Friday, November 22"खबर जो असर करे"

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आओ वसंत…लहको, महको और महकाओ दिग्दिगंत

आओ वसंत…लहको, महको और महकाओ दिग्दिगंत

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- हृदयनारायण दीक्षित ऋतुराज वसंत आ गए। सुस्वागतम! आओ वसंत। लहको, महको, महकाओ। दिग्दिगंत। भारतीय सौन्दर्यबोध के ऋतुराज को नमस्कार है। प्रकृति आपकी प्रियतमा है। वह अधीर प्रतीक्षा में थी। प्रकृति ने अपने अरूण तरूण अंग खोले। रूप रूप प्रतिरूप और बहुरूप सौन्दर्य चरम परम होते गये। अपना सारा रूप रस गंध उड़ेल दिया उसने। कलियां चटकीं, फूल खिले। वायु गंध आपूरित हैं। अनेक छन्दों में स्तुतियां है। ऋग्वेद का प्रख्यात छन्द गायत्री और साम का ‘वृहत्साम’। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इन्हीं दोनो छन्दों में अपनी व्याप्ति बताई थी और अंत में कहा था-ऋतुओं में मैं वसंत हूं। प्रकृति वसंत की अगवानी में पुलकित है। अपनी वीणा के तार छेड़ चुकी है। प्रकृति का सृजन मधुमय और रसमय है। सोम ओम की प्राकृतिक मस्ती है। रस रस प्रीति। रस घनत्व से धरती अंतरिक्ष आच्छादित हैं। लेकिन भारत के कुछ लोग विदेशी वेलेन्टाइनी शीर्षासन में हैं। व...

कभी आत्मावलोकन भी कर लिया करें ?

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- निर्मल रानी हमारे दैनिक जीवन की तमाम समस्यायें हमें प्रतिदिन हर समय प्रभावित करती हैं। और दूसरों के सिर अपनी इन परेशानियों का ठीकरा फोड़ने के आदी हम लोग आनन फ़ानन में इन रोज़मर्रा दरपेश आने वाली समस्याओं का ज़िम्मेदार सरकार या प्रशासन को ठहरा देते हैं। हम कभी भी इन समस्याओं की जड़ों में झांकने और आत्मावलोकन करने की कोशिश ही नहीं करते। उदाहरण के तौर पर बाज़ारों में प्रतिदिन हर समय लगने वाला जाम, पार्किंग की समस्या,जाम पड़े नाले व नालियां,गलियों व सड़कों पर फैली गंदिगी,जगह जगह फैले कूड़े के ढेर,दुर्गन्धपूर्ण वातावरण,रेलवे व बस स्टेशन पर फैली गंदिगी,जगह जगह व्यर्थ बहता पानी,नदी तालाबों के किनारे फैली गंदिगी व दुर्गन्ध,धुआं,वायु तथा ध्वनि प्रदूषण जैसी अनेकानेक ऐसी समस्यायें हैं जिनका सामना हमें चाहे अनचाहे रूप से लगभग प्रतिदिन ज़रूर करना पड़ता है। और हम सरकार,ज़िला प्रशासन अथवा स्थानीय निका...