आमजन के राम
- के. विक्रम राव
राम की कहानी युगों से भारत को संवारने में उत्प्रेरक रही है। इसीलिए राष्ट्र के समक्ष सुरसा के जबड़ों की भांति फैले हुए सद्य संकटों की रामकहानी समझना और उनका मोचन इसी से मुमकिन है। शर्त यही है राम में रमना होगा, क्योंकि वे ''जन रंजन भंज न सोक भयं'' हैं। बापू का अनुभव था कि जीवन के अंधेरे और निराश क्षणों में रामचरित मानस में उन्हें सुकून मिलता था। राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि ''राम का असर करोड़ों के दिमाग पर इसलिये नहीं है कि वे धर्म से जुड़े हैं, बल्कि इसलिए कि जिन्दगी के हरेक पहलू और हरेक कामकाज के सिलसिले में मिसाल की तरह राम आते हैं। आदमी तब उसी मिसाल के अनुसार अपने कदम उठाने लग जाता है।''
इन्हीं मिसालों से भरी राम की किताब को एक बार विनोबा भावे ने सिवनी जेल में ब्रिटेन में शिक्षित सत्याग्रही जेसी कुमारप्पा को दिया और कहा, ''दिस रामचरित मानस ईज बाइबल ऐंड शेक्सपियर कम्...