– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटेन सबसे बड़े संकट का सामना कर रहा है। इस संकट की शुरुआत कोरोना महामारी के दौरान हो गई थी। अपनी स्वास्थ्य व्यवस्था पर गर्व करने वाला ब्रिटेन कोरोना के सामने लाचार हो गया था। वहां की सरकार ने तो पूरी तरह समर्पण कर दिया था। उस समय विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आपदा प्रबंधन की विशेष रूप में प्रशंसा की थी। संगठन का कहना था कि ब्रिटेन को भी मोदी योगी मॉडल से प्रेरणा लेनी चाहिए। इसी क्रम में नरेन्द्र मोदी ने आयुर्वेद की दुनिया का ध्यानाकर्षण किया। इसको कोरोना से मुकाबले में सर्वाधिक कारगर माना गया। भारतीय जीवनशैली की चर्चा दुनिया में हुई। पश्चिम की उपभोगवादी सभ्यता संस्कृति इस संकट के सामने टिक नहीं सकी। भारतीय संस्कृति और विरासत के प्रति आकर्षण बढ़ने लगा।
इसके कुछ पहले से ही भारतीय विरासत को दुनिया में प्रतिष्ठा मिलने लगी थी। इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को है। उन्होने प्रधानमंत्री बनने के बाद भारतीय विदेश नीति को नया आयाम दिया था। संयुक्तराष्ट्र संघ महासभा में उन्होने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का प्रस्ताव किया था। इस प्रस्ताव ने सफलता का कीर्तिमान बनाया । सबसे कम समय में सर्वाधिक देशों का समर्थन इस प्रस्ताव को मिला था। उसके बाद पूरी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है। नरेन्द्र मोदी अपनी विदेश यात्राओं में मेजबान नेताओं को भगवत गीता और देवी देवताओं की मूर्ति भेंट में देते हैं। बात आगे बढ़ी तो पता चला कि अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति हनुमान भक्त हैं। वह हनुमान चालीसा अपने पास रखते हैं।
भारत की यात्रा पर पहुंचने वाले अमेरिका, ब्रिटेन अन्य यूरोपीय देशों जापान और ऑस्ट्रेलिया के नेता मोदी के साथ मंदिरों के दर्शन करने लगे। मंदिर की सीढ़ियों पर बैठ कर द्विपक्षीय वार्ता होने लगी। काशी की गंगा आरती में विदेशी मेहमान पहुंचने लगे। कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के उद्घाटन में करीब दो दर्जन देशों के प्रतिनिधि सहभागी हुए थे। अयोध्या में अनेक देशों की रामलीला आयोजित होने लगी।
ऋषि सुनक के ब्रिटिश प्रधानमंत्री बनने पर इन प्रसंगों का उल्लेख अजीब लग सकता है। लेकिन ब्रिटिश राजनीति में उनके महत्व को बढ़ाने में यह तथ्य भी सहायक थे। कंजरवेटिव पार्टी में दिग्गज नेताओं की कमी नहीं है। ऐसे में भारतीय मूल के व्यक्ति का प्रधानमंत्री बन जाना सामान्य बात नहीं है। उनकी पार्टी का नाम ही कंजरवेटिव अर्थात रूढ़िवादी है। अंग्रेजों में अपने को श्रेष्ठ समझने का रूढ़िवादी विचार भी रहा है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में भारतीय जीवन मूल्यों को नरेन्द्र मोदी के प्रयासों से जो प्रतिष्ठा मिली है, उससे अंग्रेजों का भारतीय विरासत पर विश्वास बढ़ा है। कुछ वर्ष पहले तक अंग्रेज भारतीय मूल के व्यक्ति की ताजपोशी का सपना भी नहीं देख सकते थे। मंत्री बनने तक गनीमत थी। लेकिन प्रधानमंत्री पद पर वह भारतीय मूल के व्यक्ति को बर्दाश्त नहीं कर सकते थे। विगत आठ वर्षों में जिस पर माहौल में परिवर्तन आया है, उसी का लाभ ऋषि को मिला।
