समानता के बगैर लोकतंत्र का कोई अर्थ नहीं
- अरुण कुमार दीक्षित
भारतीय राजनीतिक चिंतन की परंपरा पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन से अधिक पुरानी है। भारत में राजतंत्र और गणतंत्र शासन व्यवस्था प्राचीन हैं। कौटिल्य ने राज्य को अपने आप में साध्य मानते हुए समाज में सर्वोच्च स्थान दिया है। उन्होंने राजा के कार्य क्षेत्र को अत्यंत विस्तृत बताया है । कौटिल्य ने राज्य की संपूर्ण संस्थाओं को मनुष्य के आध्यात्मिक सांस्कृतिक और आर्थिक कल्याण का साधन बताया है। सुझाव दिया है कि राजा को आग, बाढ़, महामारी, अकाल और भूकंप जैसी दैवीय विपत्तियों का निवारण करना चाहिए। राजा को चाहिए कि प्रजा के प्रति पुत्रवत आचरण करे। राज्य में अपराधियों के लिए दंड, बाहरी शत्रुओं से रक्षा, राज्य की आंतरिक व्यवस्था एवं न्याय की रक्षा प्रमुख बताया है।
18वीं लोकसभा का गठन कुछ दिन पूर्व हुआ है। भाजपा के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिकगठबंधन तीसरी बार केंद्र की सत्ता में आया ह...