Sunday, November 24"खबर जो असर करे"

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भारत की आत्मा को पहचानने की जरूरत

भारत की आत्मा को पहचानने की जरूरत

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- गिरीश्वर मिश्र 'भारत' और उसके सत्व या गुण-धर्म रूप 'भारतीयता' के स्वभाव को समझने की चेष्टा यथातथ्य वर्णन के साथ ही वांछित या आदर्श स्थिति का निरूपण भी हो जाती है। भारतीयता एक मनोदशा भी है। उसे समझने के लिए हमें भारतीय मानस को समझना होगा । यह सिर्फ ज्ञान का ही नहीं बल्कि भावना का भी प्रश्न है और इसमें जड़ों की भी तलाश सम्मिलित है। आज इस उपक्रम के लिए कई विचार-दृष्टियां उपलब्ध हैं जिनमें पाश्चात्य ज्ञान-जन्य दृष्टि निश्चित रूप से प्रबल है जिसने औपनिवेशिक अवधि में एक आईने का निर्माण किया जो राजनैतिक–आर्थिक वर्चस्व के साथ लगभग सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत हो गया यद्यपि उसके पूर्वाग्रह दूषित करने वाले रहे हैं । उसकी बनाई छवि या आत्मबोध ने एक इबारत गढ़ी जो औपनिवेशिक शिक्षा द्वारा आत्मसात् कराई गई। इस क्रम में अंग्रेजी राज का 'अन्य' भारतीय जनों द्वारा 'आत्म' के रूप में अंगीकार किया गया । वेश-भू...
राष्ट्रीय पर्यटन दिवस: धार्मिक पर्यटन का केंद्र है भारत

राष्ट्रीय पर्यटन दिवस: धार्मिक पर्यटन का केंद्र है भारत

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- लोकेन्द्र सिंह धर्म और अध्यात्म भारत की आत्मा है। यह धर्म ही है, जो भारत को उत्तर से दक्षिण तक और पूरब से पश्चिम तक एकात्मता के सूत्र में बांधता है। भारत की सभ्यता और संस्कृति का अध्ययन करते हैं तो हमें साफ दिखायी देता है कि धार्मिक पर्यटन हमारी परंपरा में रचा-बसा है। तीर्थाटन के लिए हमारे पुरखों ने पैदल ही इस देश को नापा है। भारत की सभ्यता एवं संस्कृति विश्व समुदाय को भी आकर्षित करती है। हम अनेक धार्मिक स्थलों पर भारतीयता के रंग में रंगे विदेशी सैलानियों को देखते ही हैं। दरअसल, भारत को दुनिया में सबसे ज्यादा धार्मिक स्थलों का देश कहा जाता है। एक अनुमान के अनुसार, देशभर में पांच हजार से अधिक सुप्रसिद्ध धार्मिक स्थल हैं। अब उनमें एक और स्थान जुड़ गया- अयोध्याधाम। जिस प्रकार का आस्था का सैलाब प्राण प्रतिष्ठा उत्सव के बाद रामलला के दर्शन को उमड़ा है, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि आनेवाले ...
मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियां

मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियां

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- गिरीश्वर मिश्र आयुर्वेद के अनुसार यदि आत्मा, मन और इंद्रियां प्रसन्न रहें तो आदमी को स्वस्थ कहते हैं । ऐसा स्वस्थ आदमी ही सक्रिय हो कर उत्पादक कार्यों को पूरा करते हुए न केवल अपने लक्ष्यों की पूर्ति कर पाता है बल्कि समाज और देश की उन्नति में योगदान भी कर पाता है । निश्चय ही यह एक आदर्श स्थिति होती है परंतु यह स्थिति किसी भी तरह निरपेक्ष नहीं कही जा सकती। जीवन का आरम्भ और जीने की पूरी प्रक्रिया परिस्थितियों के बीच उन्हीं के विभिन्न अवयवों से बनते-बिगड़ते एक गतिशील परिवेश के बीच आयोजित होती है । उदाहरण के लिए देखें तो पाएंगे सांस लेना भी परिवेश से मिलने वाले आक्सीजन पर निर्भर करता है जो नितांत स्वाभाविक और प्राकृतिक लगता है पर प्रदूषण होने पर या फेफड़े में संक्रमण हो तो मुश्किल हो जाती है । कोविड महामारी में यह सबने बखूबी देखा और पाया था । वस्तुतः हमारा परिवेश भौतिक, सामाजिक और मानसिक हर...
सूक्ष्म, लघु, मध्यम स्तर की औद्योगिक इकाइयां प्रदेश की अर्थव्यवस्था की आत्मा : शिवराज

सूक्ष्म, लघु, मध्यम स्तर की औद्योगिक इकाइयां प्रदेश की अर्थव्यवस्था की आत्मा : शिवराज

देश, मध्य प्रदेश
- मुख्यमंत्री ने 1450 एमएसएमई इकाइयों को अंतरित की 400 करोड़ रुपये की सब्सिडी भोपाल (Bhopal)। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ((Chief Minister Shivraj Singh Chouhan)) ने कहा कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम स्तर की औद्योगिक इकाइयां (industrial units) ही मध्यप्रदेश की अर्थव्यवस्था (Economy of Madhya Pradesh) की आत्मा हैं। यह इकाइयां स्थानीय स्तर पर कृषि उत्पादों (locally produced agricultural products) तथा अन्य सामग्री का वैल्यू एडिशन करने के साथ युवाओं के लिए रोजगार के अवसरों का सृजन करती हैं। मुख्यमंत्री चौहान बुधवार को प्रदेश की 1450 एमएसएमई औद्योगिक इकाइयों को सिंगल क्लिक से 400 करोड़ रुपये की सब्सिडी अंतरित करने के बाद संबोधित कर रहे थे। यह कार्यक्रम मुख्यमंत्री निवास कार्यालय भवन समत्व में आयोजित हुआ था। मुख्यमंत्री ने उद्योग संगठनों के प्रतिनिधियों और उद्यमियों से वर्चुअली संवाद भी किया। मुख...

हम मनुष्यों की आत्मा व शरीर की आयु कितनी है?

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– मनमोहन कुमार आर्य हम विगत अनेक वर्षों से इस संसार में रह रहे हैं। सभी मनुष्यों की अपनी–अपनी जन्म तिथी है। यह जन्म तिथि किसकी है? क्या यह हमारी आत्मा की जन्म तिथि है या हमारे शरीर की है? वस्तुतः यह हमारे शरीर की जन्म तिथि है। आत्मा की जन्म तिथि तो कोई भी नहीं जानता? यह सिद्धान्त है कि जिसका जन्म होता है उसकी मृत्यु होना निश्चित है। हम देखते हैं कि हमसे पूर्व जो मनुष्य उत्पन्न हुए थे, हमनें उन्हें अपने जीवन काल में मरते हुए देखा है। जो बचे हुए हैं उनकी भी एक दिन मृत्यु होना निश्चित है। जन्म व मृत्यु के ही रहस्य को सभी जानते व मानते हैं। जो हमसे आयु में छोटे हैं वह भी आने वाले समय में आगे–पीछे मरेंगे। यह शाश्वत् सिद्धान्त है। ‘जातस्य हि ध्रुवो मृत्यु ध्रुवं जन्म मृतस्य च’ यह गीता का वचन है जिसमें कहा गया है कि जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु होनी निश्चित है और जिसकी मृत्यु होती है उसका जन्म ...