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लोककला के नाम पर अश्लीलता परोसना शर्मनाक

लोककला के नाम पर अश्लीलता परोसना शर्मनाक

अवर्गीकृत
- प्रियंका सौरभ वर्तमान परिदृश्य में लोककला के नाम पर अश्लीलता परोसी जा रही है, जो कि चिंतनीय व शर्मनाक है। यह न केवल इन परंपरागत शैलियों को धूमिल कर रहा है बल्कि विदेशी/वेस्टर्न के चक्कर में हम अपनी पहचान से दूर होते जा रहे हैं। सोशल मीडिया या यू-ट्यूब, फिल्म हो या टीवी के कार्यक्रम सभी जगह फूहड़ नाच का नंगा प्रदर्शन किए जाने की परंपरा ने जोर पकड़ लिया है। यू-ट्यूब और सोशल मीडिया पर रील्स, गानों, फिल्मों, कार्यक्रमों सबमें अश्लीलता इस कदर घर करती जा रही है कि आप अपने परिवार के साथ देख ही नहीं सकते। और रही सही कसर अब नंगे होकर रील बनाने वालों ने पूरी कर दी है। अधिकतर गाने, एलबम और सिनेमा अश्लीलता से भरपूर हैं। आज के लोकगीत सुनने की ही बात कर लें तो उन गानों के हर शब्द में अश्लीलता कूट-कूट कर भरी होता है। जब हम-आप परिवार के साथ मिलकर गाना नहीं सुन सकते तो यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता ...