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श्रद्धा की अभिव्यक्ति ही श्राद्ध

श्रद्धा की अभिव्यक्ति ही श्राद्ध

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- हृदयनारायण दीक्षित श्रद्धा भाव है और श्राद्ध कर्म। श्रद्धा मन का प्रसाद है। पतंजलि ने श्रद्धा को चित्त की स्थिरिता या अक्षोभ से जोड़ा है। श्रद्धा की अभिव्यक्ति श्राद्ध है। भारत में पूर्वजों पितरों के प्रति श्रद्धा की स्थाई भावना है। हम भारतवासी पूर्वजों के प्रति प्रतिपल श्रद्धालु रहते हैं लेकिन नवरात्रि उत्सवों के 15 दिन पहले से पूरा पखवारा पितर पक्ष कहलाता है। लोकमान्यता है कि इस पक्ष में पूर्वज पितर आकाश लोक आदि से उतरकर धरती पर आते हैं। हम सब पूरे वर्ष व्यस्ते रहते हैं। इसी में 15 दिन पितरों के प्रति गहन श्रद्धा का प्रसाद सुख निराला है। वैदिक निरूक्त में श्रत और श्रद्धा को सत्य बताया गया है। पितरों का आदर प्रत्यक्ष मानवीय गुण है। पिता और पूर्वज हमारे इस संसार में जन्म लेने का माध्यम हैं। वे थे, इसलिए हम हैं। वे न होते, तो हम न होते। उन्होंने पालन पोषण दिया। स्वयं की महत्वाकांक्षाएं छो...
पृथ्वी की पीड़ा को समझें

पृथ्वी की पीड़ा को समझें

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- हृदयनारायण दीक्षित भारतीय विवेक और श्रद्धा में पृथ्वी माता हैं। पृथ्वी को मां मानने और जानने की अनुभूति केवल भारत में है। हम सब पृथ्वी पुत्र हैं। इसी में जन्म लेते हैं। पृथ्वी ही पालती है। यही पोषण करती है। लेकिन दूषित पर्यावरण के कारण पृथ्वी का अस्तित्व संकट में है। सारी दुनिया का ताप बढ़ रहा है। पर्यावरण संरक्षण वैज्ञानिकों के सामने भी बड़ी चुनौती है। आज से 18 साल पहले 2005 में संयुक्त राष्ट्र का सहस्त्राब्दी पर्यावरण आकलन (मिलेनियन इकोसिस्टम असेसमेंट) आया था। यह एक गंभीर दस्तावेज था और है। इस अनुमान में कहा गया था कि पृथ्वी के प्राकृतिक घटक अव्यवस्थित हो गए हैं। यह अनुमान 18 वर्ष पुराना है। इसके पूर्व सन 2000 में भी पेरिस के `अर्थ चार्टर कमीशन' ने पृथ्वी और पर्यावरण संरक्षण के 22 सूत्र निकाले थे। लेकिन इस दिशा में कोई महत्वपूर्ण काम नहीं हुआ। कोई ठोस संकल्प नहीं लिए गए। वैसे वैदिक सा...