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श्रद्धा की अभिव्यक्ति श्राद्ध

श्रद्धा की अभिव्यक्ति श्राद्ध

अवर्गीकृत
- हृदयनारायण दीक्षित श्रद्धा भाव है और श्राद्ध कर्मकाण्ड। श्रद्धा मन का प्रसाद है। प्रसाद आंतरिक आनंद देता है। पतंजलि ने श्रद्धा को चित्त की स्थिरिता या अक्षोभ से जोड़ा है। श्रद्धा की दशा में क्षोभ नहीं होता। श्रद्धा की अभिव्यक्ति श्राद्ध है। भारतीय विद्वानों ने श्रद्धा भाव को श्राद्ध कर्म बनाया। पिता, पितामह और प्रपितामह के लिए अन्न, भोजन, जल आदि के अर्पण तर्पण का कर्मकाण्ड बनाया। श्रद्धा है कि अर्पित किया गया भोजन पितरों को मिलता है। वे प्रसन्न होते हैं और सन्तति को सभी सुख साधन देते हैं। हम भारतवासी वरिष्ठों, पूर्वजों के प्रति श्रद्धालु रहते हैं। संप्रति पितर पक्ष है। इस समय को पितरों के प्रति श्राद्ध के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। लोक मान्यता है कि इस पक्ष में पूर्वज पितर आकाश लोक आदि से उतर कर धरती पर आते हैं। हम पूरे वर्ष तमाम गतिविधियों में सक्रिय रहते हैं। इसी में 15 दिन पितरों के प...