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यौन शोषण पीड़ित बच्चों को कब मिलेगा न्याय?

यौन शोषण पीड़ित बच्चों को कब मिलेगा न्याय?

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- विनायक दास केंद्र सरकार की तमाम नीतियों, प्रयासों और वित्तीय प्रतिबद्धताओं के बावजूद पॉक्सो के मामलों की सुनवाई के लिए बनाई गई विशेष त्वरित अदालतों में 31 जनवरी 2023 तक देश में 2,43,237 मामले लंबित थे। अगर लंबित मामलों की इस संख्या में एक भी नया मामला नहीं जोड़ा जाए तो भी इन सारे मामलों के निपटारे में कम से कम नौ साल का समय लगेगा। अरुणाचल प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में पॉक्सो के लंबित मामलों के निपटारे में 25 से ज्यादा साल तक का समय लग सकता है। साथ ही 2022 में पॉक्सो के सिर्फ तीन फीसदी मामलों में सजा सुनाई गई। ये चौंकाने वाले तथ्य विधि एवं कानून मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय एवं राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों पर केंद्रित इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड (आईसीपीएफ) की ओर से जारी शोधपत्र ‘जस्टिस अवेट्स : ऐन एनालिसिस ऑफ द एफिकेसी ऑफ जस्टिस डेलिवरी मैकेनिज्म्स इन केसेज ऑ...
पृथ्वी की पीड़ा को समझें

पृथ्वी की पीड़ा को समझें

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- हृदयनारायण दीक्षित भारतीय विवेक और श्रद्धा में पृथ्वी माता हैं। पृथ्वी को मां मानने और जानने की अनुभूति केवल भारत में है। हम सब पृथ्वी पुत्र हैं। इसी में जन्म लेते हैं। पृथ्वी ही पालती है। यही पोषण करती है। लेकिन दूषित पर्यावरण के कारण पृथ्वी का अस्तित्व संकट में है। सारी दुनिया का ताप बढ़ रहा है। पर्यावरण संरक्षण वैज्ञानिकों के सामने भी बड़ी चुनौती है। आज से 18 साल पहले 2005 में संयुक्त राष्ट्र का सहस्त्राब्दी पर्यावरण आकलन (मिलेनियन इकोसिस्टम असेसमेंट) आया था। यह एक गंभीर दस्तावेज था और है। इस अनुमान में कहा गया था कि पृथ्वी के प्राकृतिक घटक अव्यवस्थित हो गए हैं। यह अनुमान 18 वर्ष पुराना है। इसके पूर्व सन 2000 में भी पेरिस के `अर्थ चार्टर कमीशन' ने पृथ्वी और पर्यावरण संरक्षण के 22 सूत्र निकाले थे। लेकिन इस दिशा में कोई महत्वपूर्ण काम नहीं हुआ। कोई ठोस संकल्प नहीं लिए गए। वैसे वैदिक सा...
जीवन में आरोग्य

जीवन में आरोग्य

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- गिरीश्वर मिश्र ‘जीवेम शरद: शतम्’ ! भारत में स्वस्थ और सुखी सौ साल की जिंदगी की आकांक्षा के साथ सक्रिय जीवन का संकल्प लेने का विधान बड़ा पुराना है। पूरी सृष्टि में मनुष्य अपनी कल्पना शक्ति और बुद्धि बल से सभी प्राणियों में उत्कृष्ट है। वह इस जीवन और जीवन के परिवेश को रचने की भी क्षमता रखता है। साहित्य,कला, स्थापत्य और ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में उसकी विराट उपलब्धियों को देखकर कोई भी चकित हो जाता है। यह सब तभी सम्भव है जब जीवन हो और वह भी आरोग्यमय हो। परंतु लोग स्वास्थ्य पर तब तक ध्यान नहीं देते जब तक कोई कठिनाई न आ जाए। दूसरों से तुलना करने और अपनी बेलगाम होती जरूरतों और महत्वाकांक्षाओं के बदौलत तरह-तरह की चिंताए कष्ट, तनाव और अवसाद से ग्रस्त होना आज आम बात हो गई है। मुश्किलों के आगे घुटने टेक कई लोग तो जीवन से ही निराश हो बैठते हैं । कुछ लोग इतने निराश हो जाते हैं कि उन्हें कुछ सूझता ...