कृष्ण और वसंत
- गिरीश्वर मिश्र
श्रीकृष्ण भाव पुरुष हैं। परब्रह्म के पूर्ण प्रतीक जो लीला रूप में अनुभवगम्य होते हैं। अक्षय स्नेह के स्रोत रस से परिपूर्ण श्रीकृष्ण इंद्रियों के विश्व में आनंद के निर्झर सरीखे हैं। उनका सान्निध्य चैतन्य की सरसता के साथ सारे जगत को आप्लावित और प्रफुल्लित करता है। श्रीमद्भगवद्गीता में विभूति योग की व्याख्या करते हुए श्रीकृष्ण खुद को ऋतुओं में वसंत घोषित करते हैं : ऋतूनाम् कुसुमाकर: । श्रीमद्भागवत के दशम स्क्न्ध में रास प्रवेश करते हुए उनकी निराली छवि कामदेव को भी लजाने वाली है। गोपियों के सामने भगवान श्रीकृष्ण अपने मुस्कराते हुए मुखकमल के साथ पीताम्बर धारण किए तथा वनमाला पहने हुए प्रकट हुए। उस समय वे साक्षात मन्मथ यानी कामदेव का भी मन मथने वाले लग रहे थे।
श्रीकृष्ण अप्रतिम सौंदर्य और लावण्य के आगार हैं तो काम को सौंदर्य के मानदंड की तरह रखा गया है। भारतीय संस्कृति में ...