Friday, November 22"खबर जो असर करे"

योगी के तंज में छुपी, भविष्य की राजनीति

– डॉ. आशीष वशिष्ठ

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बारिश के दौरान मोटरसाइकिल सवार एक व्यक्ति और उसकी पत्नी पर सड़क पर भरा पानी उछालने और महिला को खींचकर गिराने के मामले में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कड़ा रुख अपनाया है। इसकी गूंज विधानसभा तक में सुनाई दी। मुख्यमंत्री ने सदन में दो आरोपितों का नाम लिया, जिस पर जमकर राजनीति भी हो रही है। योगी ने जिन आरोपितों का नाम लिया उनमें एक मुस्लिम और एक यादव था, जिसका मकसद मुख्य विपक्षी दल सपा पर निशाना साधना था। योगी ने तंज भरे अंदाज में कहा, ”यह सद्भावना वाले लोग हैं? यानी अब इनके लिए सद्भावना ट्रेन चलाएंगे?…नहीं इनके लिए बुलेट ट्रेन चलेगी।”

सभी आरोपितों के नाम सामने आने के बाद विपक्षी दलों ने मुख्यमंत्री योगी को घेरना शुरू कर दिया है। विपक्षी दलों का कहना है कि अपराधियों की न जाति होती है और न धर्म लेकिन योगी आदित्यनाथ ने सदन में उनकी धार्मिक और जातीय पहचान को रेखांकित किया जो निंदनीय है। सनद है कि

मुस्लिम-यादव (एमवाई) फॉर्मूले के सहारे समाजवादी पार्टी लंबे समय से सूबे में अपनी राजनीति कायम रखे हुए है। माना जाता है कि समाजवादी पार्टी का मुस्लिम और यादव पारंपरिक वोटर हैं। इसी समीकरण के सहारे समाजवादी पार्टी यूपी में चार बार सरकार बना चुकी है। सपा ने एमवाई डी यानी दलित व दूसरी जातियों पर फोकस किया तो वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में उसकी सीटें 47 से बढ़कर 111 हो गईं। मतदान प्रतिशत भी अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया।

उत्तर प्रदेश की आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी लगभग 20 प्रतिशत है और 2022 के चुनाव में सपा को उनका पूरा समर्थन 2017 के चुनाव की तुलना में इसके टैली में सुधार का एक महत्वपूर्ण कारक था। पिछले कुछ चुनावों में गैर-यादव ओबीसी के वोटों ने भाजपा की जीत सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अनुमान के अनुसार, ओबीसी उत्तर प्रदेश की आबादी का लगभग 40-50 प्रतिशत हिस्सा हैं। यादव राज्य की आबादी का लगभग 8-10 प्रतिशत हिस्सा हैं। इसलिए अखिलेश को अपनी पार्टी के आधार को अपने पारंपरिक मुख्य समर्थकों, यादवों से आगे बढ़ाकर अन्य ओबीसी समुदायों को भी शामिल करने की आवश्यकता थी।

प्रदेश में दलितों की भी अच्छी खासी आबादी है, जो करीब 20 प्रतिशत है और परंपरागत रूप से बसपा के वफादार रहे हैं। अखिलेश दलितों के एक वर्ग तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं, जो लंबे समय से पार्टी की गिरावट से हतोत्साहित हो गए हैं।

लोकसभा चुनाव के लिए अखिलेश यादव ने पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) को साथ लेकर चुनाव मैदान में उतरे। अखिलेश को लगा कि अल्पसंख्यक के नाम पर भाजपा मुसलमानों की आड़ में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कर सकती है। फिर उन्होंने पीडीए के ‘ए’ को कभी अगड़ा बताया तो कभी आधी आबादी मतलब महिलाएं। इसी फार्मूले पर अखिलेश यादव ने टिकट बांटे। इस बार ‘एमवाई’ वाले सालों पुराने सामाजिक समीकरण को तिलांजलि दे दी गई। मुस्लिम और यादव तो हर हाल में समाजवादी पार्टी के साथ रहेंगे। इस सोच के आधार पर अखिलेश यादव ने इस बार के चुनाव में अपनी रणनीति बदल ली। जिसका फायदा पार्टी को मिला और सपा ने ऐतिहासिक 37 सीटों पर जीत दर्ज की।

राजनीतिक विशलेषक केपी त्रिपाठी के अनुसार, “ आज भले ही अखिलेश पीडीए का राग अलाप रहे हैं। लेकिन उनकी मजबूती का आधार एमवाई समीकरण ही है। इसलिए मुख्यमंत्री योगी ने हुडदंगियों का नाम लेते हुए यादव और मुस्लिम का नाम लिया। योगी ने सपा के कोर वोट बैंक पर सीधा प्रहार किया है।” त्रिपाठी कहते हैं कि, ”योगी आदित्यनाथ और भाजपा सपा पर अपराधियों को संरक्षण देने का आरोप लगाती रहती है। सपा के शासन में कानून व्यवस्था किसी से छुपी नहीं रही। इसमें कोई दोराय नहीं है कि लचर कानून व्यवस्था सपा सरकार की सबसे बड़ी कमजोरी रही है। ऐसे में योगी आदित्यनाथ ने प्रदेशवासियों को यह संदेश ​सदन से दिया है कि अगर ये सद्भावना वाले लोग सत्ता में आ गये तो प्रदेश में बहन बेटियों और आमजन की जिंदगी दुश्वार हो जाएगी। आने वाले समय में भाजपा सपा को इस मुद्दे पर घेरती नजर आएगी।”

अधिवक्ता मोहित शर्मा कहते हैं कि, ”कड़ी कानून व्यवस्था मुख्यमंत्री योगी की यूएसपी रही है। प्रदेश की जनता खासकर महिलाएं कानून व्यवस्था के मामले में योगी जी की बड़ी प्रशसंक है। गोमती नगर की घटना पर सख्त कार्रवाई और सदन में अपने भाषण से साफ कर दिया है कि अगर सपा की राजनीतिक ताकत बढ़ेगी तो आमजन का जीना मुहाल हो जाएगा। प्रदेश में कानून का राज केवल भाजपा की सरकार ही कर सकती है।”

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।