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यह चुनाव मात्र वोट की नहीं, धर्म और अधर्म की लडाई हैः स्मृति ईरानी

यह चुनाव मात्र वोट की नहीं, धर्म और अधर्म की लडाई हैः स्मृति ईरानी

देश, मध्य प्रदेश
भोपाल (Bhopal)। केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी (Union Minister Smriti Irani) ने कहा कि मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में गरीब कल्याण और अंत्योदय (poor welfare and antyodaya) के संकल्प के साथ भाजपा (BJP) काम कर रही है। मप्र में घर की बेटी को लक्ष्मी के रूप में शासकीय योजना के माध्यम से पूजा है और 46 लाख से अधिक बेटियों को लखपति बनाया है। जिस पार्टी ने लाडली बहना योजना से एक करोड 31 लाख महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया है, गौरव की बात है कि उस पार्टी का नाम भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) है। हम यह भ्रम न पालें कि आगामी समय में हम सिर्फ चुनाव लड़ने वाले हैं। यह मात्र वोट की लड़ाई नहीं, अधर्म और धर्म की लड़ाई है। यह लड़ाई उनसे है जो राम का नाम लेते हैं और कोर्ट में हलफनामा देकर राम के अस्तित्व को नकारते है। केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी शनिवार को सीहोर जिले की विधानसभाओं में पहुंची भाजपा की जन आशीर्वाद...
भगवान परशुरामः अधर्म के विनाशी

भगवान परशुरामः अधर्म के विनाशी

अवर्गीकृत
- ऋतुपर्ण दवे धर्म को सरल और बेहद कम शब्दों में इस तरह भी समझा जा सकता है कि समाज द्वारा स्वीकृत वो मान्यताएं हैं, जिस पर चल कर मनुष्य कितना भी शक्तिशाली हो जाए किसी दूसरे का अहित नहीं कर सकता है तथा संतुलित व मर्यादित रहता है। वह धर्म नीति ही है जो मानवता का बोध कराने, अत्याचार, अनाचार, साधु-संतों के उत्थान के लिए भगवान का अनेकों रूप बनवाती है ताकि दुष्टों का संहार, विश्व कल्याण के साथ धर्म जो मनुष्य को उसकी सीमाओं में रखता है, उसकी रक्षा की जा सके। भगवान परशुराम ऐसे ही धर्मपरायण थे जो क्रोध के वशीभूत होकर अनाचारियों के लिए किसी काल से कम न थे। परशुराम ही इतिहास के पहले ऐसा महापुरुष हैं जिन्होंने किसी राजा को दंड देने के लिए दूसरे राजाओं को भी सबक सिखा नई राज व्यवस्था बनाई जिससे हाहाकार मच गया। परशुराम की विजय के बाद संचालन सही ढंग से न होने से अपराध और हाहाकार की स्थिति बनी। इससे घबराए...
धर्म के नाम पर जारी अधर्म

धर्म के नाम पर जारी अधर्म

अवर्गीकृत
- डॉ. वेदप्रताप वैदिक भारत में कोई स्वेच्छा से अपना धर्म बदलना चाहे तो यह उसका मौलिक अधिकार है लेकिन मैं पूछता हूं कि ऐसे कितने लोगों को आपने कोई नया धर्म अपनाते हुए देखा है, जिन्होंने उस धर्म के मर्म को समझा है और उसे शुद्ध भाव से स्वीकार किया है? ऐसे लोगों की आप गणना करना चाहें तो उनमें महावीर, बुद्ध, ईसा, मुहम्मद, शंकराचार्य, गुरुनानक, महर्षि दयानंद जैसे महापुरुषों के नाम सर्वाधिक अग्रगण्य होंगे। लेकिन दुनिया के लगभग 90 प्रतिशत लोग तो इसीलिए किसी पंथ या धर्म के अनुयायी बन जाते हैं, क्योंकि उनके माता-पिता उसे मानते थे। सारी दुनिया में ऐसे 5-7 प्रतिशत लोग ढूंढना भी मुश्किल हैं, जो वेद, जिंदावस्ता, आगम ग्रंथ, त्रिपिटक, बाइबिल, कुरान या गुरूग्रंथ पढ़कर हिंदू या पारसी या जैन या बौद्ध या ईसाई या मुसलमान या सिख बने हों। जो थोक में धर्म परिवर्तन होता है, उसके लिए या तो विशेष परिस्थितियां उत्पन...