दीपावली विशेष: तुम दीपक हम बाती
- गिरीश्वर मिश्र
भारतीय समाज अपने स्वभाव में मूलतः उत्सवधर्मी है और यहाँ के ज़्यादातर उत्सव सृष्टि में मनुष्य की सहभागिता को रेखांकित करते दिखते हैं। प्रकृति की रम्य क्रीड़ा स्थली होने के कारण मौसम के बदलते मिजाज के साथ कैसे जिया जाय इस प्रश्न विचार करते हुए भारतीय जन मानस की संवेदना में ऋतुओं में होने वाले परिवर्तनों ने ख़ास जगह बनाई है। फलतः सामंजस्य और प्रकृति के साथ अनुकूल को ही जीवन का मंत्र बनाया गया। यहाँ जीवन का स्पंदन उसी के अनुसार होता है और उसी की अभिव्यक्ति यहाँ के मिथकों और प्रतीकों के साथ होती है। कला , साहित्य , संगीत आदि को भी सुदूर अतीत से ही यह विचार भावित करता आ रहा है। इस दृष्टि से दीपावली का लोक-उत्सव जीवन के हर क्षेत्र -घर-बार, खेत-खलिहान, रोज़ी-रोटी और व्यापार-व्यवहार सबसे जुड़ा हुआ है। इस अवसर पर भारतीय गृहस्थ की चिंता होती है घर-बाहर के परिवेश को स्वच्छ करना और नि...