– उमाशंकर पांडेय
पानी को बनाया नहीं बल्कि इसे केवल बचाया जा सकता है। उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के जखनी गांव की हरियाली सारी दुनिया के लिए उदाहरण है। यहां के मेड़बंदी मॉडल को जल संरक्षण के लिए सारे देश में कई जगह लागू किया जा चुका है। भारत का जल शक्ति मंत्रालय इसे पूरे देश के लिए उपयुक्त मानते हुए हर जिले में दो गांवों को जखनी जैसा जलग्राम बनाने के लिए चुन चुका है। नीति आयोग ने भी इस जल संरक्षण विधि को मान्यता दी है और इस आधार पर जखनी को आदर्श गांव माना है। लोग जागरूक हों तो सूखा और अकाल आ ही नहीं सकता। हमें अपने पूर्वजों के समाधान को अपनाना होगा। पुराने तालाबों और कुंओं का जीर्णोद्धार करना होगा। खेतों की मेड़बंदी कर घरों की नालियों का पानी भी खेतों में पहुंचाना होगा।
हमारे पुरखों की जल संरक्षण पर सोच ‘खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़’ रही है। इसी सोच ने जखनी के जख्म सोख लिए हैं। जखनी के लोगों की प्रशंसा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी कर चुके हैं। मगर इस बदलाव के लिए धैर्य की जरूरत होती है। यह एक दिन में संभव नहीं होता। जखनी को हरा-भरा करने के सामुदायिक प्रयास में दो-ढ़ाई दशक लग गए। अब “हमारा गांव गरीबी, भुखमरी, अपराध और तमाम विवादों से उबर चुका है। वर्षा जल बूंदों को रोकने से गांव का जलस्तर ही नहीं बढ़ा बल्कि गांव में समृद्धि आई और लोगों के पास पैसा आया।” अब दुनिया के लोग इस तकनीक को जानने के लिए उत्सुक हैं।
पिछले दिनों अहमदाबाद में इस तकनीक पर कई सत्र में चर्चा हुई। यह देखकर अच्छा लगा कि अपना जखनी आज दुनिया को राह दिखा रहा है। यहां जापान, ऑस्ट्रेलिया, यूएसए, फ्रांस, इटली और यूरोप के लोगों से मिलने का मौका सुखद रहा। यह लोग जखनी मॉडल को जानना-समझना चाहते हैं। मोयेज पूनावाला (ऑस्ट्रेलिया) , थॉम हन्ना (यूएसए), वेन मेयर (यूएसए), ओलिवियर गिलोटो (फ्रांस), तोशियो मुरामात्सु (जापान), ब्रूनो बेनाग्लिया (इटली) जेम्स वैलियरे (यूएसए), यूसुफ अत्तरवाला (फोराड) गुजरात, जॉनसन स्क्रीन के ग्लोबल डायरेक्टर क्रेक्स विल्सन (अमेरिका), राकेश अरोरा (पंजाब), विवेक सिंह (भूटान) अनिल शाह (पूना) और सीजीडब्ल्यूबी (जल शक्ति मंत्रालय भारत सरकार) के पूर्व अध्यक्ष डॉ. आरसी जैन ने गंभीरता के साथ भारत के पुरखों की परंपरागत सामुदायिक जल संरक्षण विधि ‘खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़’ के चमत्कार को सुनकर दंग रह गए। दुनिया के विकसित देशों के इन जल विशेषज्ञ वैज्ञानिकों ने माना कि जल संकट से घिरी दुनिया को यह विधि उबार सकती है। खुशी इस बात की है कि इजरायल में तो काफी पहले इस विधि पर परीक्षण हो चुका है।
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश का ‘बुंदेलखंड’ हर साल गर्मी में सूखे और अकाल से त्राहिमाम-त्राहिमाम करता रहा है। खुशी इस बात की है कि अब हालात बदल रहे हैं। जखनी गांव के लोगों के तीस साल के सामुदायिक प्रयास से सूखा खत्म हो गया है। खेत हर वक्त लहलहाते रहते हैं। अब तो हर साल मेड़बंदी यज्ञ यात्रा भी होने लगी है। प्रधानमंत्री के सकारात्मक संदेशों से जखनी के मूलमंत्र ‘खेत पर मेड़-मेड़ पर पेड़’ को जल आंदोलन के रूप में बदला जा सका है। यह वही बुंदेलखंड है जहां कभी आचार्य विनोबा भावे ने भूदान यज्ञ का आगाज किया था। यह सुखद है कि उसी बुंदेलखंड में मेड़बंदी यज्ञ शुरू होने लगा है। मेड़ बंदी से जल रोकने का उल्लेख मत्स्य पुराण, जल संघिता, आदित्य स्त्रोत के अलावा वेदों में भी खासकर ऋग्वेद में है। कालखंड बेशक बदला है पर दोनों का लक्ष्य एक ही है। मगर यह सुनकर क्षोभ होता है कि दुनिया भर में 320 करोड़ लोग पानी की कमी वाली जगहों पर रहते हैं।
दुनिया सूखे और पानी की कमी का संकट झेल रही है। ऐसे क्षेत्रों में भी जहां कभी खूब बारिश होती थी, वहां संकट बढ़ रहा है। साल 2018 में दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन में नल लगभग सूख गए थे। संसार के किसी ऐसे बड़े शहर में इससे पहले ऐसी स्थिति कभी नहीं आई थी। हालांकि स्थानीय लोगों और व्यापार पर कड़े प्रतिबंध के जरिए “डे जीरो” की स्थिति आने से रोक लिया गया। शहर में पानी का बिल बढ़ा दिया गया और ज्यादा पानी इस्तेमाल करने वालों पर जुर्माना लगाया गया। साथ ही कम पानी में खेती कैसे हो ताकि जमीन में नमी बनी रहे, इस पर काम किया गया। आखिरकार यह नियम बनाना पड़ा कि हर व्यक्ति को एक दिन में सिर्फ 50 लीटर पानी मिलेगा। कपड़े धोने की मशीनों के लिए भी पानी का कोटा तय कर दिया गया। अगर ऐसी स्थिति से बचना है तो वर्षा जल की बूंदों को सहेजने की जरूरत है। बिना उसके गुजारा नहीं होगा। भारत की पुरानी विधि को अपनाने की जरूरत है।
(लेखक, भारत सरकार के पहले जलयोद्धा पुरस्कार से सम्मानित हैं।