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अस्तित्च के संकट से जूझती कम्यूनिस्ट पार्टियां

अस्तित्च के संकट से जूझती कम्यूनिस्ट पार्टियां

अवर्गीकृत
- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा देश की कम्यूनिस्ट पार्टियों के सामने अस्तित्व का संकट है। साल 2004 के बाद लोकसभा में वामदलों का प्रतिनिधित्व लगातार कम होता जा रहा है। अब 18 वीं लोकसभा के चुनाव में वामदलों के सामने अस्तित्व बचाए रखने का संकट है। आजादी से पहले और उसके बाद के दौर में एक समय पूरे देश में वामदल काफी प्रभावी थे। सरकार भले कम ही राज्यों में रही हो पर वामदल और उसके अनुशांगिक संगठन चाहे वह स्टूडेंट फेडरेशन हो या मजदूर संगठन या लेखक संघ सभी की अपनी पहचान थी। पर कुछ समय के बदलाव तो कुछ अपने धत्कर्मों की वजह से वामदलों के सामने पहचान का संकट खड़ा हो गया है। प. बंगाल में वामदलों ने तीन दशक से भी अधिक समय तक एकछत्र राज किया। वहीं, त्रिपुरा, केरल में भी वामदलों की सरकार रही है। पर 2019 के लोकसभा के चुनाव आते-आते हालात यह हो गई कि वामदलों के गढ़ प. बंगाल में वामदलों को एक भी सीट नहीं मिल...