Friday, November 22"खबर जो असर करे"

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स्मृति ईरानी अमेठी को क्यों नहीं समझ पाईं

स्मृति ईरानी अमेठी को क्यों नहीं समझ पाईं

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- गौरव अवस्थी अठारहवीं लोकसभा चुनाव में अमेठी से स्मृति ईरानी की हार ने सबको चौंका दिया। कारण, उन्होंने अपनी जीत का दावा बढचढ़कर किया था और राहुल गांधी को सीधे मुकाबले के लिए ललकारा था। स्मृति ईरानी को पराजय का स्वाद गांधी परिवार के उस करीबी किशोरी लाल शर्मा से चखना पड़ा है जिन्हें उम्मीदवार बनाए जाने के बाद उन्होंने कोई महत्व ही नहीं दिया था। उनके इस दंभ का जवाब जनता ने ईवीएम का बटन दबा कर दिया। उन्होंने राहुल गांधी को 2019 के चुनाव में जितने वोटों से हराया था, उससे दोगुने से ज्यादा वोटो से गांधी परिवार के करीबी किशोरी लाल शर्मा ने उन्हें परास्त कर दिया। चुनाव परिणाम जानने के बाद लोगों की जिज्ञासा अब यह जानने में हो गई है कि जिस अमेठी पर स्मृति ईरानी को पांच साल में ही नाज हो गया था, आखिरकार उसने इतनी जल्दी उन्हें खारिज क्यों कर दिया। इसके एक नहीं अनेक कारण खोजे और गिनाए जा सकते हैं...
नक्सल विरोधी कार्रवाई पर हमदर्दी भरा दृष्टिकोण क्यों?

नक्सल विरोधी कार्रवाई पर हमदर्दी भरा दृष्टिकोण क्यों?

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- डॉ. रमेश ठाकुर छत्तीसगढ़ के कांकेर में पिछले सप्ताह केंद्रीय सुरक्षाकर्मियों ने एक ऑपरेशन के तहत बड़ी संख्या में नक्सलियों को मार गिराया। सूचनाएं थी कि नक्सली चुनाव में गड़बड़ी करने वाले थे। उनका निशाना पोलिंग बूथ थे। उनके पास से बड़ी मात्रा में हथियार और गोला बारूद बरामद हुआ। नक्सलियों पर इस कार्रवाई को लेकर एक दफा फिर कांग्रेस ने प्रमाणिकता पर सवाल उठाए हैं। वाजिब सवाल ये है कि आखिर चुनाव के बीच नक्सल और सुरक्षाबलों के बीच चले इस संघर्ष को राजनीतिक रंग देने में किसका भला होगा? भूपेश बघेल तो मुठभेड़ को फर्जी भी बता रहे हैं। वहीं, कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने भी बिना सोचे समझे नक्सलियों से हमदर्दी जताई। हालांकि, विरोध होने पर अब दोनों अपने बयानों को लेकर लीपापोती करने में लगे हैं। कुछ विपक्षी नेताओं ने इससे पूर्व भी नक्सलियों को शहीद बताकर उनके प्रति हमदर्दी जताई थी। यह तो जगजाहि...
लोकसभा में क्यों घट रही स्वतंत्र उम्मीदवारों की तादाद

लोकसभा में क्यों घट रही स्वतंत्र उम्मीदवारों की तादाद

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- आर.के. सिन्हा बुजुर्ग हिन्दुस्तानियों को याद होगा ही कि एक दौर में वी.के. कृष्ण मेनन, आचार्य कृपलानी, एस.एम. बनर्जी, मीनू मसानी, लक्ष्मीमल सिंघवी, इंद्रजीत सिंह नामधारी, करणी सिंह, जी.जी. स्वैल जैसे बहुत सारे नेता आजाद उम्मीदवार होते हुए भी लोकसभा का कठिन चुनाव जीत जाते थे। पर अब इन आजाद उम्मीदवारों का आंकड़ा लगातार सिकुड़ता ही चला जा रहा है। अगर 1952 के पहले लोकसभा चुनावों के नतीजों को देखें तो हमें इन विजयी आजाद उम्मीदवारों की संख्या 36 मिलेगी। तब इनका समूह कांग्रेस के बाद दूसरा सबसे बड़ा था। यानी किसी भी गैर-कांग्रेसी दल से बड़ा था। निवर्तमान लोकसभा में निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या सिर्फ तीन रह गई थी। अभी तक मात्र 202 निर्दलीय उम्मीदवार लोकसभा में पहुंचे हैं। बेशक, लोकसभा का चुनाव अपने बलबूते पर लड़ना कोई बच्चों का खेल नहीं होता। लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए बहुत सारे संसाधनों की ...
सोनिया ने क्यों दिया रायबरेली को भावनात्मक संदेश?

