– योगेश कुमार गोयल
साक्षरता के महत्व के बारे में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 08 सितंबर को विश्वभर में ‘अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस’ मनाया जाता है। दुनिया से अशिक्षा को समाप्त करने के संकल्प के साथ आज 56वां ‘अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस’ मनाया जा रहा है। पहली बार यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन) द्वारा 17 नवम्बर 1965 को 8 सितंबर को ही अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाए जाने की घोषणा की गई थी, जिसके बाद प्रथम बार 8 सितंबर 1966 से शिक्षा के प्रति लोगों में जागरुकता बढ़ाने तथा विश्वभर के लोगों का इस ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए प्रतिवर्ष इसी दिन यह दिवस मनाए जाने का निर्णय लिया गया। वास्तव में यह संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों का ही प्रमुख घटक है।
निरक्षरता को खत्म करने के लिए ईरान के तेहरान में शिक्षा मंत्रियों के विश्व सम्मेलन के दौरान वर्ष 1965 में 8 से 19 सितंबर तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा कार्यक्रम पर चर्चा करने के लिए पहली बार बैठक की गई थी और यूनेस्को ने नवम्बर 1965 में अपने 14वें सत्र में 8 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस घोषित किया। उसके बाद से सदस्य देशों द्वारा प्रतिवर्ष 8 सितंबर को ‘अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस’ मनाया जाता है। मानव विकास और समाज के लिए उनके अधिकारों को जानने और साक्षरता की ओर मानव चेतना को बढ़ावा देने के लिए ही अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाया जाता है। निरक्षरता समाप्त करने के लिए प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रमों के पक्ष में वातावरण तैयार किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार विश्वभर में करीब एक अरब लोग ऐसे हैं, जो पढ़ना-लिखना नहीं जानते। तमाम प्रयासों के बावजूद दुनियाभर में 77 करोड़ से भी अधिक युवा भी साक्षरता की कमी से प्रभावित हैं अर्थात प्रत्येक पांच में से एक युवा अब तक साक्षर नहीं है।इनमें से दो तिहाई महिलाएं हैं। आंकड़े बताते हैं कि 6-7 करोड़ बच्चे आज भी ऐसे हैं, जो कभी विद्यालयों तक नहीं पहुंचते। करीब 58 फीसदी के साथ सबसे कम व्यस्क साक्षरता दर के मामले में दक्षिण और पश्चिम एशिया सर्वाधिक पिछड़े हैं।
सामाजिक प्रगति प्राप्ति पर ध्यान देने के लिए 2006 में अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस का विषय ‘साक्षरता सतत विकास’ रखा गया था। वर्ष 2007 और 2008 में अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस की विषय-वस्तु ‘साक्षरता और स्वास्थ्य’ थी। वर्ष 2009 में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण पर ध्यान देने के लिए इसकी विषय ‘साक्षरता और सशक्तिकरण’ रखी गई। 2010 की थीम ‘साक्षरता विकास को बनाए रखना’ थी। 2011 में अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस के लिए थीम ‘साक्षरता और महामारी’ पर केन्द्रित थी। 2012 में लैंगिक समानता और महिलाओं को सशक्त बनाने पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए थीम थी ‘साक्षरता और सशक्तिकरण’। 2013 में शांति के लिए साक्षरता के महत्व पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए ‘साक्षरता और शांति’, 2014 में ‘21वीं शताब्दी के लिए साक्षरता’, 2015 में ‘साक्षरता और सतत विकास’, 2016 में ‘अतीत पढ़ना, भविष्य लिखना’, 2017 में ‘डिजिटल दुनिया में साक्षरता’ तथा 2018 में ‘साक्षरता और कौशल विकास’ अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस की थीम थी। 2019 में अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस की ‘साक्षरता और बहुभाषावाद’ तथा वर्ष 2020 में ‘कोविड-19 संकट और उससे संबंधित शिक्षा और शिक्षण’ थी।
वर्ष 2021 के लिए अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस की थीम ‘मानव-केन्द्रित पुनर्प्राप्ति के लिए साक्षरता: डिजिटल विभाजन को कम करना’ (लिटरेसी फॉर ए ह्यूमन-सेंट्रड रिकवरी: नैरोइंग द डिजिटल डिवाइड) रखी गई थी। इस वर्ष साक्षरता दिवस की थीम ‘ट्रांसफॉर्मिंग लिटरेसी लर्निंग स्पेसेस’ (साक्षरता सीखने के स्थान को बदलना) निर्धारित की गई है। साक्षरता का अर्थ केवल पढ़ना-लिखना या शिक्षित होना ही नहीं है बल्कि सफलता और जीने के लिए भी साक्षरता बेहद महत्वपूर्ण है। यह लोगों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक करते हुए सामाजिक विकास का आधार स्तंभ बन सकती है। भारत हो या दुनिया के अन्य देश, गरीबी मिटाना, बाल मृत्यु दर कम करना, जनसंख्या वृद्धि नियंत्रित करना, लैंगिक समानता प्राप्त करना आदि समस्याओं के समूल विनाश के लिए सभी देशों का पूर्ण साक्षर होना बेहद जरूरी है। साक्षरता में ही वह क्षमता है, जो परिवार और देश की प्रतिष्ठा बढ़ा सकती है।
आंकड़े देखें तो दुनिया के 127 देशों में से 101 देश ऐसे हैं, जो पूर्ण साक्षरता हासिल करने के लक्ष्य से अभी दूर हैं और चिंता की बात है कि भारत भी इनमें शामिल है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से निरक्षरता समाप्त करना भारत के लिए प्रमुख चिंता का विषय रहा है। हालांकि आजादी के बाद साक्षरता दर देश में काफी तेजी से बढ़ी है। देश में विद्यालयों की कमी, विद्यालयों में शौचालयों आदि की कमी, निर्धनता, जातिवाद, लड़कियों के साथ छेड़छाड़ या बलात्कार जैसी घटनाओं का डर, जागरुकता की कमी इत्यादि साक्षरता का लक्ष्य हासिल न हो पाने के मुख्य कारण हैं। अतः इनके निदान के लिए गंभीर प्रयास होने नितांत आवश्यक हैं।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)