आखिर हम कब जागेंगे?
- गिरीश्वर मिश्र
पिछले कई दिनों से दिल्ली की सुबह ऐसी हो रही है कि धुँध के बीच सूरज छिप जा रहा है और हवा जहरीली हो गई। घर से बाहर निकलने में डर लगता है। पर उससे भी काम नहीं चलता क्योंकि वही हवा घर के भीतर भी पहुँच रही है। जीने के लिए साँस लेनी होगी और साँस लेते हुए जहर निगलना ही पड़ेगा। इस हालात का बच्चों और बूढ़ों के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है। अस्पतालों में श्वांस के रोगी बहुत बढ़ गए हैं। हृदय और मधुमेह के रोगियों की मुसीबत और बढ़ गयी है।
गौर तलब है कि दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी परिक्षेत्र (एनसीआर) का प्रदूषण स्तर गाजा की बारूदी युद्धभूमि की तुलना में बीस है। यह समाचार भी तैर रहा था कि करवाचौथ के दिन भारतीयों ने पंद्रह हजार करोड़ की खरीदारी की। निश्चय ही यह तथ्य बताता है कि लोगों की क्रय शक्ति में इजाफा हुआ है। ऐसे में बाजार की धमाचौकड़ी बढ़ती है। इसी के साथ सड़कों पर मोटर ...