स्मृति शेष: हंसते-हंसाते अलविदा कह गए राजू
- प्रभुनाथ शुक्ल
हंसाने वाला ही नहीं रहा तो दुनिया हंसेगी कैसे। राजू श्रीवास्तव लोगों को हंसाते-हंसाते रुला कर चले गए। अस्पताल में 42 दिन के लंबे संघर्ष के बाद उन्होंने जिंदगी को अलविदा कह दिया। राजू का जाना पूरी हंसी की दुनिया का खामोश हो जाना है। एक ऐसे दौर में राजू श्रीवास्तव का चले जाना बेहद पीड़ादायक है, जब लोग डिप्रेशन जैसी बीमारी का शिकार हो रहे हैं। आज दौड़ती-भागती जिंदगी में जीवन में हंसी का कोई ठिकाना ही नहीं है । लोगों के चेहरे पर थकान के सिवाय मुस्कान दिखती ही नहीं। जिंदगी इतनी तेज भाग रही है कि लोगों की हंसती-खेलती दुनिया ही गायब है। ऐसे दौर में राजू डिप्रेशन के मरीजों के लिए भगवान थे।
राजू श्रीवास्तव एक ऐसे परिवार से आते हैं जहां साहित्य और कला को खुली सांस मिली। उनके पिता रमेश श्रीवास्तव कवि थे। उन्हें लोग बलई काका के नाम से भी पुकारते थे। राजू श्रीवास्तव उन्हीं बलई काका क...