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द्रौपदी मुर्मू से पहले भी देश को मिल सकता था आदिवासी राष्ट्रपति, जानिए वो किस्सा

नई दिल्ली । द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) देश की 15वीं राष्ट्रपति (15th President) बन गई हैं. उनका राष्ट्रपति बनना अपने आप में ऐतिहासिक है, वे पहली आदिवासी समुदाय (tribal community) से आईं महिला राष्ट्रपति हैं. जिस बड़े अंतर से उन्होंने ये जीत दर्ज की है, इससे ये मुकाम और ज्यादा खास बन जाता है. लेकिन ये बात कम ही लोग जानते हैं कि द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने से 10 साल पहले भी भारत (India) के पास एक मौका आया था. वो मौका था एक आदिवासी राष्ट्रपति चुनने का.

ये बात 2012 राष्ट्रपति चुनाव की है. केंद्र में यूपीए की सरकार थी और प्रधानमंत्री थे डॉक्टर मनमोहन सिंह. उस समय कांग्रेस ने राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में प्रणब मुखर्जी को उतारा था. पार्टी को पूरी उम्मीद थी कि विपक्ष कोई उम्मीदवार नहीं उतारेगा और प्रणब बिना किसी अड़चन के रायसेना तक पहुंच जाएंगे. लेकिन उस समय जैसा देश की राजनीति का मिजाज था, कांग्रेस की हां में हां मिलना किसी के लिए संभव नहीं था. ऐसे में तब विपक्ष ने अपनी तरफ से पीए संगमा को राष्ट्रपति उम्मीदवार बना दिया था. 2022 में जो आदिवासी दांव बीजेपी ने द्रौपदी मुर्मू को खड़ा कर चला, कुछ ऐसा ही काम 2012 में विपक्ष ने भी किया था.

असल में पीए संगमा आदिवासी समुदाय से आते थे. पूर्णो अगितोक संगमा का जन्म 1 सितम्बर, 1947 को पूर्वोत्तर भारत में मेघालय राज्य के रमणीक पश्चिमी गारो हिल जिले के चपाहटी गांव में हुआ था. मेघालय के एक छोटे से आदिवासी गांव से जीवन की साधारण शुरुआत करके, पीए संगमा अपनी योग्यता, दृढ़निश्चय और मेहनत के बल पर लोक सभा के अध्यक्ष के प्रतिष्ठित पद तक पहुंचे. संगमा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. राजनीति में आने से पहले उन्होंने प्राध्यापक, अधिवक्ता और पत्रकार के रूप में भी कार्य किया था. उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन का आरंभ कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता के रूप में किया और वह पार्टी के पदों पर तेजी से आगे बढ़ते गए.

लेकिन फिर वर्ष 1999 में कांग्रेस से निष्कासित होने के बाद शरद पवार और तारिक अनवर के साथ मिलकर पी.ए. संगमा ने नेशनल कांग्रेस पार्टी की स्थापना की. शरद पवार के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्षा सोनिया गांधी से नजदीकी बढ़ जाने के कारण पी.ए. संगमा ने अपनी पार्टी का ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी में विलय कर नेशनलिस्ट तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की. फिर 2006 में नेशनल कांग्रेस पार्टी के प्रतिनिधि के तौर पर वे संसद पहुंचे थे. अब क्योंकि उन्होंने कई विचारधारों के साथ मिलकर राजनीति की थी, ऐसे में उनका व्यक्तित्व भी वैसा ही बन गया था. इसी वजह से 2012 के राष्ट्रपति चुनाव में उन्हें विपक्ष ने अपना उम्मीदवार बनाया था.

लेकिन जैसे इस बार द्रौपदी मुर्मू के लिए एकतरफा जीत रही, कुछ ऐसा ही नजारा 2012 में भी देखने को मिल गया था. उस राष्ट्रपति चुनाव में प्रणब मुखर्जी को 7 लाख 13 हजार 763 मत प्राप्त हुए थे. वहीं पीए संगमा को 3,15,987 वोट से ही संतोष करना पड़ गया. इसी वजह से 10 साल पहले देश को आदिवासी राष्ट्रपति नहीं मिल पाया.