हिन्दू आस्था पर सेक्युलर प्रहार
डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
भारत में हिन्दू आस्था पर अमर्यादित बयान देना, फिल्म बनाना उसके पोस्टर जारी करना आदि कथित सेक्युलर दायरे में आता है। देश के लिए संतोष का विषय यह कि इसके विरोध में अराजक या हिंसक प्रदर्शन नहीं होता है। इसलिए अमर्यादित बयान देने वाले को कोई माफी मांगने का निर्देश नहीं देता। इसी बहाने वोट बैंक की राजनीति चलती रहती है। हिन्दू आस्था पर बनने वाली अमर्यादित फिल्म और डॉक्यूमेंट्री का प्रचार हो जाता है। ऐसा करने वाले बेखौफ रहते हैं। उन पर असहिष्णु और साम्प्रदायिक होने का आरोप नहीं लगता। उनके विरोध में सम्मान वापसी का अभियान नहीं चलता है, इनके कारण किसी अभिनेता की बेगम को भारत में रहने से डर नहीं लगता। किसी को तस्लीमा नसरीन और सलमान रुश्दी की तरह निर्वासित जीवन के लिए विवश नहीं होना पड़ता है। इसके लिए कोई पूर्व मुख्यमंत्री यह नहीं कहता कि इन्हें केवल मुंह से नहीं शरीर से भी म...