– योगेश कुमार गोयल
आधुनिकता की ओर तेजी से अग्रसर कुछ भारतीय ही भले ही अंग्रेजी बोलने में अपनी आन, बान और शान समझते हों किन्तु सच यही है कि हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी ऐसी भाषा है, जो प्रत्येक भारतवासी को वैश्विक स्तर पर मान-सम्मान दिलाती है। सही मायनों में विश्व की प्राचीन, समृद्ध एवं सरल भाषा है भारत की राजभाषा हिन्दी, जो न केवल भारत में बल्कि अब दुनिया के अनेक देशों में भी बोली और पढ़ी जाती है। वैश्विक स्तर पर हिन्दी की बढ़ती ताकत का सबसे बड़ा सकारात्मक पक्ष यही है कि आज विश्वभर में करोड़ों लोग हिन्दी बोलते हैं और दुनियाभर के सैंकड़ों विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जाती है। दुनियाभर में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए वातावरण निर्मित करने तथा हिन्दी को अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रस्तुत करने के उद्देश्य से पिछले कई वर्षों से 10 जनवरी को ‘विश्व हिन्दी दिवस’ भी मनाया जाता है। यह दिवस वास्तव में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी की महानता के प्रचार-प्रसार का एक सशक्त माध्यम है। पहली बार नागपुर में 10 जनवरी 1975 को विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन किया गया था, जिसमें 30 देशों के 122 प्रतिनिधि शामिल हुए थे। तत्पश्चात भारत के बाहर मॉरीशस, यूनाइटेड किंगडम, त्रिनिदाद, अमेरिका इत्यादि देशों में भी विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन किया गया।
विश्वभर की भाषाओं का इतिहास रखने वाली संस्था ‘एथ्नोलॉग’ के द्वारा जब हिन्दी को दुनियाभर में सर्वाधिक बोली जाने वाली तीसरी भाषा बताया जाता है तो सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में प्रथम स्थान पर अंग्रेजी, दूसरे स्थान पर चीनी भाषा मंदारिन और तीसरे स्थान पर हमारी हिन्दी आती है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा भी 22 जून 2022 को संयुक्त राष्ट्र की सूचनाएं हिन्दी में दिया जाना स्वीकार किया गया और अब उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की अधिकारिक भाषा का भी र्जा मिलेगा। यदि दुनियाभर हिन्दी बोलने वाले लोगों की संख्या की बात की जाए तो 80 करोड़ से भी ज्यादा लोग अब हिन्दी बोलते हैं। इंटरनेट पर भी हिन्दी का चलन दिनों-दिन तेजी से बढ़ रहा है और दुनिया के सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल द्वारा कुछ वर्षों पूर्व तक जहां अंग्रेजी सामग्री को ही महत्व दिया जाता था, वहीं अब गूगल द्वारा भारत में हिन्दी तथा कुछ क्षेत्रीय भाषाओं की सामग्री को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। माना जा रहा है कि देश में हिन्दी में इंटरनेट उपयोग करने वाले की संख्या अब अंग्रेजी में इसका उपयोग करने वालों से ज्यादा हो जाएगी। कुछ वर्ष पूर्व डिजिटल माध्यम में हिन्दी समाचार पढ़ने वालों की संख्या करीब साढ़े पांच करोड़ थी, जो अब बढ़कर चौदह करोड़ से ज्यादा हो जाने का अनुमान है। इंटरनेट पर हिन्दी का जो दायरा कुछ समय पहले तक कुछ ब्लॉगों और हिन्दी की चंद वेबसाइटों तक ही सीमित था, अब हिन्दी अखबारों की वेबसाइटों ने करोड़ों नए हिन्दी पाठकों को अपने साथ जोड़कर हिन्दी को और समृद्ध तथा जन-जन की भाषा बनाने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
तकनीकी रूप से हिन्दी को और ज्यादा उन्नत, समृद्ध तथा आसान बनाने के लिए अब कई सॉफ्टवेयर भी हिन्दी के लिए बन रहे हैं। यह हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी की ताकत ही कही जाएगी कि इसके इतने ज्यादा उपयोगकर्ताओं के कारण ही अब भारत में बहुत सारी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां हिन्दी का भी उपयोग करने लगी हैं। हिन्दी की बढ़ती ताकत को महसूस करते हुए भारत में ई-कॉमर्स साइट भी ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों तक अपनी पहुंच बनाने के लिए हिन्दी में ही अपनी ‘ऐप’ लेकर आ रही हैं। हिन्दी इस समय देश की सबसे तेजी से बढ़ती भाषा है। यदि 2011 की जनगणना के आंकड़े देखें तो 2001 से 2011 के बीच हिन्दी बोलने वालों की संख्या में हमारे देश में करीब 10 करोड़ लोगों की बढ़ोतरी हुई। वर्ष 2001 में जहां 41.03 फीसदी लोगों ने हिन्दी को अपनी मातृभाषा बताया था, वहीं 2011 में ऐसे लोगों की संख्या करीब 42 करोड़ के साथ 43.63 फीसदी दर्ज की गई और जिस प्रकार हिन्दी का चलन लगातार बढ़ रहा है, माना जाना चाहिए कि उसके बाद के करीब एक दशक में हिन्दी बोलने वालों की संख्या में कई करोड़ लोगों की बढ़ोतरी हुई है।
भारत लंबे समय तक अंग्रेजों का गुलाम रहा और उस दौरान हमारे यहां की भाषाओं पर भी अंग्रेजी दासता का बुरा प्रभाव पड़ा। इसी कारण राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिन्दी को ‘जनमानस की भाषा’ बताते हुए वर्ष 1918 में आयोजित ‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ में इसे भारत की राष्ट्रभाषा बनाने को कहा था। सही मायने में तभी से हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने के प्रयास शुरू हो गए थे और गर्व का विषय यह है कि अब सैंकड़ों देशों में हिन्दी का प्रयोग धीरे-धीरे बढ़ रहा है। यदि भारतीय परिवेश में हिन्दी के प्रचलन को लेकर बात की जाए तो यह चिंता की बात है कि भारतीय समाज में बहुत से लोगों की मानसिकता ऐसी हो गई है कि हिन्दी बोलने वालों को वे पिछड़ा और अंग्रेजी में अपनी बात कहने वालों को आधुनिक का दर्जा देते हैं। हिन्दी का लगभग 1.2 लाख शब्दों का समृद्ध भाषा कोष होने के बावजूद अधिकांश लोग हिन्दी लिखते और बोलते समय अंग्रेजी भाषा के शब्दों का दिल खोलकर इस्तेमाल करते हैं।
ऐसे में विश्व हिन्दी दिवस के अवसर पर लोगों को हिन्दी भाषा के विकास, हिन्दी के उपयोग के लाभ तथा उपयोग न करने पर हानि के बारे में समझाया जाना बेहद जरूरी है। लोगों को इस बात के लिए प्रेरित किए जाने की आवश्यकता है कि हिन्दी उनकी राजभाषा है, जिसका सम्मान और प्रचार-प्रसार करना उनका कर्तव्य है और जब तक सभी लोग इसका उपयोग नहीं करेंगे, इस भाषा का विकास नहीं होगा। उन्हें यह अहसास कराए जाने का भी प्रयास किए जाने की सख्त दरकार है कि भले ही दुनिया में अंग्रेजी भाषा का सिक्का चलता हो लेकिन हिन्दी अब अंग्रेजी भाषा से ज्यादा पीछे नहीं है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)