रियासी के इस्लामी आतंकवादी हमले पर क्यों है चुप्पी ?
- डॉ. मयंक चतुर्वेदी
इस्लामिक आतंकवाद का अकसर यह कहकर बचाव करते देखा जाता है कि आतंक का कोई मत, पंथ, रिलीजन, मजहब और धर्म नहीं होता। आतंक तो आतंक होता है, किंतु वास्तव में भारत एवं दुनिया के संदर्भ में जिस तरह की लगातार आतंकी घटनाएं एक खास वर्ग विशेष इस्लाम को मानने वाले मुसलमानों द्वारा घटित की जा रही हैं, वह बार-बार यही इंगित करती है कि आतंक का न सिर्फ विशेष मजहब होता है, बल्कि आतंकवाद एक विशेष उद्देश्य से और पूरी दुनिया को सिर्फ एक ही रास्ते पर चलाने की मंशा से जारी है। निश्चित ही इससे जुड़ी भविष्य की कल्पना बहुत डरावनी है।
पहले इस्लाम के नाम पर भारत का विभाजन किया गया, अपनी जनसंख्या की तुलना में शेष भारत से अधिकांश भूमि एवं अन्य व्यवस्थाएं जुटाई गईं, फिर चुन-चुन कर नए इस्लामिक गणराज्य में गैर मुसलमानों को निशाना बनाया गया जो अब भी (पाकिस्तान-बांग्लादेश में) जारी है। वस्तुत: यह प्...