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भारतीय ज्ञान परंपरा और विश्व कल्याण की प्रेरणा

भारतीय ज्ञान परंपरा और विश्व कल्याण की प्रेरणा

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- हृदयनारायण दीक्षित हिन्दू सारी दुनिया में ज्ञान और दर्शन के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। ज्ञान यहाँ पवित्र विषय रहा है। ज्ञान से सभी रहस्यों का अनावरण होता है। ज्ञान से धर्म सधता है। ज्ञान से अर्थ, काम और मोक्ष मिलते हैं। हिन्दू ज्ञान अभीप्सु राष्ट्रीयता हैं। जड़ों से उखड़े वृक्षों पर फूल नहीं खिलते। पक्षी ऐसे वृक्षों पर गीत नहीं गाते। यूजीसी ने नई शिक्षा नीति के अनुसरण में भारत की ज्ञान परंपरा को छात्रों अध्यापकों के लिए मार्गदर्शी बताया है। भारत को मूल से जोड़ने का कार्यक्रम बनाया है। ज्ञान का लक्ष्य सूचना पाना ही नहीं होता। ज्ञान, विज्ञान और दर्शन में विश्व कल्याण की प्रतिभूति है। भारत में ऋग्वेद के रचना काल के पूर्व से ही लोकमंगल हितैषी ज्ञान परंपरा है। स्थूल और अति सूक्ष्म पदार्थों के अणुओं का अध्ययन प्राचीन काल से ही जारी है। व्यक्त जगत के साथ अव्यक्त का ज्ञान भी पूर्वजों का प्रिय विषय रहा...

हिन्दुत्व में विश्व कल्याण की अभीप्सा

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- ह्रदय नारायण दीक्षित ब्रह्माण्ड रहस्यपूर्ण है। हम सब इसके अविभाज्य अंग हैं। यह विराट है। हम सबको आश्चर्यचकित करता है। इसकी गतिविधि को ध्यान से देखने पर तमाम प्रश्न उठते हैं। भारतीय ऋषि वैदिककाल से ही प्रकृति के गोचर प्रपंचों के प्रति जिज्ञासु रहे हैं। वैज्ञानिक भी प्रकृति के कार्य संचालन के प्रति शोधरत हैं। ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में अस्तित्व के विराट स्वरूप का मानवीकरण है। यह पुरुष सहस्त्र शीर्षा है - सहस्त्रों सिर वाला हैं। इस पुरुष के प्राण का विस्तार सम्पूर्ण विश्व की वायु है। पुरुष संपूर्ण अस्तित्व को आच्छादित करता है। संपूर्ण विश्व इसका एक चरण है। इसके तीन चरण अन्य लोकों में हैं। पुरुष चेतन, अचेतन, मनुष्य, पशु, कीट ,पतिंग, नदी समुद्र आदि सभी जीवों पदार्थों में व्याप्त है। जो अब तक हो चुका है, भविष्य में जो होने वाला है, वह सब यही पुरुष ही है। यह ज्ञात भाग से बड़ा कहा गया है। हिन्दू ...