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आमजन के राम

आमजन के राम

अवर्गीकृत
- के. विक्रम राव राम की कहानी युगों से भारत को संवारने में उत्प्रेरक रही है। इसीलिए राष्ट्र के समक्ष सुरसा के जबड़ों की भांति फैले हुए सद्य संकटों की रामकहानी समझना और उनका मोचन इसी से मुमकिन है। शर्त यही है राम में रमना होगा, क्योंकि वे ''जन रंजन भंज न सोक भयं'' हैं। बापू का अनुभव था कि जीवन के अंधेरे और निराश क्षणों में रामचरित मानस में उन्हें सुकून मिलता था। राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि ''राम का असर करोड़ों के दिमाग पर इसलिये नहीं है कि वे धर्म से जुड़े हैं, बल्कि इसलिए कि जिन्दगी के हरेक पहलू और हरेक कामकाज के सिलसिले में मिसाल की तरह राम आते हैं। आदमी तब उसी मिसाल के अनुसार अपने कदम उठाने लग जाता है।'' इन्हीं मिसालों से भरी राम की किताब को एक बार विनोबा भावे ने सिवनी जेल में ब्रिटेन में शिक्षित सत्याग्रही जेसी कुमारप्पा को दिया और कहा, ''दिस रामचरित मानस ईज बाइबल ऐंड शेक्सपियर कम्...
द्रौपदी मुर्मू से पहले भी देश को मिल सकता था आदिवासी राष्ट्रपति, जानिए वो किस्सा

द्रौपदी मुर्मू से पहले भी देश को मिल सकता था आदिवासी राष्ट्रपति, जानिए वो किस्सा

देश
नई दिल्ली । द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) देश की 15वीं राष्ट्रपति (15th President) बन गई हैं. उनका राष्ट्रपति बनना अपने आप में ऐतिहासिक है, वे पहली आदिवासी समुदाय (tribal community) से आईं महिला राष्ट्रपति हैं. जिस बड़े अंतर से उन्होंने ये जीत दर्ज की है, इससे ये मुकाम और ज्यादा खास बन जाता है. लेकिन ये बात कम ही लोग जानते हैं कि द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने से 10 साल पहले भी भारत (India) के पास एक मौका आया था. वो मौका था एक आदिवासी राष्ट्रपति चुनने का. ये बात 2012 राष्ट्रपति चुनाव की है. केंद्र में यूपीए की सरकार थी और प्रधानमंत्री थे डॉक्टर मनमोहन सिंह. उस समय कांग्रेस ने राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में प्रणब मुखर्जी को उतारा था. पार्टी को पूरी उम्मीद थी कि विपक्ष कोई उम्मीदवार नहीं उतारेगा और प्रणब बिना किसी अड़चन के रायसेना तक पहुंच जाएंगे. लेकिन उस समय जैसा देश की राजनीति का म...