सोनिया ने क्यों दिया रायबरेली को भावनात्मक संदेश?

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- प्रभुनाथ शुक्ल "मैं अपने बच्चों को भीख मांगते देख लूंगी, परंतु मैं राजनीति में कदम नहीं रखूंगी।" यह पीड़ा सोनिया गांधी की थी जो उन्होंने अपने पति एवं पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को खोने के बाद व्यक्त की थी। यह एक मां और औरत की पीड़ा थी, क्योंकि राजीव को खोने के बाद सोनिया अकेली पड़ गई थीं। वह डरी और सहमी थीं, क्योंकि पारिवारिक संघर्ष में वह अकेली थीं। उन्हें सबसे अधिक फिक्र दोनों बच्चों राहुल और प्रियंका गांधी की सुरक्षा की थी। इसकी वजह से वह राजनीति में नहीं आना चाहती थीं। वह राजनीति की वजह से पति और सास को खो चुकी थीं। इसकी वजह से उन्हें राजनीति से घृणा हो गई थी। सोनिया के दृढ संकल्प ने उन्हें विषम परिस्थितियों में भी डिगने नहीं दिया। कांग्रेस को संभालने के लिए उन्हें अंततः राजनीति में आना पड़ा। लंबे कालखंड के बाद सोनिया गांधी ने अब सक्रिय राजनीति को अलविदा कह दिया है। खराब स्वा...
क्यों जरूरी है बांग्लादेश में हसीना की फिर ताजपोशी?

क्यों जरूरी है बांग्लादेश में हसीना की फिर ताजपोशी?

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- डॉ. रमेश ठाकुर पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश के संसदीय चुनाव को प्रभावित करने में वहां के विपक्षी दलों ने जमकर राजनैतिक पैंतरेबाजियों के अलावा मौजूदा प्रधानमंत्री शेख हसीना पर चुनाव में धांधली करने, भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने और भारत के साथ बेवजह दोस्ती बढ़ाने वाले गैर-जरूरी आरोप लगाए। मगर जनता ने सभी आरोपों को नकार दिया। हसीना फिर सरकार बनाएंगी। रविवार को छिटपुट घटनाओं के साथ आम चुनाव संपन्न हो गया। हालांकि बांग्लादेश चुनाव आयोग की उम्मीद से कहीं कम मतदान हुआ है। वोटिंग प्रतिशत तकरीबन चालीस फीसदी रहा। कई संसदीय क्षेत्र में तो मात्र 30-32 प्रतिशत ही मतदान हुआ। इसे मतदाताओं की उदासीनता कहें या मौजूदा सरकार के प्रति संतुष्टि? अब यह साफ है कि शेख हसीना पार्टी अवामी लीग ही सत्ता में वापसी करेगी। हसीना के अलावा भारत भी यही चाहता है, क्योंकि दोनों देशों के प्रमुखों की कूटनीति और सियासी केमिस्ट्री द...
क्यों बेवजह पीटा गया निर्दोष मुस्लिम महिला को?

क्यों बेवजह पीटा गया निर्दोष मुस्लिम महिला को?

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- आर.के. सिन्हा अभी कुछ दिन पहले की एक खबर ने लोकतांत्रिक मूल्यों में यकीन रखने वाले हरेक इंसान को उदास कर दिया होगा। खबर संभवत: आपने भी पढ़ी होगी। अगर किसी कारणवश नहीं पढ़ी तो बताना जरूरी है कि मध्य प्रदेश के जिला सीहोर में एक मुस्लिम महिला को उसके ससुराल वालों ने इसलिए बुरी तरह पीटा, क्योंकि, उसने भाजपा को हालिया विधानसभा चुनाव में वोट दिया था। उस महिला को पीटने वालों में उसका अपना देवर भी शामिल था। उसे जब पता चला कि उसके भाई की पत्नी ने भाजपा के हक में वोट किया है तो उसने अपनी भाभी को बुरी तरह से डंडों से मारा। उसका कुछ संबंधियों और पड़ोसियों ने भी साथ दिया। इसके बाद पीड़ित महिला न्याय के लिए कलेक्ट्रेट पहुंची और वहां आवेदन सौंपकर न्याय की गुहार लगाई। अब जरा बताइये कि भाजपा के खिलाफ इतनी नफरत कुछ लोगों के मन में क्यों है? देश का कोई भी नागरिक किसी भी दल के उम्मीदवार को वोट देने के ...
पाकिस्तान को 370 पर क्यों लगी सबसे ज्यादा मिर्ची?