वह ब्रिटेन के निर्विरोध प्रधानमंत्री बने हैं। उन्होंने भी बदलते माहौल को बखूबी समझा है। कुछ वर्ष पहले से ही उन्होंने अपने हिन्दू होने पर गर्व व्यक्त करना शुरू कर दिया था। यदि वह ऐसा न करते तो शायद उन्हें संकट के इस दौर में ऐसा समर्थन न मिलता। वित्त मंत्री पद की शपथ उन्होंने गीता पर हाथ रख कर ली थी। उन्होंने अपने मन्दिर जाने और गौ सेवा करने की फोटो मीडिया में साझा की। अंग्रेजों ने इसी आधार पर सुधार और परिवर्तन की अपेक्षा की। अन्यथा एक समय था जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल ने कहा था कि हम भारतीयों के हित में ही वहां शासन कर रहे हैं। मैं ब्रिटेन का प्रधानमंत्री इसलिए नहीं बना हूं कि भारत को स्वाधीनता देकर ब्रिटिश साम्राज्य का दिवाला निकाल दूं। भारत सदियों से ब्रिटेन का गुलाम रहा है। इसके निवासियों को आजादी के सपने देखने का कोई अधिकार नहीं है। ब्रिटिश साम्राज्य इतना शक्तिविहीन नहीं हो गया है कि वह भूखे, नंगे, भारतवासियों को कुचल न सके।
द्वितीय विश्वयुद्ध के समय विंस्टन चर्चिल ब्रिटिश प्रधानमंत्री थे। उनका कहना था कि भारतीयों में शासन करने की योग्यता नहीं है। यदि भारत को स्वतंत्र कर दें तो वह ठीक से शासन नहीं कर सकेंगे। आज उस देश में भारतीय मूल का व्यक्ति चर्चिल की कुर्सी पर आसीन हुआ है। ऋषि सुनक ने कहा कि मैं एक गौरवशाली हिंदू हूं। यही मेरा धर्म है। उनकी मेज पर भगवान श्री गणेश की एक प्रतिमा रहती है। सुनक गोमांस त्यागने की अपील भी कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि मैं अब ब्रिटेन का नागरिक हूं लेकिन मेरा धर्म हिंदू है। भारत मेरी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत है। मैं गर्व से कह सकता हूं कि मैं एक हिंदू हूं और हिंदू होना ही मेरी पहचान है।
ऋषि के दादा रामदास सुनक गुंजरावाला में रहते थे जो बंटवारे के बाद पाकिस्तान में चला गया। रामदास ने सन् 1935 में गुंजरावाला छोड़ा और वो क्लर्क की नौकरी करने के लिए नैरोबी पहुंचे गए। बकौल ऋषि की बायोग्राफी लिखने वाले माइकल एशक्रॉफ्ट- रामदास सुनक हिंदू और मुसलमान के बीच खराब होते रिश्तों की वजह से नैरोबी गए थे। रामदास की पत्नी सुहाग रानी सुनक, गुंजरावाला से दिल्ली आ गई थीं और उनके साथ उनकी सास भी थी। इसके बाद वो सन् 1937 में केन्या चली गईं। रामदास अकाउंटेंट थे जो बाद में केन्या में एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर बने। रामदास और सुहाग रानी के छह बच्चे थे जिसमें तीन बेटे और तीन बेटियां थीं। ऋषि के पिता यशवीर सुनक इनमें से ही एक थे जिनका जन्म नैरोबी में सन् 1949 में हुआ था। साल 1966 में यशवीर लिवरपूल आ गए और यहां पर लिवरपूल यूनिवर्सिटी से मेडिसिन की पढ़ाई की। फिलहाल वो साउथ हैंपटन में रहते हैं। रामदास सुनक की तीनों बेटियों ने भारत में ही पढ़ाई की।
