– योगेश कुमार सोनी
देश की सड़कों पर लावारिस पशुओं के जमघट से होने वाले हादसों में इंसानी मौतें गंभीर चिंता का विषय हैं। ऐसा कोई ही हाइवे होगा जहां खून न बहता हो। दुर्भाग्य यह है कि अधिकांश राज्य सरकारों के पास इन हादसों को रोकने और लावारिस पशुओं को आश्रय देने की कोई ठोस योजना नही हैं। उन्हें यह भी फुर्सत नहीं कि वह इस दिशा में अच्छा काम कर रही किसी सूबे की सरकार का अनुकरण करने की पहल करें। सड़कों पर पशुओं की वजह से होने वाली इन अप्राकृतिक मौतों को रोकने की दिशा में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने शानदार पहल कर देश को आईना दिखाया है। काश, इस पर बाकी राज्य भी अमल कर संवेदनशील बनने की कोशिश करते। दरअसल ऐसी मौतें रात को ज्यादा होती हैं। ज्यादातर ग्रामीण लावारिस पशुओं को गांव की सीमा से दूर खदेड़ देते हैं। कुछ लोग तो अंधेरे का फायदा उठाकर पशुओं के झुंड को सड़कों पर छोड़कर नौ दो ग्यारह हो जाते हैं। इन पशुओं की वजह से हर रोज तमाम लोगों की जान जाती है। प्रशासन का रोना यह होता है कि समझाने के बावजूद लोग नहीं मानते। पिछले दिनों दिल्ली-जयपुर हाइवे पर बैल से टरकाने से बड़ा हादसा हुआ। तीन कारें एक साथ टकरा गईं। इस हादसे में सात सात लोगों की मौत हो गई। ऐसे अनगिनत हादसे लोगों को अनाथ कर रहे हैं। बीच-बीच में मांग उठती रहती है कि लावारिस पशुओं को हाइवे पर छोड़ने वालों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान होना चाहिए। इसके लिए एक नया विभाग सृजित किया जाए।
यह भी बड़ा सच है कि यह लावारिस पशु हादसों के अलावा ट्रैफिक जाम का कारण भी बनते हैं। हाइवे पर वाहन तेज रफ्तार होते हैं। अचानक जानवर के सामने आ जाने पर एक्सीडेंट होना स्वाभाविक है। एक पुलिस अधिकारी के मुताबिक हाइवे पर सुरक्षा और लावारिस जानवरों की आवाजाही पर रोक की जिम्मेदारी नेशनल हाइवे अथॉरिटी की होती है। टोल प्रशासन का कहना है कि हाइवे पर पशुओं को हटाने के लिए दल नियुक्त किया जाता है। पशुओं से होने वाले इन हादसों के लिए पशु मालिक ही जिम्मेदार माना जाता है। हैरानी यह है कि सरकारें इस समस्या को व्यवस्थित करने के तमाम विभागों के अंतर्गत बजट पारित करती हैं। बावजूद इसके हादसे रुकते नहीं। यह लावारिस पशु फसलों को भी चौपट करते हैं। कई बार यह जानवर रेलवे ट्रैक पर भी आकर बेमौत मारे जाते हैं। ऐसे हादसों से ट्रेन सेवा भी बाधित होती । लावारिस पशुओं खासतौर पर लावारिस गोवंश को रखने के लिए हर पंचायत समिति क्षेत्र में गौशाला की अनिवार्यता की भी लंबे समय से मांग हो रही है।
अब आइए उत्तर प्रदेश में। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ संभवतः इस मामले में बहुत संवेदनशील हैं। उनकी लावारिस गायों और अन्य पशुओं के लिए तैयार की गई योजना कारगर सिद्ध हो रही है। दावा किया जा रहा है कि इससे हादसों में कुछ कमी आई है। कुछ गौरक्षक दल बेहतर कार्य कर रहे हैं। इस साल अप्रैल से अब तक उत्तर प्रदेश में 66,000 लावारिस पशुओं का पुनर्वास किया जा चुका है। प्रखंड स्तर पर विशाल गौशालाएं बनाई जा रही हैं। इनमें 400 पशुओं को एक साथ रखा जा सकता है। उत्तर प्रदेश में ऐसे 225 आश्रय स्थल हैं। इस साल के अंत तक इनकी संख्या बढ़कर 280 हो जाएगी। केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के 2019 के आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में 11,84,494 लावारिस मवेशी हैं। यह संख्या देश में सबसे ज्यादा है। विधानसभा चुनाव में विपक्ष ने इस मसले को राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा पर हमला करने के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। सरकार का कहना है कि-राज्य में लावारिस पशुओं के पुनर्वास का करीब 90 फीसदी काम पूरा हो चुका है। बाकी इस साल के अंत तक पूरा कर लिया जाएगा। राज्य पशुपालन विभाग ने अप्रैल से अब तक 3,38,996.1 टन चारे की व्यवस्था की है। इसमें से 2,91,409.4 टन की खरीद की जा चुकी है। 47,604.3 टन चारा दान के रूप में प्राप्त हुआ है। विभाग ने यह योजना शुरू की है कि कोई भी व्यक्ति लावारिस पशुओं को अपने घर या खेत में रख सकता है और उसे 30 रुपये प्रति पशु प्रतिदिन के हिसाब से भुगतान किया जाएगा। इस योजना के तहत कुल 1.38 लाख लावारिस मवेशियों को आश्रय मिल चुका है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)