Friday, November 22"खबर जो असर करे"

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अपनेपन का प्रतीक है रक्षाबंधन का पर्व

अपनेपन का प्रतीक है रक्षाबंधन का पर्व

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- रमेश सर्राफ धमोरा भारत में रक्षाबंधन के पवित्र पर्व को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इसे रिश्तों में मिठास, विश्वास और प्रेम बढ़ाने वाला पर्व माना गया है। इस दिन बहनें, भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं और उसकी लंबी उम्र की कामना करती हैं। इस दौरान भाई भी अपनी बहन को रक्षा का वचन देता है और क्षमता के अनुसार उपहार देता है। रक्षाबन्धन का पर्व भाई-बहिन के स्नेह का प्रतीक देश का एक प्रमुख त्योहार है। रक्षाबन्धन पर्व में रक्षासूत्र यानी राखी का सबसे अधिक महत्व है। श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी पर्व भी कहते हैं। इस दिन ब्राह्मण गुरु द्वारा भी राखी बांधी जाती है। हिन्दू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बांधते समय पण्डित संस्कृत में एक श्लोक का उच्चारण करते हैं। जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। यह श्लोक रक्षा...
शौर्य और जनहितकारी शासन की प्रतीक रानी दुर्गावती

शौर्य और जनहितकारी शासन की प्रतीक रानी दुर्गावती

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- हितानंद भारत के इतिहास में मुगलों को चुनौती देने वाले योद्धाओं में महाराणा प्रताप और शिवाजी महाराज का नाम लिया जाता है। लेकिन इस सूची में गोंडवाना की रानी दुर्गावती का भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। रानी दुर्गावती ने आखिरी दम तक मुगल सेना को रोककर उनके राज्य पर कब्जा करने की हसरत को कभी पूरा नहीं होने दिया। शौर्य या वीरता रानी दुर्गावती के व्यक्तित्व का एक पहलू था। वो एक कुशल योद्धा होने के साथ-साथ एक कुशल प्रशासक थीं और उनकी छवि एक ऐसी रानी के रूप में भी थी, जो प्रजा के कष्टों को पूरी गहराई से अनुभव करती थीं। इसीलिए गोंडवाना क्षेत्र में उन्हें उनकी वीरता और अदम्य साहस के अलावा उनके जनकल्याणकारी शासन के लिए भी याद किया जाता है। मुगल शासक अकबर और उसके सिपहसालारों का मानमर्दन करने वाली रानी दुर्गावती का जन्म 24 जून को 1524 को बांदा जिले में कलिंजर के चंदेला राजपूत राजा कीरतसिंह चं...
आस्था के प्रतीक हैं खाटू के श्याम बाबा

आस्था के प्रतीक हैं खाटू के श्याम बाबा

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- रमेश सर्राफ धमोरा देश में बहुत से ऐसे धार्मिक स्थल हैं जो अपने चमत्कारों व वरदानों के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्हीं में से एक है राजस्थान में शेखावाटी क्षेत्र के सीकर जिले का विश्व विख्यात प्रसिद्ध खाटू श्याम मंदिर। यहां फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को श्याम बाबा का विशाल वार्षिक मेला भरता है। इसमें हर साल देश-विदेश के करीब 30 लाख श्रद्धालु शामिल होते हैं। खाटू श्याम का मेला राजस्थान के बड़े मेलों में से एक है। इस मंदिर में भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक की श्याम यानी कृष्ण के रूप में पूजा की जाती है। इस मंदिर के लिए कहा जाता है कि जो भी इस मंदिर में जाता है उन्हें श्याम बाबा का नित नया रूप देखने को मिलता है। कई लोगों को तो इस विग्रह में कई बदलाव भी नजर आते हैं। कभी मोटा तो कभी दुबला। कभी हंसता हुआ तो कभी ऐसा तेज भरा कि नजरें भी नहीं टिक पातीं। श्याम बाबा का धड़ से अलग शीष ...
बीएपीएस मंदिर मानवता की साझा विरासत का प्रतीक: प्रधानमंत्री

बीएपीएस मंदिर मानवता की साझा विरासत का प्रतीक: प्रधानमंत्री

देश
नई दिल्ली (Abu Dhabi)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने बुधवार को यूएई (UAE) के अबुधाबी (Abu Dhabi) में बीएपीएस मंदिर का उद्घाटन (BAPS temple inaugurated) करने के बाद एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि यह मंदिर (Temple) मानवता की साझा विरासत (common heritage of humanity) का प्रतीक ( symbol) है। साथ ही भारत और अरब के लोगों के आपसी प्रेम का भी प्रतीक है। प्रधानमंत्री ने मंदिर उद्घाटन के बाद यूएई के राष्ट्रपति मोहम्मब बिन जायद अल नाहयान की मंदिर को सभी प्रतीकों के साथ उनके देश में निर्माण के लिए स्थान और अनुमति देने के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि यह राष्ट्रपति की विश्व बंधुत्व की सोच का प्रतीक है। प्रधानमंत्री के आह्वान पर राष्ट्रपति के सम्मान में स्टैंडिग ओवेशन दिया गया। साथ ही प्रधानमंत्री ने जानकारी दी कि राष्ट्रपति नाहयान ने भारतीय समुदाय के लि...
भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक है रक्षाबंधन का पर्व

भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक है रक्षाबंधन का पर्व

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- रमेश सर्राफ धमोरा रक्षाबन्धन का पर्व भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक देश का एक प्रमुख त्योहार है। रक्षाबन्धन पर्व में रक्षासूत्र यानी राखी का सबसे अधिक महत्व है। इस पर्व के दिन बहनें अपने भाई को राखी बांधती हैं। श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी पर्व भी कहते हैं। इस दिन ब्राह्मण, गुरु द्वारा भी राखी बांधी जाती है। हिन्दू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बांधते समय पण्डित संस्कृत में एक श्लोक का उच्चारण करते हैं। जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। यह श्लोक रक्षाबन्धन का अभीष्ट मन्त्र है। येन बद्धो बलि राजा दानवेन्द्रो महाबलः तेन त्वाम प्रतिबद्धनामी रक्षे माचल माचलः इस श्लोक का अर्थ है जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बांधता हूं। तुम अपने संकल्प से कभी भ...
अरुण यादव की टिप्पणी स्तरहीन मानसिकता का प्रतीक, यही कांग्रेसी कल्चरः शिवराज

अरुण यादव की टिप्पणी स्तरहीन मानसिकता का प्रतीक, यही कांग्रेसी कल्चरः शिवराज

देश, मध्य प्रदेश
भोपाल (Bhopal)। पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव (Arun Yadav) द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लेकर दिए गए अमर्यादित बयान पर भाजपा हमलाहर हो गई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chouhan) ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए अरुण यादव के बयान को स्तरहीन मानसिकता का प्रतीक बताते हुए इसे कांग्रेसी कल्चर करार दिया। मुख्यमंत्री चौहान ने बुधवार देर शाम ट्वीट के माध्यम से कहा कि आज कांग्रेस नेता अरुण यादव द्वारा प्रधानमंत्री मोदी के स्वर्गीय पिता जी पर जो अभद्र टिप्पणी की गई। वह उनकी स्तरहीन मानसिकता का प्रतीक है। यही "कांग्रेसी कल्चर", इनकी मोहब्बत की दुकान है। उन्होंने कहा कि मोदी देश का मान और देशवासियों का स्वाभिमान हैं। कांग्रेस रसातल में जा रही है और जब देश के यशस्वी व लोकप्रिय प्रधानमंत्री मोदी का सीधे मैदान में मुकाबला न...
वीर राम सिंह पठानियाः अंग्रेजों की हड़प नीति के विरुद्ध अद्भुत साहस के प्रतीक

वीर राम सिंह पठानियाः अंग्रेजों की हड़प नीति के विरुद्ध अद्भुत साहस के प्रतीक

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- रमेश शर्मा अंग्रेजों की हड़प नीति के विरुद्ध अद्भुत साहस के प्रतीक वीर राम सिंह पठानिया ने अपने मुट्ठीभर साथियों के बल पर अंग्रेजी साम्राज्य की नींव हिला दी थी। किन्तु दुर्भाग्य से देशवासी इस महान राजपूत योद्धा के बारे में नहीं जानते। वीर राम सिंह पठानिया का जन्म 10 अप्रैल 1824 को हुआ था। वीर सिंह के पिता श्याम सिंह नूरपुर रियासत के राजा वीर सिंह के वजीर थे। 1806 में दिल्ली पर अधिकार करने के बाद अंग्रेजों ने उत्तर और मध्यभारत में अपने वर्चस्व का अभियान चलाया। उनका सबसे प्रमुख लक्ष्य पंजाब था। अंततः अंग्रेज सफल हुए और नौ मार्च 1846 में अंग्रेज-सिख संधि हुई। इसके चलते वर्तमान हिमाचल प्रदेश की अधिकांश रियासतें सीधे अंग्रेजों के आधीन हो गईं। नूरपुर के राजा वीर सिंह अपने दस वर्षीय बेटे राज कुमार जसवंत सिंह को नूरपुर की राजगद्दी का उत्तराधिकारी छोड़कर स्वर्ग सिधार गए। अंग्रेजों ने राजकुमार जस...