Monday, November 25"खबर जो असर करे"

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शारदीय नवरात्रिः मातृशक्ति के सम्मान का महापर्व

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- डॉ. अशोक कुमार भार्गव भारत की सांस्कृतिक चेतना के भव्य और विराट स्वरूप की अभिव्यक्ति हमारे पर्व और त्योहार हैं। यह राष्ट्रीय हर्ष, उल्लास, उमंग और उत्साह के भी प्रतीक हैं। ये देशकाल और परिस्थिति के अनुसार अपने रंग-रूप आकार में भिन्न-भिन्न हो सकते हैं और उन्हें व्यक्त करने के तरीके भी अलग-अलग हो सकते हैं। किंतु उनका सरोकार अंततः मानवीय कल्याण, सुख और आनंद की उपलब्धि अथवा किसी आस्था, विश्वास, परम्परा या संस्कार का संरक्षण ही होता है। इस बार शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ 26 सितंबर अर्थात सोमवार से हो रहा है। शक्ति की उपासना का यह पर्व आत्मसंयमी साधकों को आध्यात्मिक प्रेरणा देने की शक्ति का पर्व समूह है। ऋग्वेद के दसवें मंडल में एक पूरा सूक्त शक्ति की आराधना पर केंद्रित है। इसमें शक्ति की भव्यता का दुर्लभ स्वरूप मुखरित हुआ है- " मैं ही ब्रह्म के दोषियों को मारने के लिए रुद्र का धनुष चलाती हूं।...
माता-पिता में बसते हैं समस्त तीर्थ

माता-पिता में बसते हैं समस्त तीर्थ

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- डॉ. सौरभ मालवीय आज के युग में उन्नति का अर्थ केवल धनोपार्जन से लिया जा रहा है अर्थात जो व्यक्ति जितना अधिक धन अर्जित कर रहा है, वह उतना ही सफल माना जा रहा है। मनुष्य की उन्नति की इस परिभाषा ने पारिवारिक संबंधों से मान-सम्मान ही समाप्त कर दिया है। माता-पिता बड़े लाड़-प्यार से अपने बच्चों का लालन-पालन करते हैं। उन्हें उच्च शिक्षा दिलाने के लिए यथासंभव प्रयास करते हैं। बच्चे बड़े एवं शिक्षित होकर माता-पिता को छोड़कर दूर महानगरों अथवा विदेशों में जाकर रहने लगते हैं। ऐसी स्थिति में असहाय वृद्ध माता-पिता अकेले रह जाते हैं। ऐसे लोग भी बहुत हैं, जो एकल परिवार चाहते हैं। वे अपने वृद्ध माता-पिता को वृद्धाश्रम में डाल देते हैं। ऐसे समाचार भी सुनने को मिलते रहते हैं कि वृद्धों को उनके ही बच्चों द्वारा मारा-पीटा जा रहा है। उन्हें भरपेट भोजन नहीं दिया जाता तथा अस्वस्थ होने पर उनका उपचार नहीं भी करवाया जा...