भारत के हजार टुकड़ों की तैयारी
- डॉ. वेदप्रताप वैदिक
अब तक भारत में जिन अनुसूचित जातियों और जन-जातियों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया जाता रहा है, अब उनकी संख्या बढ़ाने की मांग हो रही है। अदालत में कई याचिकाएं भी लगी हुई हैं। संविधान सभा में पहले सिर्फ उन्हीं अनुसूचितों को आरक्षण मिला हुआ था, जो अपने आप को हिंदू मानते थे लेकिन 1956 में सिखों और 1990 में बौद्ध अनुसूचितों को भी इस जमात में जोड़ लिया गया। हालांकि गौतम बुद्ध और गुरुनानक अपने अनुयायियों को जातिभेद से दूर रहने का उपदेश देते रहे लेकिन थोक वोटों के लालच में फंसकर नेताओं ने धर्म को भी जाति के पांव तले ठेल दिया।
आश्चर्य है कि उन अ-हिंदू धर्मावलंबियों ने उनके इस धर्म विरोधी कृत्य को सहर्ष स्वीकार कर लिया। अब उन्हीं की देखादेखी हमारे मुसलमान, ईसाई और यहूदी भी मांग कर रहे हैं कि उनमें जो अनुसूचित हैं और पिछड़े हैं, उन्हें भी सरकारी आरक्षण दिया जाए। सरकार ने इस पर...