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श्रीअयोध्या धाम में नवनिर्मित प्रभु श्रीराम मंदिर ने भारतीय समाज को एक किया है

श्रीअयोध्या धाम में नवनिर्मित प्रभु श्रीराम मंदिर ने भारतीय समाज को एक किया है

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- प्रहलाद सबनानी 22 जनवरी 2024 का दिन भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाएगा, क्योंकि इस दिन श्रीअयोध्या धाम में प्रभु श्रीरामलला के विग्रहों की एक भव्य मंदिर में समारोह पूर्वक प्राण प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई थी। इस प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में पूरे देश से धार्मिक, राजनैतिक एवं सामाजिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र के शीर्ष नेतृत्व तथा समस्त मत, पंथ, सम्प्रदाय के पूजनीय संत महात्माओं की गरिमामय उपस्थिति रही थी। इससे निश्चित ही यह आभास हुआ है कि प्रभु श्रीराम मंदिर ने भारत में समस्त समाज को एक कर दिया है। इसे भारत के पुनरुत्थान के गौरवशाली अध्याय के प्रारम्भ का संकेत माना जा सकता है। सामान्यतः किसी भी भवन का ढांचा नीचे से ऊपर की ओर जाता दिखाई देता है परंतु प्रभु श्रीराम मंदिर के बारे में यह कहा जा रहा है कि प्रभु श्रीराम का यह मंदिर जैसे ऊपर से बनकर आया है और पृथ्वी पर स्थापित कर दिय...
धर्मनिरपेक्ष राज्य की अवधारणा मात्र भ्रम है

धर्मनिरपेक्ष राज्य की अवधारणा मात्र भ्रम है

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- पंकज जगन्नाथ जयस्वाल कोई सोच भी नहीं सकता कि 140 करोड़ की आबादी वाला देश 70 साल से भी ज्यादा समय से 'सेक्युलरिज्म' शब्द के झांसे में फसा हुआ है। विरोधी मान्यताओं वाले राजनीतिक समूह 'धर्मनिरपेक्षता' के बैनर तले एकजुट हो गए हैं। कई राजनीतिक दल चुनाव जीतने और धर्म के खिलाफ शासन करने के लिए तुरुप के पत्ते के रूप में 'धर्मनिरपेक्षता' का उपयोग करते हैं। धर्म का पालन करने वाले राजनीतिक दल की कड़ी आलोचना की जाती है। उसे हराने के लिए तमाम तरह के तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है। यह एक ऐसे देश में हो रहा है जहां राजनीतिक जीवन की दस हजार साल की परंपरा सभी के लिए न्याय और समानता को स्थापित करती है, जैसा कि रामराज्य में देखा गया है। धर्म, स्वामी विवेकानंद के अनुसार, भारत का मूल है। लोगों को यह विश्वास करने में गुमराह किया गया कि रिलीजन का अर्थ धर्म है। भारत के इतिहास में ऐसा कोई क्षण नहीं था जहां रि...
शताब्दी वर्ष का संघ संकल्प

शताब्दी वर्ष का संघ संकल्प

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- डॉ. दिलीप अग्निहोत्री राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना सकारात्मक भाव भूमि पर हुई थी। इसमें नकारात्मक चिंतन के लिए कोई जगह नहीं है। हिन्दू समाज को संगठित करने का ध्येय था। संघ की संरचना में शाखाएं सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती हैं। यहीं से सामाजिक संगठन और निःस्वार्थ सेवा का संस्कार मिलता है। इसमें मातृभूमि की प्रार्थना की जाती है-नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमि। यह भाव राष्ट्र को सर्वोच्च मानने की प्रेरणा देता है। समाज के प्रति सकारात्मक विचार जागृत होता है। स्वयंसेवकों के समाज सेवा कार्य इसी भावना से संचालित होते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना के सौवें वर्ष में प्रवेश करने से पहले चाहता है कि वह देश के सभी मंडलों तक शाखाओं का विस्तार कर दे। इसके लिए हरियाणा में आयोजित तीन दिवसीय अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में विस्तार से चर्चा हुई। मंडल स्तर पर शाखाओं का विस्तार महत्वपूर्ण है। संघ का...