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समलैंगिक विवाह और भारतीय मान्यता

समलैंगिक विवाह और भारतीय मान्यता

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- डॉ. पुनीत कुमार द्विवेदी समलैंगिकता का मुद्दा सदियों से भारत में विवादास्पद रहा है। समाज ने पारंपरिक रूप से विषम लैंगिकता को सामाजिक निर्माण के रूप में बरकरार रखा है। समाज ने इसके किसी भी विचलन को अस्वीकार्य माना है। इस संबंध में उभरी सबसे हालिया बहसों में से एक यह है कि क्या भारत में समलैंगिक विवाह की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं। संस्कृति प्रधान देश में समलैंगिक विवाह को सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक मान्यताओं के दृष्टिकोण से अभिशाप या सामाजिक विकृति के रूप में माना जाता है। यह मामला इस समय उच्चतम न्यायालय में गूंज रहा है। सांस्कृतिक दृष्टिकोणः भारतीय संस्कृति में धार्मिक, आध्यात्मिक और नैतिक मान्यताएं गहराई से निहित हैं। हमारे यहां विवाह संस्था को पवित्र माना जाता है। इसे एक पुरुष और एक महिला के बीच पवित्र बंधन के रूप में देखा जाता है। जो भी इस मानदंड से विचलित होता है उसे अप्राकृत...

पोंगापंथी से ऊपर उठें मजहबी

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- डॉ. वेदप्रताप वैदिक भारत में मजहब के नाम पर किस कदर पोंगापंथी कोहराम मचाकर खुश होते हैं? इसका ताजा किस्सा सामने आया है, मुजफ्फरनगर की युवा गायिका फरमानी नाज का। यह घरेलू मुस्लिम महिला है। इस तीस वर्षीय मुस्लिम महिला के खिलाफ कुछ मुस्लिम मौलानाओं ने अपने तोप और तमंचे दागने शुरू कर दिए हैं, क्योंकि उसका गाया हुआ एक भजन ‘हर हर शंभू...’ बहुत लोकप्रिय हो रहा है। उस भजन को इंटरनेट पर अभी तक लगभग 10 लाख लोग सुन चुके हैं। देवबंद के उलेमाओं के वाग्बाणों के बाद कोई आश्चर्य नहीं कि अब नाज के भजनों, गजलों और गीतों को सुननेवालों की संख्या करोड़ों तक पहुंच जाए। हमारे पोंगापंथी मौलानाओं की फरमानी नाज पर यह बड़ी कृपा बरसेगी। मैंने भी फरमानी नाज को सुनने की कोशिश की। उसके शिव भजन में तो मुझे कोई खास रस नहीं आया लेकिन उसकी गजलें सुनकर मैं दंग रह गया। अपने चूल्हे पर गोबर लीपती हुई नाज जो गजल गा रही है, बिन...