जब शेर को मिला सवा सेर…
प्रभुनाथ शुक्ल
हमारा लोकतंत्र कितना समदर्शी है। यहां इंसान की परेशानी और चिंताओं के साथ शेर, बाघ, मोर, घोड़े, गदहे भी गंभीर चिंतन का विषय बन जाते हैं। मीडिया की कृपा विशेष रूप से सोशल मीडिया की वजह से यह बहस सर्वव्यापी बन जाती है। जब बात राष्ट्रीय प्रतीकों और प्रतिमानों से जुड़ी हो तो यह और गंभीर हो जाता है।आजकल शेर और सवा शेर का प्रतीक सुर्खियों में है। अब आप ही बताइए क्या शेर से शांति की उम्मीद की जा सकती है। उस हालत में जब इंसान खुद आदमखोर बन गया है। फिर वह शेर से शांत और विनम्र बनने की उम्मीद भला कैसे कर सकता है।
अब एक जमात शेर को गीदड़ बनाना चाहती है। आंगन कुटी में रहने वाले निंदक शेर को सवा सेर बनते नहीं देखना चाहते हैं। वह उसे गीदड़ बनाने पर तुले हैं। अब उन्हें कौन बताए वह खुद की भांति शेर को भी बनाना चाहते हैं। इसी शांतिपाठ में खुद का राज सिंहासन खाली हो गया और अब मेमना बने ...