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1 अप्रैल विशेष: बरकरार है मूर्ख दिवस की प्रासंगिकता

1 अप्रैल विशेष: बरकरार है मूर्ख दिवस की प्रासंगिकता

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- योगेश कुमार गोयल विश्वभर के लगभग सभी देशों में पहली अप्रैल का दिन ‘फूल्स डे’ अर्थात् ‘मूर्ख दिवस’ के रूप में ही मनाया जाता है। कोई छोटा हो या बड़ा, इस दिन हर किसी को जैसे हंसी-ठिठोली करने का बहाना मिल ही जाता है और हर कोई किसी न किसी को मूर्ख बनाने की चेष्टा करता नजर आता है। लोग एक-दूसरे को किसी तरह का नुकसान पहुंचाए बिना ऐसी असत्य और मनगढंत कल्पनाओं को ही यथार्थ का रूप देकर, जिन पर कोई भी आसानी से विश्वास कर सके, एक-दूसरे को मूर्ख बनाने की चेष्टा करते हैं और अक्सर बहुत चतुर समझे जाने वाले व्यक्ति भी मूर्ख बन ही जाते हैं। शायद यही कारण है कि इस दिन चाहे कोई किसी का कितना ही विश्वासपात्र क्यों न हो, मस्तिष्क में यह बात विराजमान रहती है न कि कहीं यह हमें मूर्ख तो नहीं बना रहा! कई बार होता यह भी है कि लोग कोशिश तो करते हैं दूसरों को मूर्ख बनाने की लेकिन इस कोशिश में खुद ही मूर्ख बन जाते है...
विजय दशमी की प्रासंगिकता

विजय दशमी की प्रासंगिकता

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- गिरीश जोशी क्या हमारे पूर्वजों ने विजय दशमी उत्सव को शस्त्र और शास्त्र का पूजन करने भगवान राम की विजय का स्मरण कर रावण के पुतले का दहन करने की परंपरा का पालन करने के लिए हमारी जीवन पद्धति में शामिल किया था या इस उत्सव के कुछ ओर निहितार्थ रहे हैं। आज इस उत्सव की क्या प्रासंगिकता है ऐसे अनेक सवाल विशेषकर युवाओं के मन में उठते है । एक ओर इस उत्सव को सत्य की असत्य पर विजय,अच्छाई की बुराई पर विजय के रूप में मनाने की परंपरा हजारों वर्षों से हमारे देश में चल रही है। दूसरी ओर देश में आमतौर पर समाज की मानसिकता में विजिगीषु वृत्ति (विजयी भाव) दिखाई नहीं पड़ती है। विजिगीषु वृत्ति वाला समाज दासभाव से भरी निराशाजनक मानसिकता से ऊपर उठकर प्रत्येक कार्य सफल होने के लिए, हर संघर्ष में विजय होने की भावना से ही मैदान में उतरता है। लेकिन समान्यतः देश में पराक्रमी उद्यमशीलता,कर्मशीलता तथा साहस से जोखिम उठाक...

खेल दिवस की प्रासंगिकता और युवाओं की उम्मीदें

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- रमेश ठाकुर जिदंगी खेल है। खेल ही जिंदगी। बेशक दोनों के मायने अलग हैं। मगर वास्तविकता आपस में कहीं न कहीं मेल खाती है। ‘खेलकूद’ के महत्व को दर्शाता है राष्ट्रीय खेल दिवस। शायद ये बात सभी जानते भी होंगे। ‘हिट इंडिया, तो फिट इंडिया’ का जबसे नारा बुलंद हुआ है, तब से इस दिवस की प्रासंगिकता और बढ़ी है। लोगों में खेलों के प्रति जागरुकता बढ़े, उनमें ललक पैदा हो, जिससे वह ‘हिट एंड फिट’ हो सकें। इसी मकसद को मुकम्मल रूप से पूरा करता है आज का ये खास दिवस। ये दिन न सिर्फ विद्यालयों, कॉलेज, विभिन्न शिक्षण संस्थाओं व खेल अकादमियों तक सीमित है, बल्कि हर उम्र के व्यक्ति के लिए अहम मायने रखता है। रविवार को हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की जयंती है। ये दिवस उन्हीं को समर्पित है। साल भर पूर्व देश के सबसे बड़े खेल पुरस्कार यानी पूर्व के राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदलकर खेल नायक मेजर ध्यान चंद के नाम प...