– आशीष वशिष्ठ
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पांच फरवरी को लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद भाषण में कहा कि हमारा तीसरा कार्यकाल 1,000 सालों की नींव रखने का काम करेगा और उसमें बहुत बड़े फैसले होंगे। इससे पहले दो फरवरी को ‘इंडिया मोबिलिटी ग्लोबल एक्सपो’ के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री ने तीसरे कार्यकाल की योजनाओं के बारे में बताया था। उनके तीसरे कार्यकाल की बात करने पर लोग लगातार तालियां बजाते रहें। इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने मुस्कुराते हुए कहा कि समझदार को इशारा ही काफी होता है। 26 जुलाई 2023 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली के प्रगति मैदान में नए इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर भारत मंडपम के उद्घाटन के अवसर पर कहा था कि मेरे तीसरे कार्यकाल में भारत दुनिया की शीर्ष तीन अर्थव्यवस्थाओं में से एक होगा, ये मोदी की गारंटी है। प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे और भाषणों में झलकता आत्मविश्वास विपक्ष की बेचैनी का बड़ा कारण है।
बीते साल प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर ऐलान किया था कि अगले साल वे फिर लाल किले की ऐतिहासिक प्राचीर से देश को संबोधित करेंगे और अपनी उपलब्धियों का ब्योरा पेश करेंगे। लेकिन यह अहंकार नहीं है। यह बिल्कुल वैसी ही बात है, जैसी बात विपक्षी पार्टियां कर रही हैं। वास्तव में यह अहंकार का नहीं, बल्कि दोनों तरफ आत्मविश्वास का मामला है। एक तरफ विपक्ष इस आत्मविश्वास से भरा है कि अगले लोकसभा चुनाव में उसकी जीत होगी तो दूसरी ओर प्रधानमंत्री मोदी इस भरोसे में हैं कि वे तीसरी और ऐतिहासिक जीत हासिल कर पंडित नेहरू का रिकॉर्ड तोड़ेंगे।
केवल प्रधानमंत्री मोदी के भाषणों में ही नहीं, बल्कि उनकी सरकार के दूसरे कार्यकाल के आखिरी वर्ष में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से पेश अंतरिम बजट में भी सरकार का आत्मविश्वास झलकता है। उसमें देश को विकसित राष्ट्र बनाने के संकल्प का परिचय भी मिलता है। यह एक ऐसा अंतरिम बजट है, जिसमें सरकार ने चुनाव जीतने के लिए मतदाताओं को रिझाने के लिए कोई लोकलुभावन घोषणा नहीं की। ध्यान रहे 2019 के अंतरिम बजट में कई लोकलुभावन घोषणाएं की गई थीं। इस बार ऐसा कुछ नहीं किया गया। इसका मतलब है कि सरकार मानकर चल रही है कि जनता को उस पर भरोसा है कि वह देशहित में सही दिशा में काम कर रही है।
विकास की राजनीति का यह एक नया उदाहरण है। जब सामने लगातार तीसरी पारी की लड़ाई का मैदान सज रहा हो और यह अपेक्षा हो कि लोकलुभावन घोषणाओं का तड़का लगेगा, तब नरेन्द्र मोदी सरकार की ओर से सामाजिक न्याय व समानता के अवसर पैदा करते हुए भविष्य के विकसित भारत का संकल्प दोहराना यह स्पष्ट करता है कि केंद्र में वापसी का विश्वास लबालब है। प्रधानमंत्री मोदी लोकलुभावन घोषणाओं के जरिए नहीं बल्कि अपने दस साल के ट्रैक रिकॉर्ड, जो कहा सो पूरा किया के नारे के साथ ही जनता से समर्थन चाहते हैं। मोदी-2 की सरकार ने आते ही जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की विदाई कर दी। राम मंदिर का रास्ता साफ किया और सीएए, एनआरसी जैसे कानून लेकर आई। मोदी-2 कार्यकाल की विदाई के चार महीने पहले अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा भी हो गई। पिछले दिनों आई एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले दस वर्षों में 25 करोड़ लोग गरीबी की मार से बाहर निकले हैं। ग्रामीण स्तर पर वह सारी सुविधाएं पहुंच रही हैं जो पहले छोटे शहरों तक में उपलब्ध नहीं थीं। आयुष्मान योजना के परिणाम भी बहुत अच्छे हैं। सड़क, रेल और हवाई यातायात का परिदृश्य बदल रहा है। मैन्यूफैक्चरिंग के कारण रोजगार के नए रास्ते खुल रहे हैं। लोगों की औसत आय में 50 फीसद की बढ़ोतरी हुई है और सामान्य रूप से यह विमर्श बना है कि देश बदल रहा है, आने वाले समय में दूसरों के लिए पथ प्रदर्शक बनेगा। इसमें कोई दोराय नहीं है कि देश आत्मविश्वास से भर रहा है और गौरव से भर रहा है। आज पूरे विश्व में भारत को लेकर सकारात्मकता, आशा, भरोसा बढ़ा है।
