्सन मंडेला से दुनिया को सीखना चाहिए कि कैसे जीवन भर शांति के लिए और रंगभेद के खिलाफ लड़े। यह दिवस लोगों को गरीबी से लड़ने, सांस्कृतिक विविधता व दुनिया भर में शांति और सुलह के प्रोत्साहित करने और अलख जगाने के लिए है। इस दिन को 67 मिनट मंडेला दिन भी कहा जाता है, क्योंकि मंडेला ने सामाजिक न्याय के लिए 67 साल तक लड़ाई लड़ी। मंडेला को दुनिया सामुदायिक सेवा और स्वंयसेवा के मूल्यों में उनकी महान विरासत के तौर पर हमेशा याद करेगी। उन्होंने हमेशा गांधी के विचारों को तरजीह दी। हिंसा छोड़, दुनिया अहिंसा का रास्ता अपनाए, यही उनकी अंतिम इच्छा भी थी।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)