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‘कौओं’ के बगैर श्राद्ध पक्ष की परंपरा अधूरी

‘कौओं’ के बगैर श्राद्ध पक्ष की परंपरा अधूरी

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- डॉ. रमेश ठाकुर श्राद्ध पक्ष चल रहे हैं। इन दिनों गुजरे लोगों को याद करना और उनका मनपसंद भोजन बनाकर परोसने की परंपरा निभाई जाती है। मान्यताओं के मुताबिक स्वर्गीय तक यह भोजन कौओं द्वारा पहुंचाया जाता है। श्राद्ध में कौए परलोकी लोगों के वाहक बनते हैं। पर, कौए इन्हीं दिनों में दूर-दूर तक दिखाई नहीं पड़ते। श्राद्ध का भोजन लेकर लोग उनके आगमन का लंबा इंतजार करते रहते हैं लेकिन वो नहीं आते। हों तो ही आए न? हैं ही नहीं। जबकि श्राद्ध में भोजन उन्हीं को ध्यान में रख कर तैयार किया जाता है। जाहिर है जब कौए ही नहीं होंगे, तो श्राद्ध की मान्यताएं भला कैसी पूरी होगी? हमेशा से होता आया है कि श्राद्ध में पितरों का भोजन जब तक कौए न खाएं श्राद्ध की मान्यताएं पूरी नहीं होती। कौए आएंगे, खाना चुगेंगे और पितरों तक पहुंचाएंगे, लेकिन कौवे नहीं आते? ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी कहीं-कहीं दिख जाते हैं लेकिन शहरों से...
भारतीय ज्ञान परम्परा पर आधारित शिक्षा की जरूरत

भारतीय ज्ञान परम्परा पर आधारित शिक्षा की जरूरत

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- डॉ. सौरभ मालवीय शिक्षा को लेकर समय-समय पर अनेक प्रश्न उठते रहते हैं, जैसे कि शिक्षा पद्धति कैसी होनी चाहिए? पाठ्यक्रम कैसा होना चाहिए? विद्यार्थियों को पढ़ाने का तरीका कैसा होना चाहिए? वास्तव में स्वतंत्रता से पूर्व देश में अंग्रेजी शासन था। अंग्रेजों ने अपनी सुविधा एवं आवश्यकता के अनुसार शिक्षा पद्धति लागू की। उनका उद्देश्य भारतीयों को शिक्षित करना नहीं था, अपितु उनका उद्देश्य केवल अपने लिए क्लर्क तैयार करना था। देश की स्वतंत्रता के पश्चात स्वदेशी सरकार ने इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया। स्वतंत्रता के पश्चात देश में बहुत से कार्य करने थे। संभव है कि इस कारण इस ओर ध्यान नहीं गया हो अथवा उस समय के लोगों को अंग्रेजी शिक्षा पद्धति उचित लगी हो। कारण जो भी रहा हो, देश में अंग्रेजी शिक्षा पद्धति से ही पढ़ाई होती रही। कुछ दशकों पूर्व देश में नई शिक्षा पद्धति की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी तथा इस पर ...
खेलो इंडिया : परंपरा को मिला पुनर्जीवन

खेलो इंडिया : परंपरा को मिला पुनर्जीवन

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- प्रो. संजय द्विवेदी विराट भारतीय संस्कृति और परंपराओं में बचपन से ही पढ़ाई के साथ-साथ खेलों का भी एक विशेष महत्व रहा है। हमारा यह विश्वास रहा है कि जिस प्रकार अध्ययन मानसिक विकास में आवश्यक है, उसी तरह खेल शारीरिक विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमारे जीवन में खेल और स्वास्थ्य का बहुत बड़ा योगदान है। खेल हमारे भीतर टीम भावना पैदा करते हैं। साथ ही इनसे हमारे अंदर, सही समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता, नेतृत्व कौशल, लक्ष्य निर्धारण और जोखिम लेने का आत्मविश्वास भी उत्पन्न होता है। शताब्दियों तक भारतीय ज्ञान, अध्ययन और अध्यापन परंपरा में खेलों को समान महत्व दिया गया, क्योंकि एक सुदृढ़ व्यक्तित्व का निर्माण तभी संभव है, जब उसमें एक ‘विचारशील मन’ और एक ‘सुगठित तन’, दोनों शामिल हों। हमारे प्राचीन गुरुकुलों में दी जाने वाली शिक्षा इसका प्रमाण है, जिसमें शास्त्रों-वेदों के अलावा विभिन...
युवा पीढ़ी संस्कृति, वेशभूषा और परिश्रम की परम्परा को न भूलें, राष्ट्रभक्तों से प्रेरणा ग्रहण करें : शिवराज

युवा पीढ़ी संस्कृति, वेशभूषा और परिश्रम की परम्परा को न भूलें, राष्ट्रभक्तों से प्रेरणा ग्रहण करें : शिवराज

