विश्व का प्रथम पर्व श्रावणी उपाकर्म वैदिक काल की शाश्वत परंपरा
- प्रो. विवेकानंद तिवारी
उपाकर्म का अर्थ है प्रारंभ करना। धर्मगंथों में लिखा गया है-जब वनस्पतियां उत्पन्न होती हैं, श्रावण मास के श्रवण व चंद्र के मिलन (पूर्णिमा) या हस्त नक्षत्र में श्रावण पंचमी को उपाकर्म होता है। इस अध्ययन सत्र का समापन, उत्सर्जन या उत्सर्ग कहलाता था। यह सत्र माघ शुक्ल प्रतिपदा या पौष पूर्णिमा तक चलता था। श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के शुभ दिन रक्षाबंधन के साथ ही श्रावणी उपाकर्म का पवित्र संयोग बनता है।
हमारे वैदिक धर्म में स्वाध्याय की प्रधानता और महिमा हमेशा से रही है। ब्रह्मचर्य की समाप्ति पर तथा समावर्तन के समय स्नातक को आचार्य एक उपदेश देता है- 'स्वाध्यायान्मा प्रमदः' और 'स्वाध्यायप्रवचनाभ्यां न प्रमदितव्यम्' अर्थात् अपने जीवन में कभी भी स्वाध्याय और प्रवचन (सुनने और सुनाने) से प्रमाद (आलस्य) नहीं करना। ये वाक्य केवल ब्रह्मचारी के लिए ही नहीं, अपितु सब मनुष्यों पर लागू...