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मेरी नहीं, श्री की इच्छा है ‘हिन्दवी स्वराज्य’

मेरी नहीं, श्री की इच्छा है ‘हिन्दवी स्वराज्य’

अवर्गीकृत
- लोकेन्द्र सिंह पुणे से 82 किलोमीटर दूर दक्षिण-पश्चिम दिशा में रोहिडखोरे की भोर तहसील में सह्याद्रि की सुरम्य वादियों के बीच समुद्र तल से लगभग 4694 फीट ऊंचाई पर घने जंगलों के बीच स्थित श्री रायरेश्वर गढ़ (किला) हिन्दवी स्वराज्य प्रतिज्ञा दिवस का साक्षी है। 26 अप्रैल, 1645 को वीर बालक शिवा ने यहीं हिन्दवी स्वराज्य का संकल्प लिया था। उन्होंने कहा था-यह मेरी नहीं, श्री की इच्छा है। यहां की पर्वत शृंखलाओं के बीच सांय-सांय करती हवा पर कान धरा जाए तो आज भी वीर बालक शिवा की प्रतिज्ञा की वह गूंज सुनी जा सकती है। इस प्रतिज्ञा ने धर्मद्रोही मुगलिया सल्तनत को उखाड़ फेंका था। यहां वह प्राचीन शिवालय आज भी है, जहां शिवा ने अपने कुछ मित्रों के साथ ‘स्वराज्य’ की शपथ ली। यह वह दौर था जब मुगलिया सल्तनत के अत्याचारों के चलते हिन्दू आत्म विस्मृत हो चला था। उसके मन में यह विचार ही आना बंद हो गया था कि यह भारत...