देश, मध्य प्रदेश
- मुख्यमंत्री ने सिंधी समाज के हित में की महत्वपूर्ण घोषणाएं भोपाल (Bhopal)। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chouhan) ने कहा कि अमर शहीद हेमू कालानी (Amar Shaheed Hemu Kalani) ने भारत को स्वतंत्र कराने के लिए अपने जीवन का बलिदान किया। उन्होंने गले में फांसी का फंदा पहनते हुए कहा था कि मैं फिर से जन्म लूंगा और भारत को स्वतंत्र करवाऊंगा। आज यदि हम शहीदों को नहीं पूजेंगे, तो राष्ट्र के लिए जीवन का बलिदान करने के लिए कोई आगे नहीं आएगा। नई पीढ़ी (new generation) के लिए शहीदों का जीवन प्रेरक है। वीर सेनानियों के साथ ही सिंध संतों की भूमि रही है। सिंधु नदी के किनारे वेदों की ऋचाएँ रची गईं। सिंध की संस्कृति काफी प्राचीन है। इस समाज ने अनेक समाज-सुधारक, सफल उद्यमी और अन्य प्रतिभाएं देने का कार्य किया है। अपने धर्म, संस्कृति और सभ्यता के लिए मातृ-भूमि को छोड़ने के बाद भी प...
औपनिवेशिकता से उबरने की चुनौती

औपनिवेशिकता से उबरने की चुनौती

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- गिरीश्वर मिश्र भारत में ज्ञान और शिक्षा की परम्परा की जड़ें न केवल गहरी और अत्यंत प्राचीन हैं बल्कि यहां विद्या को अर्जित करना एक पवित्र और मुक्तिदायी कार्य माना गया है । इसके विपरीत पश्चिम में ज्ञान का रिश्ता अधिकार और नियंत्रण के उपकरण विकसित करना माना जाता रहा है ताकि दूसरों पर वर्चस्व और एकाधिकार स्थापित किया जा सके । उसी रास्ते पर चलते हुए पश्चिमी दुनिया में मूल्य-निरपेक्ष विज्ञान के क्षेत्र का अकूत विस्तार होता गया और उसके परिणाम सबके सामने हैं । ऐतिहासिक परिवर्तनों के बीच विज्ञान की यह परम्परा यूरोप और अमेरिका से चल कर दुनिया के अन्य क्षेत्रों में फैली । इतिहास गवाह है कि औपनिवेशक दौर में पश्चिम से लिए गए विचार, विधियाँ और विमर्श अकेले विकल्प की तरह दुनिया के अनेक देशों में पहुँचे और हाबी होते गए । ऐसा करने करने का प्रयोजन ‘अन्य’ के ऊपर आधिपत्य था । इस प्रक्रिया में अंतर्निहित ए...
अपनी संस्कृति, परम्परा और आतिथ्य सत्कार से इंदौर दुनिया का दिल जीतेगाः शिवराज

अपनी संस्कृति, परम्परा और आतिथ्य सत्कार से इंदौर दुनिया का दिल जीतेगाः शिवराज

देश, मध्य प्रदेश
- इंदौर बना दुनिया के सपनों का शहरः मुख्यमंत्री भोपाल। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chouhan) ने कहा कि इंदौर (Indore) अब सिर्फ मेरे ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के सपनों का शहर है। इंदौर में चार महत्वपूर्ण कार्यक्रम होंगे। इनमें प्रवासी भारतीय सम्मेलन (Pravasi Bhartiya Sammelan), इन्वेस्टर्स समिट (investors summit), जी-20 की बैठकें और खेलों इंडिया जैसे आयोजन शामिल हैं। इंदौर को मेहमाननवाजी का बेहतर अवसर मिला है। इस दुर्लभ अवसर से चूके नहीं, व्यवस्थाओं और स्वागत-सत्कार से अतिथियों के दिलों में ऐसी यादगार छाप छोड़ें, जिसे यहाँ आने वाले लोग कभी नहीं भूल पायें। मुझे विश्वास है कि इंदौर दुनिया का दिल जीतेगा। मुख्यमंत्री चौहान मंगलवार शाम को इंदौर में प्रबुद्ध नागरिकों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी इण्डोनेशिया में देश के सबसे ...

विलुप्त होने को है सावन में झूला झूलने की परंपरा

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- डॉ. रमेश ठाकुर सावन माह झूलों के लिए प्रसिद्ध रहा है, जिसमें झूला झूलना सिर्फ रिवाज नहीं माना गया, बल्कि भारतीय संस्कृति की प्राचीन परंपरा भी कहा गया। पर, ये परंपरा अब विलुप्त होने के कगार पर है। क्योंकि अब सावन के माह में झूले कहीं दिखाई नहीं पड़ते। बदलते परिवेश और आधुनिकता की चकाचौंध ने झूलों की परंपरा को धराशायी कर दिया है। कमोबेश, आज स्थिति ये है कि ये रिवाज अब इतिहास के कागजी पन्नों में सिमटने को मजबूर हैं। सावन की रिमझिम बारिश और झूलों पर हिंदी फिल्मों के कई गाने बनें, फिल्मों में झूलों के दृश्य भी फिल्माए गए, पर अब ना वैसे अब गाने रहे और न ही झूले। बदलते समाज ने तमाम परंपराओं को समेट कर पिंजरे में बंद कर दिया है। शहरों के मुकाबले ग्रामीण परिवेश में सावन माह के महत्व को हमेशा से बड़ा माना गया। वेद-पुराणों में इस महीने को पवित्र तो कहा ही गया है, साथ ही दो और खास बातें जुड़ी हैं। अ...