संस्कृत है जीवन-संजीवनी !
- गिरीश्वर मिश्र
मनुष्य जीवन में वाक शक्ति या वाणी की उपस्थिति कितना क्रांतिकारी परिवर्तन ला देती है यह बात मानवेतर प्राणियों के साथ शक्ति, संभावना और उपलब्धि की तुलना करते हुए सरलता से समझ में आ जाती है। ध्वनियां और उनसे बने अक्षर तथा शब्द भौतिक जगत में विलक्षण महत्व रखते हैं। भाषा और उसके शब्द किसी वस्तु के प्रतीक के रूप में हमें उस वस्तु के अभाव में भी उसके उपयोग को संभव बनाते हैं। दूसरी तरह कहें तो भाषा हमें कई तरह के बंधनों स्वतंत्र करती चलती है, वह हमारे लिए विकल्प भी उपलब्ध कराती है और रचने-रचाने की अपरिमित संभावनाएं भी उपस्थित करती है।
यह भाषा ही है जो हमारे अनुभव के देशकाल को स्मृति के सहारे एक ओर अतीत से जोड़ती है तो दूसरी ओर अनागत भविष्य को गढ़ने का अवसर देती है। यानी भाषा मूर्त और अमूर्त के भेद को पाटती है और हमारे अस्तित्व को विस्तृत करती है। आंख की तरह भाषा हमें एक नया जगत दृ...