Saturday, September 21"खबर जो असर करे"

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ट्रंक कॉल सेवाओं से फाईव जी तक के सफर की साक्षी है वर्तमान प्रौढ़ पीढ़ी

अवर्गीकृत
- लिमटी खरे एक समय था जब दूर रहने वाले अपने रिश्ते नातेदारों, मित्रों से संवाद के लिए खतो खिताब पर ही निर्भरता हुआ करती थी। बहुत जरूरी सूचना अगर होती थी तो टेलीग्राम भेज दिया करते थे। बहुत ही जरूरी सरकारी संदेशों को पुलिस के वायरलेस के जरिए भेजा जाता था जिन्हें ‘रेडियो मैसेज‘ कहा जाता था। इसके बाद आया टेलीफोन का जमाना। टेलीफोन के जमाने में फोन उठाईए, दूसरी ओर से टेलीफोन एक्सचेंज से आपरेटर फोन उठाता, आप उसे नंबर लगाते, फिर वह आपको नंबर मिलाकर देता। यह शहर के अंदर ही होता था। अगर आपको किसी अन्य शहर में फोन लगाना होता तो आपको ट्रंक कॉल बुक करना होता था। इसकी तीन श्रेणियां होती थीं। पहली लाईटनिंग जो सबसे महंगी, फिर एक्सप्रेस उससे सस्ती और सबसे सस्ती आर्डनरी। साथ ही पर्टिकुलर पर्सन अर्थात पीपी कॉल भी बुक होते थे जिसमें जिस व्यक्ति के लिए कॉल बुक किया है वह अगर मिल गया तो ही पैसे देने होते थे।...