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यादें बंटवारे की: शरणार्थी कैसे उठे राख के ढेर से

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- आरके सिन्हा भारत अपनी स्वाधीनता के 75 साल पूरे कर रहा है। सारे देश में उत्साह और उल्लास का वातावरण बन गया है। लेकिन, भारत को आजादी की बड़ी कीमत देश के बंटवारे के रूप में अदा करनी पड़ी थी। यह भी एक कटु सत्य है। हजारों निर्दोषों ने अपनी जानें गंवाई। लाखों लोगों को अपने घरों से दूर जाकर अपनी नई दुनिया बसानी पड़ी थी। आज जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, तो हमें उन पंजाबी और बंगाली शरणार्थियों को अवश्य याद रखना होगा, जिन्होंने कठिन और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपने हिस्से का आसमान छुआ। पंजाब से आये शरणार्थियों ने कारोबारी दुनिया में अपनी कड़ी मेहनत और जीवटता से अभूतपूर्व सफलता हासिल की। अगर आप राजधानी दिल्ली में रहते हैं या फिर वहां पर आते-जाते रहते हैं तो आपने वहां लोकप्रिय बंगाली मार्केट के पास तानसेन मार्ग के कोने पर स्थित फेडरेशन ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) का भवन देखा ह...