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वीरांगना रानी दुर्गावती ने स्वराज और स्व धर्म के लिए बलिदान दिया: सीएम  शिवराज

वीरांगना रानी दुर्गावती ने स्वराज और स्व धर्म के लिए बलिदान दिया: सीएम शिवराज

देश, मध्य प्रदेश
- मुख्यमंत्री ने बालाघाट से किया वीरांगना रानी दुर्गावती गौरव यात्रा का शुभारंभ कहा- प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में विश्व में बढ़ा है देश का मान-सम्मान भोपाल। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में दुनिया में भारत का मान-सम्मान निरंतर बढ़ रहा है। नए शक्तिशाली और गौरवशाली भारत का निर्माण हो रहा है। आज का भारत प्रतिद्वंदी राष्ट्रों को मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम है। प्रधानमंत्री मोदी की नीति है कि हम किसी को छेड़ेंगे नहीं, मगर कोई आंख दिखाता है, तो उसे छोड़ेंगे नहीं। भारत ने जिस प्रकार अत्यंत कम समय में कोविड का टीका बनाकर सारी दुनिया को उपलब्ध कराया, यह मानवता की बड़ी सेवा है और इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी धन्यवाद के पात्र है। मुख्यमंत्री चौहान गुरुवार शाम को बालाघाट में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने इस मौके पर वीरांगना र...
स्वराज का बिम्ब और स्वदेशी का संकल्प

स्वराज का बिम्ब और स्वदेशी का संकल्प

अवर्गीकृत
- गिरीश्वर मिश्र सन् 1909 में लंदन से दक्षिण अफ्रीका लौटते हुए गांधी जी ने तब तक के अपने सामाजिक-राजनैतिक विचारों को सार रूप में गुजराती में दर्ज किया था जिसे ‘हिंद स्वराज’ शीर्षक से प्रकाशित किया था। उसे बंबई की सरकार ने जब्त कर लिया। फिर जब गांधी जी 1915 में दक्षिण अफ्रीका का कार्य पूरा कर भारत लौटे तब इस पुस्तिका को अंग्रेजी में छपवाया । इस बार सरकार ने विरोध नहीं किया और यह पढ़ने के लिए सब को उपलब्ध हो गई। इसे लेकर देश-विदेश में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह की आलोचनाएं होती रहीं। खुद गांधी जी के शब्दों में ‘इसके विचार उनकी आत्मा में गढ़े-जड़े हुए’ से थे। सन् 1938 में सेवाग्राम, वर्धा में आर्यन पथ नामक पत्रिका में अंग्रेजी में इसके प्रकाशन के अवसर पर उन्होंने कहा था कि ‘इसे लिखने के बाद तीस साल मैंने अनेक आंधियों में बिताए हैं, उनमें मुझे इस पुस्तक में फेर बदल करने का कुछ भी कारण न...

स्वतंत्र भारत में स्वराज की प्रतिष्ठा

अवर्गीकृत
- गिरीश्वर मिश्र आजादी मिलने के पचहत्तर साल बाद देश स्वतंत्रता का 'अमृत महोत्सव’ मना रहा है तो यह विचार करने की इच्छा और स्वाभाविक उत्सुकता पैदा होती है कि स्वतंत्र भारत का जो स्वप्न देखा गया था वह किस रूप में यथार्थ के धरातल पर उतरा। स्वाधीनता संग्राम का प्रयोजन यह था कि भारत को न केवल उसका अपना खोया हुआ स्वरूप वापस मिले बल्कि वह विश्व में अपनी मानवीय भूमिका को भी समुचित ढंग से निभा सके। देश या राष्ट्र का भौगोलिक अस्तित्व तो होता है पर वह निरा भौतिक पदार्थ नहीं होता जिसमें कोई परिवर्तन न होता हो। वह एक गत्यात्मक रचना है और उसी दृष्टि से विचार किया जाना उचित होगा। बंकिम बाबू ने भारत माता की वन्दना करते हुए उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में 'सुजलां सुफलां मलयज शीतलां शस्य श्यामलां मातरं वन्दे मातरं' का अमर गान रचा था। 'सुखदां वरदां मातरं’ के स्वप्न के साथ यह मंत्र पूरे भारत के मानस में तब से...