पाकिस्तान को 370 पर क्यों लगी सबसे ज्यादा मिर्ची?

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- मुकुंद बात भारत की है। भारत के आंतरिक मामले की है। मगर सबसे ज्यादा मिर्ची पाकिस्तान को लगी है। साफ है अच्छे पड़ोसी का धर्म पाकिस्तान कभी निभा नहीं सकता। अनुच्छेद 370 पर भारत के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आतंकवाद को पालने-पोसने वाले पाकिस्तान ने जहर उगला है। उसकी बौखलाहट से साबित होता है कि उसकी नजर जम्मू-कश्मीर पर लगी हुई है। मगर उसे अब यह ध्यान रखना होगा यह नेहरू, इंदिरा, राजीव और मनमोहन सिंह वाला भारत नहीं है। यह नया भारत है। यह नया भारत राष्ट्रवादी नेता नरेन्द्र मोदी का है। यह भारत आंख तरेरने वाले के शरीर को मरोड़ने की ताकत रखता है। आखिर कौन होता है पाकिस्तान, जो यह कहे कि भारत के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का कोई कानूनी महत्व नहीं है। उसे यह कहने का कतई हक नहीं है कि अंतरराष्ट्रीय कानून भारत की 5 अगस्त, 2019 की एकतरफा और अवैध कार्रवाइयों को मान्यता नहीं देता है। बोलने की सबको आजादी है।...
क्यों देश को इंतजार है नोएडा एयरपोर्ट शुरू होने का

क्यों देश को इंतजार है नोएडा एयरपोर्ट शुरू होने का

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- आर.के. सिन्हा अगर सब कुछ योजना के चलता रहा तो उत्तर प्रदेश के जेवर में तेजी से बन रहे नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट से पहली उड़ान अगले साल मार्च के महीने में अपने सफर पर चली जाएगी। यानी अब छह से भी कम महीनों का वक्त बचा है, इसे शुरू होने में। पहले कहा जा रहा था कि यहां से पहली फ्लाइट साल 2024 के अंत में ही उड़ान भरेगी। नोएडा एयरपोर्ट जितना जल्दी शुरू हो जाए उतना ही भारत आने और यहां से जाने वाले करोड़ों मुसाफिरों के लिए एक बड़ी राहत भरी खबर होगी। भारत सरकार का उड्डयन एवं गृह मंत्रालय और उत्तर प्रदेश सरकार मिल कर कोशिश कर रहे हैं ताकि नोएडा एयरपोर्ट वक्त से पहले ही शुरू हो जाए। नोएडा एयरपोर्ट का तुरंत बनना इसलिए भी जरूरी है ताकि इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट (आईजीआई) को यात्रियों की भीड़ से बचाया जा सके। इधर भीड़ के चलते बदइंतजामी और अराजकता के हालात बने रहते हैं। यात्रियों को तीन-तीन घ...
टॉर्चर सेंटर में क्यों बदल रहे हैं नशा मुक्ति केंद्र

टॉर्चर सेंटर में क्यों बदल रहे हैं नशा मुक्ति केंद्र

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- डॉ. रमेश ठाकुर मध्य प्रदेश के रीवा में संचालित ‘संकल्प नशा मुक्ति’ नाम के एक सेंटर के भीतर से दिल दहला देनी वाली घटना ने बेलगाम नशा मुक्ति केंद्रों की हकीकत को सामने ला दिया है। वहां भर्ती नशे के आदी युवक के साथ केंद्र के कर्मचारियों ने सभी हदों को पार कर दिया। कर्मचारियों ने युवक के निजी पार्ट में गैस चूल्हा जलाने वाला लाइटर डाल दिया, जिससे युवक की आंत फट गई, हालत इतनी बिगड़ी कि अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। इलाज के एकाध दिन बाद जब उसने घटना की जानकारी परिजनों को दी तो सभी के होश उड़ गए। देशभर में फैले नशा मुक्ति केंद्रों के भीतर नशेड़ियों के साथ कैसी-कैसी बर्बरताएं की जाती है, रीवा की ये ताजा घटना बानगी मात्र है। इससे भी कहीं ज्यादा यातनाएं सेंटरों में दी जाती हैं। महिलाओं के साथ कैसा सलूक होता है, उसकी कल्पना तक नहीं कर सकते। नशा मुक्ति केंद्र केंद्रीय व राज्य सरकारों के समाज कल्या...