Friday, November 22"खबर जो असर करे"

सुर सम्राट तानसेन की सभा मे दो तहजीबों के सुरों का संगम

 

ग्वालियर !  गान महिर्षि तानसेन की याद में आयोजित हो रहे सालाना संगीत महोत्सव विश्व संगीत समागम तानसेन समारोह में गुरुवार की प्रात:कालीन सभा में संगीत रसिक हिंदुस्तानी, अफगानी व अमेरिकन तहजीबों के मिलन के साक्षी बने। शुद्ध शास्त्रीय प्रस्तुतियों के साथ सात समंदर पार संयुक्त राज्य अमेरिका से आए कलाकार मिस्टर विलयम रीस हॉफमैन ने जब पश्चिमी व अफगानी सुरों को छेड़ा तो “मिले सुर मेरा तुम्हारा…” की भावभूमि साकार हो उठी। वास्तवं में सुरों का एक ऐसा कोलाज़ बना, जिसमें संगीत का हरेक रंग नुमाया हो रहा था।  उनकी सांगीतिक प्रस्तुतियों का बड़ी संख्या में मौजूद गुणीय रसिकों ने जी-भरकर आनंद उठाया।

सभा का आगाज़ पारंपरिक ढंग से सारदा नाद मंदिर ग्वालियर के विद्यार्थियों व आचार्यों द्वारा प्रस्तुत ध्रुपद गायन से हुआ। राग “परमेश्वरी” ताल चौताल में निबद्ध बंदिश के बोल थे ” सरस्वती आदि रूप “। पखावज पर श्री यमुनेश नागर व हारमोनियम पर श्री अनूप मोघे ने साथ निभाया।

 

पाश्चात्य व अफगान लोक धुनों की मनोहारी प्रस्तुति

 

विश्व संगीत समागम तानसेन समारोह में सुदूर देश संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रतिष्ठित रुबाब वादक ने मिस्टर विलयम रीस हॉफमैन ने  सुर सम्राट तानसेन के दरबार में पाश्चात्य व अफगान लोक धुनों से स्वरांजलि दी।  उन्होंने अफगानी वाद्य यंत्र रुबाब से उत्कृष्ट वादन कर मैहर घराना एवं काबुल के उस्ताद नबी गोल की सांगीतिक परंपरा की मीठी-मीठी धुनें निकाल कर सुधीय रसिकों पर गहरी छाप छोड़ी। विलियम रीस भारतीय सरोद वादन में भी निपुण हैं।

 

नैना मोरे तरस गए आजा बलम परदेशी…”

 

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तानसेन समारोह की गुरुवार की प्रात:कालीन सभा में माँ सारदा की नगरी सतना से आए युवा शास्त्रीय गायक श्री विनोद मिश्रा की दूसरे कलाकार के रूप में प्रस्तुति हुई। उन्होंने खयाल गायन के लिये राग “विलासखानी तोड़ी” चुना। इस राग में उन्होंने तीन बंदिशें पेश की । विलम्बित बंदिश के बोल थे “ माँ सारदा वर दे”। इसके बाद तीन ताल में निबद्ध द्रुत बंदिश  “तुम ना सिखाओ” पेश की। इसी कड़ी में द्रुत तीन ताल में “कोयलिया काहे करत पुकार” को बेहतरीन अलापचारी के साथ पेश कर रसिकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने अपनी सुरीली आवाज में प्रसिद्ध ठुमरी ” नैना मोरे तरस गए आजा बलम परदेशी” सुनाकर अपने गायन को विराम दिया।  उनके साथ तबले पर श्री शशांक मिश्रा, हारमोनियम पर श्री हितेन्द्र शर्मा और सारंगी पर उस्ताद अब्दुल मजीद खां ने कमाल की संगत की।

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पं ब्रजभूषण ने राग सामंत सारंगब्रिन्दावनी सारंगमें गाईं ध्रुपद बंदिशें

 

दानेदार, बुलंद एवं सुरीली आवाज में जब पण्डित ब्रजभूषण गोस्वामी ने राग ‘सामंत सारंग’ में नोम तोम के आलाप के बाद  ताल चौताल में तानसेन रचित बंदिश पेश की तो प्रांगण उच्च कोटि की ध्रुपद गायिकी से गुंजायमान हो उठा। विभिन्न प्रकार की लयकारियों का उन्होंने बहुत ही सुंदर प्रयोग किया।  देश की राजधानी दिल्ली से तानसेन समारोह में प्रस्तुति देने आए पं ब्रजभूषण जी ने  विलंबित, मध्यलय और द्रुत लय में जो अलापचारी आज पेश की उससे गुणीय रसिक सम्मोहित हो गए। राग ‘ सामन्त सारंग ‘ में अलाप और बंदिश से शुरू हुआ उनके गायन का  सिलसिला राग  ‘बिंद्रावनी सारंग’तक पहुँचा। उन्होंने इस राग में  एक बंदिश”श्री राधे दुलारी” पेश कर अपने गायन को विराम दिया।

उनके साथ पखावज पर  विख्यात पखावज वादक श्री अखिलेश गुंदेचा व सारंगी पर श्री कुलभूषण गोस्वामी ने शानदार संगत की।

 

“बगिया में तमाशे होंय….”

 

गुरुवार की  प्रातःकालीन सभा का विशेष आकर्षण रहा ग्वालियर के सांगीतिक घराने  में जन्मे पण्डित उमेश कंपूवाले का खयाल गायन। उमेश जी ने खूब डूबकर गाया। उन्होंने राग “मुल्तानी” में संक्षिप्त आलाप से शुरू करके एक ताल में बड़ा ख़्याल “गोकुल गाँव का छोरा” पेश किया। इसके बाद तीन ताल में छोटा ख्याल ” बगिया में तमाशो होय” का गायन कर खाटी घरानेदार गायकी जीवंत कर दी। उमेश जी ने अपने गायन को विस्तार देते हुए द्रुत एक ताल में बंदिश ” आंगन में आनवान”  और राग मुल्तानी में ही एक तराने का सुमधुर गायन किया।इसी क्रम में उन्होंने ठुमरी “कागा पिया से कहियो..” को बड़ी रंजकता के साथ गाया।  राग की बारीकियों और उसके स्वभाव को बरकरार रखते हुए उन्होंने बहलाबों की शानदार प्रस्तुति दी और फिर घरानेदार तानों से महफ़िल को परवान पर जा पहुंचाया। गायन का समापन उन्होंने प्रसिद्ध भजन ” अब कृपा करो”से किया। उनके साथ तबले पर श्री अशेष उपाध्याय और हारमोनियम पर पण्डित धर्मनाथ ने नफासत भरी संगत की।

 

हर्ष नारायण ने किया राग “सरस्वती” में सारंगी वादन

 

गुरूवार की सुबह सजी संगीत सभा का समापन मुम्बई से आए युवा सारंगी वादक श्री हर्ष नारायण के सारंगी वादन के साथ हुआ। सुविख्यात सारंगी वादक पं. रामनारायण के प्रपौत्र और प्रख्यात सरोद वादक पं. बृजनारायण के सुपुत्र श्री हर्ष नारायण ने राग “सरस्वती” में सारंगी वादन किया। उन्होंने इस राग में सारंगी वादन में अलाप के बाद तीन ताल में विलंबित गत प्रस्तुत की। इसी क्रम में द्रुत लय झपताल में मनमोहक सारंगी वादन कर रसिकों पर गहरा प्रभाव छोड़ा। उनके वादन में श्री रामेन्द्र सोलंकी ने बहुत ही दिलकश संगत की।