प्रधानमंत्री मोदी की अपार लोकप्रियता और अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन को लेकर बने माहौल को देखते हुए केंद्र में लगातार तीसरी बार भाजपा की सरकार बनना लगभग तय है। ब्रिटेन के प्रमुख अखबार द गार्डियन में यह संभावना जताने के साथ ही कहा गया है कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान में जीत ने पार्टी की ताकत को और बढ़ाया ही है। अखबार में हन्ना एलिस पीटरसन के कॉलम में कहा गया है कि तीन राज्यों की जीत लोकसभा में भाजपा की संभावनाओं को और मजबूत करने वाली है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी खुद इस विधानसभा चुनाव की जीत को 2024 में जीत की गारंटी बता चुके हैं। लेख में कहा गया है कि विपक्षी दलों की तरफ से कुछ ही माह पहले बनाया गया गठबंधन भले ही सामूहिक रूप से भाजपा के खिलाफ लड़ने की प्रतिबद्धता जता रहा हो लेकिन वह अभी भी एकजुट नहीं हो पाया है।
प्रधानमंत्री मोदी के आत्मविश्वास के पीछे का कारण केवल खोखली राजनीतिक बयानबाजी नहीं है। इसके ठोस कारण हैं। पिछले दस वर्षों में जिस तरह से अलग-अलग क्षेत्रों में भारत आत्मनिर्भर हुआ है, उसने यह शक्ति प्रधानमंत्री मोदी को दी है। न सिर्फ घरेलू मोर्चे पर भारत की उत्पादकता बढ़ी है बल्कि उसने कई क्षेत्रों में निर्यात भी शुरू किया है। अब से कुछ दशक पहले भारत हर छोटी-बड़ी चीज के लिए विश्व के उन देशों का भी मुंह ताकत रहा, जो किसी न किसी तरीके से अपना हित साधने के लिए तमाम अंतरराष्ट्रीय उठापटक के लिए जिम्मेदार होते थे। मोदी सरकार की नीतियों ने ऐसे देशों की शक्ति और वर्चस्व वास्तव में कम की है और भारत को एक शक्तिशाली राष्ट्र के तौर पर विश्व पटल पर खड़ा किया है। आज विश्व के तमाम बड़े, शक्तिशाली और उन्नत देश भी भारत की बढ़ती शक्ति, वर्चस्व और प्रभाव को स्वीकार रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ‘भ्रष्टाचार, परिवारवाद और तुष्टिकरण’ को देश का सबसे बड़ा दुश्मन मानते हैं। उन्होंने अपने कार्यों के दम पर समूचे विपक्ष को इन्हीं तीन चीजों के दायरे में समेटा है। विपक्ष को इसका उत्तर देशवासियों को देना होगा। इसके अलावा सरकार की योजनाएं हैं, करोड़ों लाभार्थी हैं, भाजपा की मशीनरी है, संसाधन है, मोदी का व्यक्तित्व है, उनकी प्रचार करने और भाषण देने की अद्भुत क्षमता है और ऐसी अनेक चीजें हैं, जो उनको आत्मविश्वास देती हैं।
मोदी सरकार सिर्फ रिपोर्ट कार्ड के साथ लोकसभा चुनाव के लिए सजाए जा रहे मैदान में उतरने वाली है। विपक्षी गठबंधन का हाल देश की जनता देख ही रही है। सीटों के बंटवारे और तुच्छ स्वार्थों के लिए जिस तरह विपक्षी दल आपस में लड़ रहे हैं, उससे उनकी नीति और नीयत साफ तौर पर दिखाई देती है। विपक्षी दल जनता की सेवा करने या उसके मुद्दे उठाने की बजाय खुद को भ्रष्टाचार से बचाने की जुगत में लगे हैं। राहुल गांधी भारत जोड़ो न्याय यात्रा पर हैं। जैसे-जैसे उनकी यात्रा आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे इंडी गठबंधन में अविश्वास भी बढ़ रहा है। इंडी गठबंधन लगभग खत्म होने की कगार पर है। विपक्ष को यह समझ नहीं आ रहा है कि वह देश के सामने किस मुद्दे को लेकर जाए और किस मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरे। वास्तव में लोकसभा चुनाव की लड़ाई विश्वास की होगी। अब यह देशवासियों को तय करना है कि उनका भरोसा किस पर है- विकसित भारत की मोदी गारंटी पर या विपक्ष पर।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)