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प्रदूषण से मुक्ति के लिए गंभीरता की दरकार

प्रदूषण से मुक्ति के लिए गंभीरता की दरकार

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- डॉ. अनिल कुमार निगम दिल्ली और एनसीआर की हवा में एक बार फिर जहर घुल गया है। दीपोत्सव का त्योहार अभी दूर है लेकिन देश की राजधानी की हवा की गुणवत्ता का इंडेक्स (एक्यूआई) 300 के पार चला गया है। यह स्थिति बेहद चिंताजनक है। हर वर्ष प्रदूषण का कारण दिवाली में आतिशबाजी से होने वाले प्रदूषण, पंजाब, हरियाणा एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जलाई जाने वाली पराली को मानकर कुछ चंद उपाय कर लोगों को प्रदूषण के दंश को झेलने के लिए छोड़ दिया जाता है। पिछले लगभग एक दशक में अक्टूबर से जनवरी के बीच हर साल यह समस्या गहरा जाती है। दिल्ली सरकार भी ‘जब आग लगे तो खोदो कुआं’ वाली कहावत चरितार्थ करते हुए प्रदूषण कम करने के चंद उपाय करती है जिससे कुछ तात्कालिक राहत भी मिल जाती है, लेकिन इस समस्या का स्थायी समाधान निकाले जाने के बारे में गंभीर प्रयास देखने को नहीं मिलते। प्रदूषण की गंभीरता को यहां से समझना चाहिए कि अक्...

कौन नहीं देता अपना वोट

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- आर.के. सिन्हा अब चुनाव आयोग को यह गंभीरता से विचार करना होगा कि कैसे सभी मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करने को लेकर गंभीर या बाध्य हों। वे मतदान करना अपना दायित्व समझें। हाल ही में दिल्ली नगर निगम चुनाव संपन्न हो गए। चुनाव प्रचार से लेकर चुनाव नतीजे सही से आ गये। कहीं कोई गड़बड़ नहीं हुई। पर निराशा इस कारण से अवश्य हुई कि इस बार दिल्ली में मतदान 47 फीसद के आसपास ही रहा। मतलब आधे से अधिक मतदाताओं ने अपना वोट डालने की आवश्यकता ही नहीं समझी। मतदान भी रविवार के दिन ही हुआ था। इसलिए उम्मीद तो यह थी कि दिल्ली वाले मतदान के लिए भारी संख्या में निकलेंगे। उस दिन मौसम भी खुशगवार था। फिर भी मतदान बेहद खराब रहा। बड़ी तादाद में मतदाता अपनी पसंद के उम्मीदवार के हक में वोट देने नहीं आए। वे जिन नेताओं और सियासी दलों को नापसंद करते हैं, उन्हें चाहे तो खारिज कर सकते थे। उन्होंने ये भी नहीं किया। चूंकि ...