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विश्व आदिवासी दिवस: बड़े जनजातीय नरसंहार के स्मरण का शोक दिवस

विश्व आदिवासी दिवस: बड़े जनजातीय नरसंहार के स्मरण का शोक दिवस

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- प्रवीण गुगनानी विदेशी शक्तियां भारतीय समाज को विखंडित करने के लिए मूलनिवासी दिवस का उपयोग कर रही हैं। नौ अगस्त, वस्तुतः पश्चिमी साम्राज्यवादियों द्वारा किए गए बड़े और बर्बर नरसंहार का दिन है। इस शोक दिवस को उसी पीड़ित व दमित जनजातीय समाज द्वारा उत्सव व गौरवदिवस रूप में मनवा लेने का षड्यंत्र है यह। आश्चर्य यह है कि पश्चिम जगत, झूठे विमर्श गढ़ लेने में माहिर छद्म बुद्धिजिवियों के भरोसे जनजातीय नरसंहार के इस दिन को जनजातीय समाज द्वारा ही गौरव दिवस के रूप में मनवाने कुचक्र में सफल हो रहा है। वस्तुतः 09 अगस्त का यह दिन अमेरिका, जर्मनी, स्पेन सहित समस्त उन पश्चिमी देशों में वहां के बाहरी आक्रमणकारियों द्वारा पश्चाताप, दुःख व क्षमाप्रार्थना का दिन होना चाहिए। इस दिन यूरोपियन आक्रमणकारियों को उन देशों के मूल निवासियों से क्षमा मांगनी चाहिए जिन मूलनिवासियों को उन्होंने बर्बरतापूर्वक नरसंहार करके ...
अमृतकाल में महात्मा गांधी का स्मरण

अमृतकाल में महात्मा गांधी का स्मरण

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- गिरीश्वर मिश्र भारत की आजादी का अमृत महोत्सव हर भारतीय के लिए जहां गर्व का क्षण है वहीं आत्म-निरीक्षण का अवसर भी प्रस्तुत करता है । पराधीनता की देहरी लांघ कर स्वाधीनता के परिसर में आना निश्चय ही गौरव की बात है । लगभग दो सदियों लम्बे अंग्रेजों के औपनिवेशिक परिवेश ने भारत की जीवन पद्धति को शिक्षा, कानून और शासन व्यवस्था के माध्यम से इस प्रकार आक्रांत किया था कि देश का आत्मबोध निरंतर क्षीण होता गया। इसके फलस्वरूप हम एक पराई दृष्टि से स्वयं को और दुनिया को भी देखने के अभ्यस्त होते गए । उधार ली गई विचार की कोटियों के सहारे बनी यथार्थ की समझ और उसके मूल्यांकन की कसौटियां ज्ञान-विज्ञान में नवाचार और आचरण की उपयुक्तता के मार्ग में आड़े आती रहीं और राजनैतिक दृष्टि से एक स्वतंत्र देश होने पर भी देश को मानसिक बेड़ियों से मुक्ति न मिल सकी। मानसिक अनुबंधन के फलस्वरूप पाश्चात्य को (जो स्वयं में मूलत...
गुड फ्राइडे: यीशु के बलिदान और शिक्षाओं को याद करने का दिन

गुड फ्राइडे: यीशु के बलिदान और शिक्षाओं को याद करने का दिन

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- योगेश कुमार गोयल ‘‘हे ईश्वर! इन्हें क्षमा करें, ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं।’’ यह प्रार्थना थी यीशु (ईसा मसीह) की उन हत्यारों के लिए, जिन्होंने भयावह अमानवीय यातनाएं देते हुए उनके प्राण ले लिए। यीशु के सिर पर कांटों का ताज रखा गया, उन्हें सूली को कंधों पर उठाकर ले जाने को विवश किया गया और गोल गोथा नामक स्थान पर ले जाकर दो अन्य अपराधियों के साथ बेरहमी से कीलों से ठोकते हुए क्रॉस पर लटका दिया गया। यीशु ने उत्पीड़न और यातनाएं सहते हुए मानवता के लिए अपने प्राण त्याग दिए और दया-क्षमा का अपना संदेश अमर कर दिया। पृथ्वी पर बढ़ रहे पापों के लिए बलिदान देकर ईसा ने निःस्वार्थ प्रेम की पराकाष्ठा का अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया। सूली पर प्राण त्यागने से पहले यीशु ने कहा था, ‘‘हे ईश्वर! मैं अपनी आत्मा को तेरे हाथों में सौंपता हूं।’’ यीशु ने मानवता की भलाई के लिए बलिदान दिया। उनके बलिदान, उनकी...