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असुरक्षित कर्ज के नियमों को सख्त करना बैंकिंग व्यवस्था सुधारने के लिए अहम: दास

असुरक्षित कर्ज के नियमों को सख्त करना बैंकिंग व्यवस्था सुधारने के लिए अहम: दास

देश, बिज़नेस
नई दिल्ली (New Delhi)। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बुधवार को कहा कि असुरक्षित कर्ज के मानदंडों को सख्त करना बैंक व्यवस्था को सुचारू बनाए रखने की दिशा में उठाया गया एहतियाती कदम है। आरबीआई गवर्नर आज फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) और भारतीय बैंक संघ (आईबीए) के संयुक्त सालाना एफआईबीएसी कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आरबीआई ने मकान और वाहन खरीद के लिए कर्ज तथा छोटे कारोबारियों को मिलने वाले कर्ज जैसे कुछ वर्गों को नए नियमों से बाहर रखा है, क्योंकि उन्हें वृद्धि के मोर्चे पर फायदा मिल रहा है। शक्तिकांत दास ने कहा कि हमने हाल में व्यवस्था को सुचारू बनाए रखने के लिए सोच-विचारकर कुछ उपायों की घोषणा की है। ये उपाय एहतियाती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें फिलहाल बैंकों में कोई नया दबाव उत्पन्न होता नहीं दिख रहा है, लेकि...
न्याय व्यवस्था में सुधार के संकेत

न्याय व्यवस्था में सुधार के संकेत

अवर्गीकृत
- डॉ. वेदप्रताप वैदिक सुप्रीम कोर्ट में आए एक ताजा मामले ने हमारी न्याय-व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी है लेकिन उसने देश के सारे न्यायालयों को नया रास्ता भी दिखा दिया है। हमारी बड़ी अदालत में 1965 में डाॅ. राममनोहर लोहिया ने अंग्रेजी का बहिष्कार करके हिंदी में बोलने की कोशिश की थी लेकिन परसों शंकरलाल शर्मा नामक एक व्यक्ति ने अपना मामला जैसे ही हिंदी में उठाया, सर्वोच्च न्यायालय के दो जजों ने कहा कि वे हिंदी नहीं समझते। उनमें से एक जज मलयाली के एम. जोजफ थे और दूसरे थे बंगाली ऋषिकेश राय। उनका हिंदी नहीं समझना तो स्वाभाविक है, लेकिन कई हिंदी भाषी जज भी ऐसे हैं, जो अपने मुवक्किलों और वकीलों को हिंदी में बहस नहीं करने देते हैं। उनकी भी यह मजबूरी मानी जा सकती है, क्योंकि उनकी सारी कानून की पढ़ाई-लिखाई अंग्रेजी में होती रही है। उन्हें नौकरियां भी अंग्रेजी के जरिए ही मिलती हैं और सारा कामकाज भी वे अं...