ऋषि के नाना रघुबीर बेरी पंजाब के रहने वाले थे। फिर वो एक रेलवे इंजीनियर के तौर पर तंजानिया चले गए। यहां पर उन्होंने तंजानिया में जन्मी सरक्षा सुनक से शादी की। बॉयोग्राफी के मुताबिक सरक्षा साल 1966 में वन-वे टिकट पर यूके गई थीं। इस टिकट को उन्होंने अपने शादी के गहने बेचकर खरीदा था। बेरी भी यूके आ गए और यहां पर कई साल तक इनलैंड रेवेन्यू के साथ उन्होंने काम किया। इसके बाद वो साल 1988 में ब्रिटिश राजशाही के तहत मेंबर ऑफ ऑर्डर बने। इस दंपति के तीन बच्चे थे जिनमें से एक ऋषि की मां ऊषा भी थीं। उन्होंने सन्1972 में एश्टन यूनिवर्सिटी से फार्मालॉजी में डिग्री ली थी। माता-पिता की पहली मुलाकात लिसेस्टर में हुई थी और साल 1977 में उन्होंने शादी कर ली।
ऋषि पर ब्रिटेन को आर्थिक संकट से बाहर निकालने की जिम्मेदारी है। प्रधानमंत्री नियुक्त होने के बाद देश को पहले संबोधन में सुनक ने कठोर आर्थिक फैसलों की बात कही है। लिज ट्रस ने विफलता के बाद प्रधानमंत्री पद छोड़ दिया था। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि ब्रिटेन की हालत खराब है। उसके बाद ऋषि सुनक सम्राट चार्ल्स तृतीय से मिले, जिन्हें औपचारिक रूप से ब्रिटेन का प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया गया। ऋषि सुनक ने कहा कि वे भविष्य में देश का नेतृत्व करने, अपनी जरूरतों को राजनीति से ऊपर रखने और अपनी पार्टी की श्रेष्ठ परंपराओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए 10 डाउनिंग स्ट्रीट तक पहुंचे हैं। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि वे सबके साथ मिलकर अविश्वसनीय चीजें हासिल करने में सफल होंगे। सुनक ने दावा किया कि वे भारी संख्या में हुए बलिदानों के अनुरूप भविष्य का निर्माण करेंगे। आने वाले दिनों को आशा भरा बताते हुए उन्होंने अपनी सरकार को हर स्तर पर ईमानदार, व्यावसायिक एवं जवाबदेह करार दिया। उन्होंने कहा कि विश्वास कमाया जाता है और वे प्रधानमंत्री के रूप में ब्रिटेन की जनता का विश्वास जीतेंगे।
उन्होंने ब्रिटेन की जनता से मानवता के साथ काम करने का वादा किया, ताकि आने वाली पीढ़ी के लिए बेहतर भविष्य का पथ प्रशस्त हो सके। उन्होंने इसके लिए देश को सिर्फ शब्दों से ही नहीं, बल्कि अपनी गतिविधियों से भी एकजुट करने की बात कही। आर्थिक मोर्चे पर पूर्व प्रधानमंत्री लिज ट्रस की विफलता के चलते इस मोर्चे पर उनके बयान की प्रतीक्षा सिर्फ ब्रिटेन ही नहीं दुनियाभर को थी। इस पर ऋषि सुनक ने कहा कि आर्थिक स्थिरता और विश्वास उनकी सरकार के एजेंडे का मुख्य विषय होगा। इसका साफ मतलब होगा, कठिन फैसले। वे आर्थिक स्थिरता के लिए कठिन फैसले से पीछे नहीं हटेंगे। कोविड काल के दौरान अपने कार्यों को याद दिलाते हुए उन्होंने कहा कि उनकी सरकार अगली पीढ़ी पर कर्ज का बोझ नहीं लाएगी।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)