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शबरी जयंती: सामाजिक समरसता और नारी भावना के उच्चतम सम्मान का अद्भुत प्रसंग

शबरी जयंती: सामाजिक समरसता और नारी भावना के उच्चतम सम्मान का अद्भुत प्रसंग

अवर्गीकृत
- रमेश शर्मा भक्त शिरोमणि शबरी वनवासी भील समाज से थीं। फिर भी मातंग ऋषि के गुरु आश्रम की उत्तराधिकारी बनी। रामजी ने उनके जूठे बेर खाये। यह कथा भारतीय समाज की उस आदर्श परंपरा का उदाहरण है कि व्यक्ति को पद, स्थान और सम्मान उसके गुण और योग्यता से मिलता है जन्म या जाति से नहीं। भक्त शिरोमणि शबरी का जन्म फाल्गुन कृष्ण पक्ष सप्तमी को हुआ था। इस वर्ष यह तिथि दो मार्च को है। उनका जन्म त्रेतायुग अर्थात रामायण काल में हुआ था। इस काल खंड की अवधि पर भारतीय वाड्मय के आकलन और पश्चिम जगत की गणना में जमीन आसमान का अंतर है, इसलिये यह नहीं कहा जा सकता कि माता शबरी का जन्म किस सन् संवत में हुआ था। यह कथा बाल्मीकि रामायण और तुलसीकृत रामचरित मानस के अरण्य काण्ड में है। इसके अतिरिक्त पद्म पुराण सहित कुछ अन्य ग्रंथों में है। इसलिये माता शबरी की कथा के यथार्थ पर संदेह करने का प्रश्न नहीं उठता। यह कथानक केवल...