धनाढ्य प्रवासी भारतीय और राहुल गांधी की ओछी सियासत
- कमलेश पांडेय
पिछले तीन दशकों में भारतीय राजनीति में दो महत्वपूर्ण बदलाव महसूस किए जा रहे हैं। इन्हें नई आर्थिक नीतियों का राजनीतिक साइड इफैक्ट्स कहा जा सकता है। पहला, नेताओं व उनके भरोसेमंद कार्यकर्ताओं के बीच विश्वास दिन ब दिन घटता जा रहा है और ग्लोबल-नेशनल पीआर एजेंसी इस जगह को तेजी से भरती जा रही हैं। दूसरा, राजनेताओं और नौकरशाहों की अंदरुनी सांठगांठ औद्योगिक घरानों व कारोबारियों से बढ़ती जा रही है और उनके मनमाफिक कानून बदले जा रहे हैं।
देखा जाए तो इन दोनों घटनाओं की वजह से समाजवादी लोकतंत्र, कब पूंजीवादी लोकतंत्र में तब्दील हो गया, पता ही नहीं चला! आहिस्ता-आहिस्ता यह प्रक्रिया और तेज ही होती जा रही है, जिससे पढ़े-लिखे और पैसे वाले लोगों के बजाय आम आदमी के हित ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं, नकारात्मक अर्थों में। जिस हिसाब से व्यक्ति विशेष के खर्चे बढ़े हैं, उत्तरदायित्व बढ़ रहे हैं, आमदनी ...