Thursday, November 21"खबर जो असर करे"

अमेरिका में भी ‘हिंदुआना हरकत’?

– डॉ. वेदप्रताप वैदिक

अमेरिका के सिएटल शहर में जाति-आधारित भेदभाव पर प्रतिबंध लग गया है। सिएटेल के नगर निगम ने यह घोषणा अपनी एक सदस्य क्षमा सावंत के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए की है। इस घोषणा ने सिएटल को अमेरिका का ऐसा पहला शहर बना दिया है, जहां जातीय भेदभाव अब समाप्त हो जाएगा।

सिएटल अमेरिका के सुंदर शहरों में गिना जाता है। मैं उसमें रह चुका हूं। वहां के एक प्रसिद्ध बाजार में भारतीयों, पाकिस्तानियों और नेपालियों की कई दुकानें हैं। उस शहर में लगभग पौने दो लाख लोग ऐसे हैं, जो दक्षिण एशियाई मूल के हैं। आप सोचते होंगे कि भारत में सदियों से चली आ रही यह जातिवादी भेदभाव की बीमारी अमेरिका में कैसे फैल गई है?

विदेशों में भी रहकर भारतीय और पड़ोसी देशों के लोगों में यह तथाकथित ‘हिंदुआना हरकत’ कैसे फैली हुई है। पाकिस्तान में जातिवाद और मूर्तिपूजा को लोग ‘हिंदुआना हरकत’ ही कहते हैं लेकिन देखिए इस हरकत का चमत्कार कि यह भारत, पाकिस्तान और पड़ोसी देशों के मुसलमानों, ईसाई और सिखों में भी ज्यों की त्यों फैली हुई है। यहां तक कि अफगानों में भी यह किसी न किसी रूप में फैली हुई हैं। वहां भी मजहब के मुकाबले जाति की महत्ता कहीं ज्यादा है। अब से 50-55 साल पहले जब मैं अमेरिका में पढ़ता था, तब भारतीयों की संख्या वहां काफी कम थी। तब किसी की जात-पांत का कोई खास महत्व नहीं होता था।

न्यूयार्क के बाजारों में दिनभर में एक-दो भारतीय दिख जाते थे तो उन्हें देखकर मन प्रसन्न हो जाता था लेकिन अब तो अमेरिका के छोटे शहरों और कस्बों में भी आपको भारतीय लोग अक्सर मिल जाते हैं। उनमें अब आपसी प्रतिस्पर्धा और ईर्ष्या-द्वेष भी काफी बढ़ गया है। वे सभी क्षेत्रों में बड़े-बड़े पदों पर भी विराजमान हैं। वहां भी अब जातिवाद का जहरीला पौधा पनप रहा है। ‘इक्वेलिटी लेव’ नामक संस्था ने जो आंकड़े इकट्ठे किए हैं, वे चौंकाने वाले हैं। उसके अनुसार नौकरियों और शिक्षा में तो जातीय भेदभाव होता ही है, सार्वजनिक शौचालयों, बसों, होटलों और अस्पतालों में भी यह फैल रहा है। सिएटल नगर निगम ने इस पर जो प्रतिबंध लगाए हैं, उनका कुछ प्रवासी संगठनों ने स्वागत किया है लेकिन लगभग 100 प्रवासी संगठनों ने क्षमा सावंत की इस पहल का विरोध किया है।

इस पहल को उन्होंने बेबुनियाद कहा है। इसे दक्षिण एशिया और विशेषकर भारत को बदनाम करने का हथकंडा भी माना जा रहा है। इस मामले में सबसे अच्छा तो यह हो कि भेदभाव के ठोस आंकड़े और प्रमाण एकत्र किए जाएं और यदि वे प्रामाणिक हों तो उनके विरुद्ध प्रवासियों में इतनी जन-जागृति पैदा की जाए कि कानूनी कार्रवाई की जरूरत ही न पड़े।

(लेखक, भारतीय विदेश परिषद नीति के अध्यक्ष हैं।)